शिवहरे वाणी नेटवर्क
वाराणसी।
ईश्वर ने औरत को ही यह ताकत बख्शी है, कि वह जरूरत पड़ने पर मां का बेटा और बच्चों का बाप बन जाती है। कुछ ऐसी ही कहानी है वाराणसी की कंचन जायसवाल की। वैवाहिक जीवन में आई मुश्किलों में भी कंचन ने हौसला नहीं खोया, और ई-रिक्शा चलाकर अपने बच्चों के साथ अपनी मां का भी पेट-पाल रही हैं। कंचन आज अपने जैसी तमाम महिलाओं के लिए मिसाल बन गई है।
कंचन जायसवाल का कहना है कि यदि वह परिवार, रिश्तेदारों और सरकार के भरोसे रहती तो भूखों मरने की नौबत आ जाती। पति ने उसे छोड़ दिया तो लगा कि कैसे जीवन चलेगा। मेरे बच्चों और मेरी मां का जीवन यापन कैसे होगा। इसी उधेड़बुन में कुछ दिन जैसे-तैसे बीतने के बाद एक प्राइवेट स्कूल में कैंटीन चलाकर किसी तरह परिवार का भरण पोषण करती रही।
इसी बीच कोरोना संकट के चलते देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया जिसमें स्कूल भी बंद हो गया। कमाई बिल्कुल बंद हो गई, परिवार पर भूखे मरने की नौबत आ गई। आस-पड़ोस के लोगों ने उस समय कुछ मदद की। एक जून से लॉकडाउन में छूट मिली लेकिन स्कूल कालेज की बंदी जारी रही। ऐसे में आजीविका का संकट बढ़ गया। तब कंचन ने ई-रिक्शा चलाने का फैसला किया।
कंचन ने पहले वाहन चलाना सीखा, और समाज के तानों की परवाह न करते हुए किराये पर ई-रिक्शा लेकर सड़क पर उतर गई। आज महीनाभर हो गया उसे ई-रिक्शा चलाते हुए। कंचन ने बताया कि रिक्शा का किराया 100 रुपये प्रतिदिन मालिक को देना पड़ता है। परिश्रम से वह 250-300 रुपये बचा लेती है। इसी से अपने घर का किराया, अपना और बच्चों के साथ मां का भोजन कपड़ा और दवाई का इंतजाम करती है।
कंचन ने बताया कि परिवार की जरुरत किसी तरह पूरा कर लेती हूं, जो भाड़े में मिलता है उसी में गुजारा कर रही हूं। कंचन ने कहा कि उन्हें ई-रिक्शा चलाने और मेहनत करने में महिला होने पर कोई शर्म नहीं है। कई बार वाहन में बैठने वाले लोग मुझे आश्चर्य से देखते है। चलते समय तरह-तरह का सवाल करते है। मैं उनका धैर्य के साथ जवाब देकर बताती हूं कि रिक्शा मेरे और परिवार के लिए आजीविका का साधन है। पति ने भले ही कंचन को छोड़ दिया हो लेकिन वे उसके नाम पर मांग में सिंदूर लगाती है।
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