शिवहरे वाणी नेटवर्क
भोपाल/वाराणसी।
अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पुरातत्वविद प्रो. विदुला जायसवाल को मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित डा. विष्णु श्रीधर वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया है। मध्य प्रदेश की संस्कृति मंत्री सुश्री ऊषा ठाकुर ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से वाराणसी में प्रो. विदुला जायसवाल को यह सम्मान प्रदान किया। खास बात यह है प्रो. विदुला जायसवाल महान इतिहासकार एवं पुरातत्वविद स्व. डा. काशीप्रसाद जायसवाल की पौत्री हैं। बीती 4 अगस्त को डा. काशीप्रसाद जायसवाल की पुण्यतिथि देशभर में मनाई गई थी।
मध्य प्रदेश के संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा स्थापित यह सम्मान संस्कृति मंत्री की ओर से पुरातत्व अधिकारी डॉ. रमेश यादव ने प्रो. जायसवाल के वाराणसी स्थित निवास पर 2 लाख रुपये की राशि और प्रशस्ति-पत्र के रूप में दिया।
वाराणसी में वर्ष 1947 में जन्मी प्रो. विदुला जायसवाल ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 1973 में शोध विषय ‘ ए स्टडी ऑफ प्रिपेयर्ड कोर टेक्नीक इन पेल्योलिथिक कल्चर ऑफ इंडिया’ पर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण नई दिल्ली में 1977 से 1979 तक और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में 1979 से 2001 तक कार्य किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 2012 में सेवानिवृत्ति के बाद ज्ञान प्रवाह वाराणसी में डॉ. आर.सी. शर्मा पीठ पर अवस्थित हैं।
प्रो. जायसवाल सेन्ट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ आर्कियोलॉजी, ‘एन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और विश्वविद्यालय अनुदान की चयन व परीक्षा समितियों की सदस्य रही हैं। प्रो. जायसवाल के निर्देशन में उत्तरप्रदेश एवं बिहार के अनेक स्थलों पर पुरातत्वीय उत्खनन कार्य कराये गये हैं।
पुर्तगाल, इग्लैण्ड, कनाडा, बुल्गारिया, बांगलादेश आदि देशों में व्याख्यान प्रस्तुत करने वाली प्रो. विदुला जायसवाल के निर्देशन में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों के वित्तीय सहयोग से 25 शोध परियोजनाओं के कार्य पूर्ण हुए हैं। अब तक 21 पुस्तकों की रचना करने वाली प्रो. जायसवाल की पुरातात्विक व्याख्या ‘इथेनो-आर्कियोलाजी एण्ड इथेनों आर्ट हिस्ट्री’ की विधाओं के प्रयोग के लिये विशेष ख्याति है।
(मीडिया रिपोर्ट्स से साभार)
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