August 6, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार

चौथ की रात यूं चकरा गया चांद…एक कहानी

सोम साहू
सौंदर्य की प्रतीक सोलह कलाओं के स्वामी चांद ने आज रात पृथ्वीलोक के भारतखंड में झांका तो हतप्रभ रह गया। सोलह श्रृंगार में अप्रतिम सौंदर्य की आभा बिखेर रहे ढेरों ‘चांद’ अपनी-अपनी छतों पर थे। पहले तो चांद जलभुन कर रह गया, अपने सौंदर्य को लेकर उसका गुमान चूर जो हो रहा था। लेकिन तभी नारदजी वहां आए और उसके कान में कहा, ‘महाराज गुस्सा न करें, ये चांद नहीं हैं, ब्याहताएं हैं जो आपके दर्शन को व्याकुल हैं..अपने-अपने पति की दीर्घायु की कामना लेकर आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं।‘ चांद का अहं तुष्ट हुआ, अब ऐंठते हुए पूछा-क्यों? नारद ने कहा-‘महाराज, इसका तो एक ही उत्तर है, प्रेम।‘ चांद चहका-‘मुझसे!’ चांद का इतना कहना था कि पूरे देवलोक में ठहाके गूंज गए..। नारद ने कहा- ‘नहीं महाराज..अपने-अपने पति से।‘ सुनकर चांद झेंप गया..।
चांद ने नारद से कहा-‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा, तनिक विस्तार से समझाइये माजरा क्या है।‘ नारदजी ने बताया, ‘महाराज, हिंदू धर्म में विवाह की परंपरा अन्य धर्मों में विवाह की परंपरा से अलग है। कई धर्मों में जहां विवाह एक अनुबंध होता है जिसमें तलाक के स्पष्ट या अस्पष्ट अनुच्छेद होते हैं, वहीं हिंदू विवाह की महानता उनमें विवाह अनुष्ठान से ही स्पष्ट हो जाती है, वर-वधु अग्नि के समक्ष सात फेरे लेकर सात कसमों के साथ सात जन्मों के बंधन में बंधते हैं। इन कसमों और भावनाओं के साथ विवाह के उपरांत पति-पत्नी के बीच जिस प्रेम की उत्पत्ति होती है, वह हर दिन और प्रगाढ़ होता जाता है। यह पति के प्रति समर्पण और प्रेम ही है जो हर भारतीय महिला के सौंदर्य में चार चांद लगा देता है।
सुनकर अच्छा लगा, मगर चांद मनचला जो ठहरा, उसने पूछा, ‘क्यों भाई नारद..आपने कहा समय के साथ प्रेम प्रगाढ़ होता जाता है, लेकिन भाई.. बोरियत भी तो कोई चीज होती होगी?’  नारद ने तपाक से जबाव दिया, ‘महाराज बोरियत होती तो ये महिलाएं आपको मांगती, न कि आपसे अपने पति की दीर्घायु मांगती।’ देवलोक फिर ठहाकों से गूंज गया। नारद ने आगे कहा-‘महाराज, हिंदू धर्म में हर वर्ष एक अनुष्ठान होता है जो उनके सात फेरों के सात वचनों को ताजा कर देता है जिसे करवा चौथ कहते हैं। यह एक ऐसा दिन होता है जब विवाह बंधन की पुरानी से पुरानी बासी कढ़ी भी उबाल मारने लगती है। पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहने का तप करती हैं।‘
तभी पृथ्वी लोक पर करोड़ों थालियों में दिये जल उठे, और महिलाओं ने उसकी रोशनी में अपने चेहरे चांद की ओर कर लिये। सोलह श्रृंगार में सजे उनके अप्रतिम सौंदर्य से चांद की आंखें चुंधिया गईं, पूरे दिन भूखे-प्यासे रहने के बाद भी इन नाजुक सी दिखने वाली महिलाओं के सौंदर्य में इतना तेज भला कैसे हो सकता है। चांद सोच-सोच कर घबरा सा गया..गला सूखने लगा, इससे पहले कि वह किसी दासी से पानी लाने को कहता, उन ब्याहताओं ने जल अर्पित कर दिया, स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ। फिर पति के दीर्घायु की मन्नत मांगी, तो उन तेजस्विनियों के सौंदर्य, प्रेम, समर्पण, पतिव्रत से अभिभूत चांद को कहना ही पड़ा -‘तथास्तु।‘
चांद का आशीष लेने के बाद पृथ्वीलोक में सभी पतियों ने अपने हाथों से अपनी-अपनी पत्नियों को पानी पिलाया और एक निवाला खिलाकर उनका व्रत तोड़ा। चांद भी थालियों में सजे व्यंजन चखने लगा, एक व्यंजन सबसे स्वादिष्ट लगा, उसने नारद से पूछा, ‘ये क्या है?’ नारज ने कहा, ‘कढ़ी है महाराज..एकदम ताजी कढ़ी..।’ देवलोक में फिर ठहाके गूंज गए।
इसी हंसी-खुशी के माहौल में सभी देवता करोड़ों धर्मपरायण महिलाओं को उनके पति की दीर्घायु का आशीर्वाद देकर उनके सौंदर्य, तप और पतिव्रत को सम्मानित करने के लिए चांद को बधाई देने लगे। और इधर पृथ्वीलोक के भारतखंड में….सारे चांद अपनी-अपनी छतों से उतरकर अपने-अपने घरों में अपने-अपने चांद के साथ हो लिए।

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