शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
पंचोत्सव यानी दीपोत्सव के तीसरे दिन दीपावली पर सभी ने अपने घर-प्रतिष्ठानो में सुख और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी का पूजन किया, दीप जलाए। आज सोमवार को लक्ष्मी के गौ-स्वरूप का पूजन है जो हमें अपने दूध से सेहत का उपहार देती हैं। इसीलिए आज अपने लक्ष्मी पूजन को पूर्णता प्रदान करें और परिवार, कुटुम्ब तथा समाज, तीनों स्तरों पर गोवर्धन पूजा औऱ अन्नकूट में अवश्य शामिल हों।
आगरा के शिवहरे समाज का सौभाग्य है कि यहां उसकी दो ऐसी धरोहरें हैं जहां गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट का आयोजन होता है। ऐसे में समाज के सभी बंधुओं के लिए मौका होता है कि प्रकृति और पर्यावरण के साथ मानव संबंधों को दर्शाने वाली इस पूजा में भाग लेकर इसके पुण्य को प्राप्त करें। इस पूजा का परम उद्देश्य भी तभी पूरा होगा, जब हम सामूहिक आयोजनों में भाग लें और अन्नकूट का प्रसाद का ग्रहण करें।
सदरभट्टी चौराहा स्थित मंदिर श्री दाऊजी महाराज में आज शाम 6 बजे से गोवर्धन पूजा होगी, जिसके बाद सायं 7 बजे से अन्नकूट प्रसादी वितरण किया जाएगा। मंदिर श्री दाऊजी महाराज प्रबंध समिति के अध्यक्ष श्री भगवान स्वरूप शिवहरे एवं उनकी कार्यकारिणी ने सभी समाजबंधुओं से समारोह में शामिल होकर धर्मलाभ लेने और स्वादिष्ट अन्नकूट ग्रहण करने का अनुरोध किया है।
मंदिर श्री राधाकृष्ण प्रबंध समिति के महासचिव मुकुंद शिवहरे के मुताबिक, मंदिर परिसर में सायं छह बजे गोवर्धन पूजा होगी जिसके बाद अन्नकूट वितरण किया जाएगी। समिति के अध्यक्ष श्री अरविंद गुप्ता समेत संपूर्ण समिति ने समाजबंधुओं को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट समारोह में भाग लेने की अपील की है।
गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। इससे पहले ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी। मगर भगवान कृष्ण ने लोगों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।
इसकी जानकारी होने इंद्र ने भारी वर्षा कर ब्रजवासियों को डराने का प्रयास किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों को उनके कोप से बचा लिया। इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है।
सब ब्रजवासी सात दिन गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहे। इन सातों दिनों ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे मिलजुल कर भोजन तैयार किया और सामूहिक रूप से ग्रहण किया। माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के मान-मर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और एकजुट होकर उनकी रक्षा करें।
वहीं अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है अन्न का समूह। विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही इस उत्सव या पर्व को नाम अन्नकूट पड़ा है। अन्नकूट में अन्न और शाक-पक्वानों को भगवान को अर्पित किये जाते है और वह सर्वसाधारण में वितरण किया जाता है।
Leave feedback about this