शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
दीपोत्सव के चौथे दिन सोमवार को आगरा के शिवहरे समाज ने अपनी दोनों धरोहरों में एक दिया प्रकृति के नाम पर जलाया, जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हवा, पानी, पेड़-पौधे और गाय जैसे उपहारों के दाता भगवान नागेश्वर श्रीकृष्ण के साक्षात स्वरूप गोवर्धन महाराज के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अन्नकूट का प्रसाद चढ़ाया। और, गोवर्धन महाराज से अपनी छत्रछाया सदैव बनाए रखने की प्रार्थना की। यही नही, लोगों ने अपने घरों पर 'स्वास्थ्य-धन' की देवी गऊमाता के रेडियम-रोधी गोबर से गोवर्धन महाराज की प्रतिकृति बनाकर उसकी पूजा-अर्चना की, और इस तरह लक्ष्मी पूजन को पूर्णता प्रदान की।
सदरभट्टी स्थित मंदिर श्री दाऊजी महाराज में गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट समारोह पूर्ण विधि-विधान से संपन्न हुआ। समाजबंधुओं की उपस्थिति बीते वर्षों के मुकाबले अधिक थी, जो इस आयोजन की सबसे उत्साहजनक बात रही जिसने 3 नवंबर को इसी जगह होने वाले भगवान सहस्त्रबाहु जन्मोत्सव की तैयारी कर रही मंदिर श्री दाऊजी महाराज प्रबंध समिति को हौसला दिया।
मंदिर के पुरोहित श्री महेश पंडितजी ने ब्रज की सांस्कृतिक पहचान वाली साफा-टोपी पहनकर समिति के अध्यक्ष श्री भगवान स्वरूप शिवहरे, अन्य पदाधिकारियों और उपस्थित समाजबंधुओं से पूजन कराया। इस दौरान मंदिर परिसर गोवर्धन महाराज के जयकारों से गूंज उठा।
इस दौरान मंदिर प्रबंध समिति के वरिष्ठ पदाधिकारी सर्वश्री बिजनेश शिवहरे, आशीष शिवहरे (जिज्ञासा पैलेस), धर्मेंद्र राज शिवहरे (कोषाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा), महेश शिवहरे, सियाराम शिवहरे एडवोकेट, संतोष गुप्ता, प्रमोद गुप्ता, अजय गुप्ता सीए, विजय पवैया के साथ ही वरिष्ठ समाजसेवी सर्वश्री सुरेशचंद्र शिवहरे (सिकंदरा), संजय शिवहरे (प्रतापपुरा), मुन्नालाल शिवहरे, रामजी शिवहरे, वीरेंद्र गुप्ता (शिवहरे) एडवोकेट, विजय शिवहरे (दयालबाग), सुनील शिवहरे, मनोज शिवहरे, अजय शिवहरे अग्गू, शिवहरे समाज एकता परिषद के संयोजक अमित शिवहरे, शिवहरे-जायसवाल युवा मंच के अध्यक्ष जीतू शिवहरे, राजीव शिवहरे (रोडवेज) समेत बड़ी संख्य में समाजबंधु उपस्थित रहे। समारोह में महिलाओं की उपस्थिति भी खासी उत्साहजनक रही। सभी ने गाय के गोबर से बनाई गई गोवर्धन महाराज की प्रतिकृति की परिक्रमा की और अन्नकूट की स्वादिष्ट प्रसादी ग्रहण की।
वहीं लोहामंडी में आलमगंज स्थित मंदिर श्री राधाकृष्ण में गोवर्धन पूजा खास अंदाज में मनाई गई। मथुरा से पधारे आचार्य पवन चतुर्वेदी ने ठेठ ब्रज स्टाइल में गोवर्धन महाराज की पूजा कराई। वहां उपस्थित समाजबंधुओं और महिलाओं से सात कोस की परिक्रमा के लिए गोवर्धन महाराज के सात चक्कर लगवाए। मंत्रोच्चार के बीच गोवर्धन महाराज के जयकारों ने मंदिर परिसर में ही गोवर्धन का माहौल बना दिया।
इस दौरान दौरान मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष अरविंद गुप्ता, उपाध्यक्ष अशोक शिवहरे अस्सो भाई, महासचिव मुकुंद शिवहरे, सहसचिव संजय शिवहरे, ऋषि शिवहरे, धीरज शिवहरे (अध्यक्ष, श्री राधे सेवा समिति) अलावा सर्वश्री विनय शिवहरे, श्रीरंजन शिवहरे, अजय शिवहरे (बाग मुजफ्फर खां), रवि शिवहरे, राजेंद्र शिवहरे (मास्टर साहब), राजेंद्र शिवहरे समेत खासी संख्या में समाजबंधुओं की उपस्थिति रही। कार्यक्रम के अंत में सभी ने अन्नकूट की प्रसादी प्राप्त की।
आपको बता दें कि दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व होता है। गिरिराज गोवर्धन को श्रीकृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि स्वजनों के कल्याण के लिए ही श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का विराट रूप धरा। इसलिए उन्हें गिरिराज कहा गया है। गोवर्धन पूजा करके हम सभी लोग ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उसने हमें विभिन्न प्राकृतिक चीजें देकर हमारा पोषण किया है।
एक वैज्ञानिक परंपरा
जो लोग भारतीय त्योहारों को रूढ़िवादी परंपरा और उनको दकियानूसी की संज्ञा देते हैं, उन्हें इन पर्वों के वैज्ञानिक महत्व को भी जानना चाहिए। गोवर्धन पूजन के दिन सभी के मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि गोवर्धन पूजा में गोबर को प्रयोग क्यों किया जाता है। गोबर से ही क्यों गोवर्धन पर्वत को बनाया जाता है। दरअसल, वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गोवर्धन का मतलब होता है गो संवर्धन। यानी गाय का संवर्धन।
इसलिए भी जरूरी है गोवर्धन पूजा
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बारिश के दिनों में या बारिश होने के बाद विभिन्न रोगों को जन्म देने वाले कीड़े-मकोड़े और बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं। गोबर एक ऐसा जबरदस्त एंटी बैक्टीरियल तत्व है जो गांव देहात में इन कीड़े-मकोड़ों को तो मार ही देता है साथ ही यह विभिन्न रोगों के कारक बैक्टिरियां को भी खत्म करता है। गांव और घर के आगन में गोबर की लिपाई-पुताई से इन सबका खात्मा हो जाता है।
रेडियम रोधी होता है गोबर
यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि गाय के गोबर से जहां लिपाई-पुताई हो जाती है, तो फिर उस जगह से रेडियम किरणें पार नहीं हो सकती। गाय के दूध और गोमूत्र में से स्वर्ण भी निकलता है, यह भी वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है। पुराने समय में तो ग्रामीण क्षेत्र के ग्वालों को गोवर्धन पूजा के दिन विशेष सम्मान दिया जाता था। मेरठ कालेज के भूगोल के रिटायर्ड प्रोफेसर डा. कंचन सिंह कहते हैं कि ये भारतीयों के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। इसलिए हम भारतीय को अपनी पुरातन भारतीय संस्कृति से जुड़े रहने की जरूरत है।
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