किशोर राय
डीडी भारती पर 14 मई से टीवी सीरियल विष्णु पुराण का पुनःप्रसारण होने जा रहा है। बड़ा सवाल यह है कि हर शाम 7 बजे से प्रसारित होने वाले इस सीरियल में क्या उन एपीसोड्स को दिखाया जाएगा, जिनका प्रसारण कलचुरी समाज की घोर आपत्ति के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक दिया गया था। हमे आज भी इस सीरियल के उन एपीसोड्स पर घोर आपत्ति है, जिनमें हमारे आराध्य और भगवान विष्णु के अवतार श्री सहस्त्रबाहु के चरित्र का हनन किया गया है।
इस सीरियल के पुनःप्रसारण की घोषणा के बाद ही से समाज की ओर से उन आपत्तिजनक एपीसोड का प्रसारण नहीं करने की आवाजें उठने लगी हैं। इस बारे में हमने देश के बहुत सारे समाजसेवियों और मनीषियों से बात की। साथ ही इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2003 के फैसले की प्रति प्राप्त करने प्रयास भी किए।
भारत में सिर्फ कलवार, कलार या कलाल ही भगवान सहस्त्रबाहु जी को नहीं मानते वरन ताम्रकार समाज भी आराध्य देव के रूप में पूजता है। मैने ताम्रकार समाज के श्री डॉ लखनलाल ताम्रकार, एडवोकेट श्री शिवकुमार ताम्रकार एवम् श्री सुबोध ताम्रकार (भू विज्ञानी) से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि अगस्त 2003 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पीआईएल श्री आरके जायसवाल एडवोकेट के माध्यम से नागपुर के श्री बसंत लाल साव ने दायर कराई थी।
उस समय श्री साव ने इस कार्य के लिए अखिल भारतीय राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन प्रसार समिति के नाम से एक समिति भी रजिस्टर्ड कराई थी जिसके अध्यक्ष वह स्वयं बने, और महासचिव एडवोकेट आरके जायसवाल (इलाहाबाद) को बनाया था। एडवोकेट जायसवाल को इस केस के लिए नियुक्त कियागया। ताम्रकार समाज ने भी कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए बहुत सारे तथ्य उपलब्ध कराए।
एकवोकेट आरके जायसवाल की इस याचिका में कहा गया था कि भगवान सहस्त्रबाहु को कलवार, हैहय क्षत्रियों द्वारा भगवान के रूप में पूजा जाता है। ग्वालियर, मंडला, महेश्वर और नागदा में इन प्रसिद्ध मंदिर स्थापित हैं। टीवी सीरियल में भगवान सहस्त्रबाहु से संबंधित प्रसंगों का फिल्मांकन विष्णु पुराण की मूल लिपि के विपरीत है। इससे याचीगण की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। इसीलिए सीरियल के एपीसोड संख्या 43 से लेकर 61 तक के प्रसारण पर रोक लगाई जाए। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में लिखा है कि एक दिन गंगा में गंधर्व राज चित्ररथ अपनी पत्नी के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था जिन्हें देखकर रेणुका का चित्त चंचल हो उठा। टीवी सीरियल में चित्ररथ की जगह पर भगवान सहस्त्रबाहु को दिखाया गया है, और उनके आचरण को बहुत ही भद्दे ढंग से दर्शाया है। इसी प्रसंग में रेणुका के पति जमदग्नि को सहस्त्रबाहु के खिलाफ आपत्तिजनक संवाद बोलते हुए फिल्माया गया है, जो विष्णु पुराण में नहीं है।
याचिका में कहा गया कि विपक्षी द्वारा इस तरह के प्रसारण से विष्णु पुराण के मूल टेक्स्ट को नष्ट किया जा रहा है। भगवान सहस्त्रबाहु का चरित्र हनन स्पष्ट रूप से संविधान की धारा 14, 15 और 16, 19 (6) और 25 का उल्लंघन है। याचिका में फिल्म प्रसारण बोर्ड द्वारा इस सीरियल को दिए गए प्रमाणपत्र को निरस्त करने और प्रसारण को रोकने की मांग की गई।
श्रीमान ताम्रकार जी ने मुझे इलाहाबाद के कुछ समाचार पत्रो में प्रकाशित समाचार की कटिंग भी उपलब्ध कराई हैं। उन्होंने बताया कि इस पीआईएल में भारत सरकार एवम् बीआर चोपड़ा को पार्टी बनाया गया था। इस पर बीआर चोपड़ा को इलाहाबाद हाईकोटर् के तत्कालीन चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी और न्यायमूर्ति ओंकारेश्वर भट्ट की पीठ के समक्ष उपस्थित होना पड़ा और एक एफीडेविड देकर वचन दिया कि विवादास्पद एपिसोड का प्रसारण विष्णु पुराण सीरियल में नहीं किया जाएगा।
ताम्रकार समाज के उपरोक्त महानुभावों ने ही मुझे प्रयागराज के एडवोकेट आरके जायसवाल का मोबाइल नंबर उपलब्ध कराया। इस नंबर को मैंने आदरणीय श्रीमती अर्चना जायसवाल जी को दिया और बसंतलाल साव के बारे में भी जानकारी दी। श्रीमती अर्चना जायसवाल ने दोनों से इस संबंध में बात की। इसहमें विश्वास है हम श्रीमती अर्चना जायसवाल जी के मार्गदर्शन में शीघ्र ही स्टे आर्डर की कापी प्राप्त करने में सफल होंगे। फिर भी हम सभी को अपना अपना प्रयास जारी रखना होगा। और सूचना प्रसारण मंत्रालय को याद दिलाना होगा कि कोर्ट का वह निर्णय केवल उस समय के लिए नहीं था। हमारी जो आपत्ति पहले थी, वह आज भी है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रीय कल्चुरी एकता महासंघ मध्यप्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष हैं )
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