झांसी।
जो लोग हर्पीस नाम की बीमारी के बारे में जानते हैं, उन्हें पता है कि इसके मरीज को भयानक दर्द से गुजरना पड़ता है। मरीज की तड़प और छटपटाहट को देखकर कई बार डाक्टर भी हौसला खो देते हैं। और, ऐसे में उपचार के अभाव में मरीज दम तोड़ देता है। ऐसे ही मौत के मुंह तक जा पहुंचे एक मरीज की जान बचाकर डा. डीएस गुप्ता ने एक बार अपने मेडिकल पेशे के प्रति चिकित्सक की ईमानदारी और मरीज के साथ चिकित्सक के भावनात्मक लगाव के सकारात्मक परिणामों की नजीर पेश की है।
यह मामला राठ के 42 वर्षीय वीर सिंह का है जिसके शरीर में कुछ दिन पहले छोटे-छोटे उभरने शुरू हुए जिनमें पानी भरा हुआ था। वीर सिंह ने इसे खुजली समझकर नजरअंदाज करने की जानलेवा भूल कर दी। जबकि यह खुजली नहीं, बल्कि हर्पीस का संक्रमण था जो हर दिन गंभीर होता जा रहा था।
बेहद नाजुक थी वीर की स्थिति
संक्रमण अधिक फैलने पर परिजन वीर को राठ के एक चिकित्सालय में भर्ती कराया जहां हालत नहीं सुधरने पर 18 जून को झांसी के लिए रैफर कर दिया गया। झांसी जिला चिकित्सालय पहुंचने तक वीर की हालत और नाजुक हो चुकी थी। वह दर्द से छटपटा रहा था, संक्रमण दिमाग तक पहुंच चुका था और ऑक्सीजन लेवल 25 प्रतिशत रह गया था। उसकी हालत को देख चिकित्सकों ने उपचार देने से मना कर दिया और ग्वालियर ले जाने की सलाह दी।
डा. गुप्ता का साहसिक फैसला
इसी बीच किसी ने वरिष्ठ फिजिशियन डा. डीएस गुप्ता को इस केस की जानकारी दी। डा. गुप्ता ने तत्काल मरीज का परीक्षण किया, तो पाया कि ग्वालियर तक पहुंचने पर मरीज की हालत और बिगड़ जाएगी, परिवार की आर्थिक स्थिति भी कमजोर है, जबकि उसे तत्काल उपचार की आवश्यकता है। उन्होंने उसी क्षण दो अन्य साथी चिकित्सकों (डा. रविकांत एवं डा. ब्रजेश खरे) को साथ लेकर वीर का उपचार करने का साहसिक निर्णय लिया।
बांधने पड़े वीर के हाथ-पैर
समस्या यह थी कि वीर सिंह दर्द से बुरी तरह छटपटा रहा था और ऐसे में उपचार शुरू करने के लिए उसके दोनों हाथों और दोनों पैरों को बेड के कोनों से बांधना पड़ा। उसका सीटी स्कैन कराया, पेट में उभरे दानों का परीक्षण करने से यह और पुख्ता हो गया कि वह हर्पीस (एचएसवी-2 और एचएसवी-2) सिम्पलेक्स इंसेफेलाइटिस के गंभीर संक्रमण के पीड़ित है।
कमाल कर गई एक कोशिश
गंभीर मरीजों के उपचार में बेहद अनुभवी डा. डीएस गुप्ता के निर्देशन में वीर का इलाज शुरू हो गया। उपचार की शुरुआत जरूरी एंटी वायरल ऐसाइक्लोविर मेडिसिन से होनी थी जो आसानी से उपलब्ध नहीं होती है। डा. गुप्ता और उनकी टीम से प्रयासों से जल्द ही यह दवा और इंजेक्शन भी मैनेज कर लिया गया। वीर सिंह को सपोर्टिव ट्रीटमेंट के साथ ही दर्द से बचने के लिए निर्दिष्ट इंजेक्शन भी दिए। डा. गुप्ता और उनकी टीम की कोशिश कमाल कर गई। महज पांच दिन के सघन ट्रीटमेंट मे वीर खतरे की हालत से निकल आया है।
खुशी से छलछला गईं आंखें
वीर सिंह जिसे बेहोशी की हालत में लाया गया था, जो दर्द से छटपटा रहा था, संक्रमण दिमाग तक पहुंच चुका था और मौत के बहुत करीब था…आज चिकित्सकों और परिजनों से बात कर पा रहा है। पांच दिन बाद वीर से बात कर उम्मीद खो चुके उसके परिजनों की आंखें खुशी में छलछला गईं, और वीर..उसकी आंखों में एक बार फिर जिंदगी की चमक नुमाया है।
तब वीर का क्या होता…
यह पूरा मामला चिकित्सा जगत के लिए एक मिसाल है कि एक चिकित्सक के लिए मेडिकल पेशे के प्रति ईमानदारी और समर्पण के साथ ही मरीज से भावनात्मक लगाव ही एक आदर्श स्थिति है जो उसे समाज में विशेष आदर और सम्मान दिलाता है। मरीज और उसके परिजनों की उम्मीद सीधे तौर पर चिकित्सक के हौसले से जुड़ी होती है। यदि डा. डीएस गुप्ता ने भी हौसला खो दिया होता तो सोचिये…वीर का क्या होता।
क्योंकि ऐसे ही हैं डा. डीएस गुप्ता
डा. डीएस गुप्ता के लिए यह ऐसा पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी वह कई गंभीर मरीजों का सफल उपचार कर लोगों को चमत्कृत कर चुके हैं। पेशे के प्रति इसी ईमानदार और समर्पण के चलते उन्हें कई मंचों पर बड़े सम्मानों से नवाजा जा चुका है।
धर्मपत्नी डा. केश गुप्ता का सपोर्ट
डा. डीएस गुप्ता की धर्मपत्नी डा. श्रीमती केश गुप्ता होम्योपैथिक चिकित्सक हैं और महुरानीपुर में तैनात हैं। चिकित्सक के साथ ही एक सोशल वर्कर के रूप में उनकी खास पहचान हैं। झांसी की सामाजिक गतिविधियों में वह अग्रणी रहती हैं और कलचुरी समाज की गतिविधियों में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेती रही हैं। उन्होंने कलचुरी महिला सभा बनाई जो समय-समय पर सामाजिक कार्य करती रहती हैं। वह उत्तर प्रदेश जायसवाल समवर्गीय महासभा (लालचंद गुप्ता) की महिला इकाई की सचिव भी हैं।
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