बरेली।
सहारनपुर की टपरी डिस्टिलरी से करीब सौ करोड़ की एक्साइज ड्यूटी चोरी करने के मामले में डिस्टलरी मालिक प्रणय अनेजा और शराब कारोबारी मनोज जायसवाल समेत 13 लोगों की गिरफ्तारी के बाद जिस अजय जायसवाल को मास्टरमाइंड मानकर पुलिस तलाश कर रही थी, वह 15000 रुपये महीने का एक मामूली कर्मचारी निकला जो अपने साथ हो रही ज्यादती से पूरी तरह बेखबर था। मनोज जायसवाल उसकी आड़ में करोड़ों रुपये की अवैध कमाई कर रहा था। मनोज ने कई शराब गोदामों और दुकानों का मालिक अजय जायसवाल को बना रखा था मगर इस गरीब को उसने कोई सुविधा-सहूलियत नहीं दी थी। पुलिस ने जब अजय जायसवाल को गिरफ्तार किया, उस समय उसकी जेब में महज चार सौ रुपये निकले, वह फटे जूते पहना थे।
पुलिस, एसटीएफ, ईडी, एसआईटी, सब यही मान रहे थे कि इस पूरे खेल को अजय जायसवाल चला रहा है, माली हैसियत अरबों में हो सकती है। लेकिन, पूछताछ में पता चला कि अजय को मालूम ही नहीं था कि बरेली, कानपुर औऱ उन्नाव समेत कई शहरों में उसके नाम शराब के कई गोदाम और तमाम दुकानें हैं। अजय ने बताया कि उसने उन्नाव और कानपुर की शक्ल तक नहीं देखी है। अजय ने बताया कि 2017 में मनोज ने उससे उसका आधार कार्ड, पैन कार्ड और फोटो ले लिए थे। इन्हीं का इस्तेमाल कर उसने शराब गोदामों और दुकानों के लाइसेंस लिए लेकिन उसे कुछ नहीं बताया।
अजय जायसवाल मूल रूप से बरेली में ही भमोरा के बल्लिया गांव का रहने वाला है। वहां उसकी पुश्तैनी सात बीघा जमीन और सोने चांदी की छोटी सी दुकान थी। दुकान नहीं चली तो उसने 2004 में गांव छोड़ दिया और बरेली में बन्नूवाल कॉलोनी में रहने वाली रीता से शादी कर 30 गज का छोटा सा घर बना लिया। घर के नीचे परचूनी की दुकान खोली और ऊपरी हिस्से में रहने लगा। उसके दो बेटी और एक बेटा है। 2016 में आर्थिक तंगी के चलते पत्नी से विवाद हुआ जिसके बाद दोनों अलग हो गए। अजय दाने-दाने को मोहताज हो गया तो अपने रिश्तेदार शराब कारोबारी मनोज जायसवाल के पास काम मांगने पहुंचा गया। मनोज ने उसे 15 हजार रुपये की नौकरी देकर आंवला क्षेत्र में अपनी एक अंग्रेजी और चार देसी शराब दुकानों की देखरेख का काम दे दिया।
अजय नौकरी करता रहा, मनोज का हुक्म बजाता रहा। जबकि. अजय के नाम पर मनोज ने शराब का पूरा साम्राज्य खड़ा कर दिया। हर किसी को यही पता था कि शराब ठेकों का मालिक अजय जायसवाल है, जबकि शातिर मनोज जायसवाल को कोई जानता तक नहीं था। अजय के पास तो इतना पैसा भी नहीं था कि अपना खर्चा चला सके। बरेली में ही हरुनगला के पास उसके नाम पर शराब का गोदाम था जिसकी लाइसेंस की फीस ही 20 लाख रुपये आबकारी विभाग को दी गई थी। लाखों रुपये का महीने की शराब बेचने से आय अलग थी। कानपुर और उन्नाव में भी उसके नाम शराब गोदाम थे। इन गोदामों से शराब निकालना और उसका पैसा जमा करना, यह सब मनोज खुद करता था।
टपरी डिस्टिलरी में एसआइटी के छापे के बाद जब अजय जायसवाल का नाम सामने आया तो मनोज ने उसे कर्मचारी नगर के पास एक किराए के मकान में उसे ठहरवा दिया। मकान में नीचे प्लाईवुड की दुकान थी, ऊपरी हिस्से में अजय रहता था। मकान का किराया 5000 रुपये भी अजय को अपने 15 हजार रुपये के वेतन में से देने पड़ रहे थे।
पत्नी ने नहीं की बात, बेटी से बात कर फूट-फूट कर रोया
गिरफ्तारी के बाद लखनऊ में एसटीएफ ने गिरफ्तारी की सूचना देने के लिए अजय की पत्नी रीता को फोन किया लेकिन रीता ने उससे बात करने से मना कर दिया। बोली, चार साल से जिस आदमी ने अपने पत्नी-बच्चों की सुध नहीं ली, उससे क्या बात करना। अगर वह चाहे तो अपनी बेटी से बात कर लें। इसके बाद एसटीएफ ने अजय की बड़ी बेटी से बात कराई। बेटी से बात करके अजय फूट-फूट कर रोया, अपनी गलती भी मानी। एसटीएफ को बताया कि पत्नी मकान अपने नाम कराना चाहती थी। उसे शक था कि वह मकान किसी दूसरे के नाम न कर दें। इसी पर विवाद हुआ तो दोनों अलग हो गए। मकान की दीवार पर विवादित मकान लिख दिया ताकि कोई उसे खरीद न सके।
Leave feedback about this