शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
आज हम भले ही अलग-अलग वर्गों और उपनामों में बंटे हुए हैं, लेकिन हम सब कलचुरी हैं। क्योंकि, हम काल को चूर-चूर करने वाले प्रतापी राजा के वंशज हैं। जी हां, हम सब राजराजेश्वर सहस्त्रबाहु अर्जुन की संतति हैं, जिनका जन्मोत्सव हर वर्ष कार्तिक शुक्ल की सप्तमी को मनाया जाता है। कलचुरी समाज के सभी वर्ग अपने इष्टदेव का जन्मोत्सव मनाने की तैयारी में जुटे हैं। कहीं एक दिवसीय उत्सव है, तो कहीं साप्ताहिक या पाक्षिक आयोजन भी हो रहे हैं।
प्राचीन काल मे वर्ण और वंश व्यवस्था प्रचलित थी, जाति प्रथा नही थी। किसी के नाम के आगे या पीछे कुछ नही होता था । जैसे राम, लक्ष्मण, कृष्ण, बलराम, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव। राजाओं के नाम से वंश की पहचान हुआ करती थी। हम सब चंद्रवंश की शाखाओं से जुड़े हैं । चंद्रवंश में “यदु” राजा हुए जिनसे यदुवंश चला। यदुवंश में हैहय राजा का जन्म हुआ जिनसे हैहय वंश चला। हैहय वंश में ही कृतवीर्य का जन्म हुआ और कर्तवीर्य से सहस्त्रार्जुन जी का जन्म हुआ ।
सहस्त्रार्जुन जी शिव के उपासक थे और उन्हें शिव का वरदान भी मिला था। सहस्त्रार्जुन जी ने पूरे विश्व पर शासन किया था और रावण जैसे पराक्रमी को भी उन्होंने बहुत आसानी से युद्ध मे पराजित कर अपने कैद में रखा था। सहस्त्रार्जुन जी के युग से ही कलचुरी वंश की उत्पत्ति हुई। सहस्रार्जुन की कथाएं, महाभारत एवं वेदों के साथ सभी पुराणों में प्राय: पाई जाती हैं।
सहस्त्रार्जुन जी के छह पीढ़ी बाद बलभद्र यानी बलराम का जन्म हुआ जो कि कृष्णा भगवान के अग्रज थे । कुछ मान्यताओं में कलचुरी समाज को बलभद्र का वंशज माना जाता है। आगरा में शिवहरे समाज की प्रमुख धरोहर भगवान बलभद्र यानी दाऊजी महाराज को ही समर्पित है, जिसे मंदिर श्री दाऊजी महाराज के नाम से जाना जाता है। हालांकि कालक्रम के लिहाज से देखें तो कलचुरी सहस्त्रबाहु अर्जुन के ही वंशज माने जाएंगे।
जो भी हो, कलचुरी हमारा वंश है और जहां तक वर्ण की बात है तो अतीत में हम क्षत्रिय थे लेकिन अब कर्म के आधार पर वैश्य हो गए हैं। हमारे सौ से अधिक उपनाम हैं जैसे शिवहरे, जायसवाल, चौकसे, राय, महाजन, ओमहरे आदि-आदि…। (सभी उपनाम जानने के लिए www.shivharevaani.com के होमपेज पर स्पेशल के कॉलम में कलचुरी परिवार शीर्षक को क्लिक करें।) सरकारी रिकार्ड में हमारी मूल जाति कलवार, कलाल, कलार दर्ज है जो हमारी मूलजाति है और ये तीनों उपनाम एक-दूसरे के अपभ्रंश हैं।
महाराज सहस्त्रबाहु अर्जुन का जन्म महाराज हैहय के दसवीं पीढ़ी में माता पदमिनी के गर्भ से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को श्रावण नक्षत्र में प्रात: काल के मुहूर्त में हुआ था। राजा कृतवीर्य के संतान होने के कारण ही इन्हें कार्तवीर्य अर्जुन कहा जाता है, और भगवान दत्तात्रेय के भक्त होने के नाते उनकी तपस्या कर मांगे गए सहस्त्र बाहु भुजाओं के बल के वरदान के कारन उन्हें सहस्त्रबाहु अर्जुन भी कहा जाता है।
सहस्रार्जुन विष्णु के चौबीसवें अवतार हैं, इसलिए उन्हें देवता मानकर पूजा जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी की सहस्रार्जुन जयंती एक पर्व और उत्सव के रूप में मनाई जाती है। हिंदू धर्म संस्कृति और पूजा-पाठ के अनुसार स्नानादि से निवृत हो कर व्रत का संकल्प करें और दिन में उपवास अथवा फलाहार कर शाम में सहस्रार्जुन का हवन-पूजन करे तथा उनकी कथा सुनें।
हरिवंश पुराण के अनुसार, जो प्राणी सुबह-सुबह उठ कर श्री कार्तवीर्य सहस्त्रबाहु अर्जुन का स्मरण करता है उसके धन का कभी नाश नहीं होता है और यदि कभी नष्ट हो भी जाय तो पुन: प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार जो लोग श्री सहस्रार्जुन भगवान के जन्म वृतांत की कथा की महिमा का वर्णन कहते और सुनाते हैं उनकी जीवन और आत्मा यथार्थ रूप से पवित्र हो जाती है वह स्वर्गलोक में प्रशंसित होता है
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