आगरा।
8…9…7..6…..उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। रविवार 15 अगस्त को होने वाले दाऊजी मंदिर प्रबंध समिति के चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। नए अध्यक्ष पद के लिए मतदान की स्थिति बनेगी या निर्विरोध निर्वाचन होगा..यह तो मौके पर ही सामने आएगा, लेकिन समाचार लिखे जाने तक किसी की दावेदारी खुले तौर पर सामने नहीं आई है। चर्चाओं में कुछ लोगों का मानना है कि मौजूदा अध्यक्ष श्री भगवान स्वरूप शिवहरे का दोबारा निर्विरोध निर्वाचन होना चाहिए, वहीं दूसरी तरफ बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो अध्यक्ष पद पर किसी नए व्यक्ति को देखना चाहते हैं। इसमें एक व्यक्ति का नाम चर्चाओं में जोरों पर है जो मौजूदा प्रबंध समिति में भी वरिष्ठ पद पर हैं। ऐसे में 15 अगस्त को चुनावी प्रक्रिया में क्या मंजर सामने आता है, यह देखना रोचक होगा।
फिलहाल, जैसा कि समिति की पिछली बैठक में आह्वान किया गया था, शिवहरेवाणी में प्रकाशित हो रहे इस समाचार को सभी समाजबंधु मंदिर प्रबंध समिति की ओर से व्यक्तिगत बुलावे के रूप में स्वीकार करें। वैसे भी, एक जागृत और जागरूक समाज से ऐसे निर्णायक अवसरों पर अधिकतम उपस्थिति की अपेक्षा की जाती है। और, बात जब दाऊजी मंदिर जैसी गौरवशाली धरोहर के रखरखाव और प्रबंधन की हो, तो आपकी हाजिरी और आपका मत दरअसल अपने बुजुर्गों की अमानत के प्रति आपकी श्रद्धा और सम्मान की तस्दीक करते हैं।
याद रखिये, चुनाव आने वाले तीन सालों के लिए है। एक चुनाव कितना महत्वपूर्ण होता है और कितना बदलाव लाता है, मौजूदा अध्यक्ष का पांच साल का कार्यकाल इस बात समझने की एक आदर्श मिसाल है। पांच साल पहले वाली यह धरोहर अब बदले स्वरूप में आपके सामने है। पहले अगले और पिछले आंगन के खुला होने के कारण पूरा मंदिर परिसर हर समय हवा और रोशनी से भरपूर रहता था, मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मंदिर के शिल्प सौंदर्य को निहारते हुए नटराज की गुफाओं के चित्रों वाली डिजायन की लौह मुंडेरो से सुसज्जित मुनक्कश छजली और दीवारों वाले हॉल से होकर पिछले आंगन में बने फव्वारे तक पहुंच जाते थे, और शिवहरे समाज के बुजुर्गों की कलात्मक अभिरुचियों को सराहते हुए लौटते थे। लेकिन अब मंदिर वैसा नहीं है। श्रद्धालुओं की आमद मुख्य आंगन तक महदूद होकर रह गई है, इससे आगे बढ़ने का कोई आकर्षण नहीं। मुख्य आंगन के बाद के हिस्से में अंदर के आंगन को पाटकर नया हॉल बना दिया गया है जो भव्य जरूर है लेकिन दिन में वहां उदासी बिखेरने वाला अंधेरा रहता है, हवा के रास्ते भी बंद। कलात्मक अभिरुचि और बुजुर्गों की धरोहरों का ह्रदय से सम्मान करने वाले लोग अक्सर ऐसे बदलावों के हामी नहीं होते।
लेकिन, इन बदलावों के पक्ष में कुछ मजबूत बिंदु भी हैं। पहला तो यह कि मंदिर का पिछला हिस्सा, जिसे धर्मशाला कहते हैं, अब पहले से कहीं अधिक उपयोगी साबित हो रहा है। धार्मिक और मांगलिक कार्यक्रमों के लिए अब कहीं अधिक स्पेस है। इसीलिए पहले से अधिक आयोजन हो रहे हैं जिससे मंदिर की आय बढ़ी है। प्रबंध समिति ने पुनर्निर्माण कार्य में बड़े कौशल और चतुराई से कई दुकानों का पुनर्निर्माण कराकर किराये से होने वाली आय में भी इजाफा किया है। इससे मंदिर के बेहतर प्रबंधन के साथ ही निर्माण से जुड़ी भावी योजनाओं को भी सहूलियत से अंजाम दिया जा सकता है। श्री भगवान स्वरूप शिवहरे की अध्यक्षता वाली मौजूदा समिति ने मंदिर से जुड़े कई पुराने मामलों का निस्तारण भी बड़ी दृढ़ता से किया है।
इस दौरान एक बड़ी समस्या भी उभरी है जिसका उपाय करने में मौजूदा समिति असफल रही है। वह है घरोहर के प्रति समाज की बढ़ती उपेक्षा और कम होती सामाजिक सहभागिता। मंदिर में होने वाले सामाजिक कार्यक्रमों में समाज की उपस्थिति निरंतर कम होती जा रही है। कई सामाजिक आयोजन तो ऐसे हुए जिनमें बड़ी तैयारी के बावजूद हाजिरों की संख्या बमुश्किल दहाई तक पहुंच पाई। यह बहुत चिंताजनक स्थिति है। दाऊजी मंदिर परिसर जो कभी शिवहरे समाज की उपस्थिति से रात-दिन गुलजार रहता था, आज समाज के इंतजार में रहता है। दाऊजी मंदिर जैसी गौरवशाली धरोहर और उसके जागृत समाज के बीच बढ़ती दूरी को पाटना ही अगले अध्यक्ष और उनकी प्रबंध समिति के लिए सबसे बड़ा टास्क होगा। गौर करें, कि इस दिशा में कोई भी पहल धरोहर (प्रबंध समिति) को ही करनी होगी क्योंकि, समाज को इस स्थिति के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया में आपकी भागीदारी इसीलिए भी और जरूरी हो जाती है। बुजुर्गों की अमानत को आगे कैसे सहेजना है, कैसे संवारना है, कैसे उसका और समाज का मान-सम्मान बढ़ाना है, यह आपको तय करना ही होगा..अपने विवेक से, अपने वोट से।
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