शिवहरे वाणी नेटवर्क
भोपाल।
कहते हैं कि महिलाएं अगर कुछ करने की ठान लें तो करके ही दम लेती है। लक्ष्मी शिवहरे की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो अपने पति राकेश शिवहरे की असमय मौत के बाद टूटी नहीं, बल्कि अपने बेटे को लालन-पालन के लिए सारे स्टीरियोटाइप को तोड़ते हुए कुली बन गई। बिल्ला नंबर-13 लक्ष्मी शिवहरे भोपाल स्टेशन पर मुसाफिरों का बोझ उठाती है।
लक्ष्मी शिवहरे की शादी 2009 में राकेश शिवहरे से हुई थी। उस समय लक्ष्मी की उम्र 20 वर्ष थी। राकेश भोपाल रेलवे स्टेशन पर कुली था और उसी साल उसे बिल्ला नंबर 13 अलॉट हुआ था। शादी के दो साल बाद उनके एक बेटा हुआ। मेहनतकश जिंदगी सुकून दे रही थी, लेकिन दुर्भाग्य से राकेश को किसी तरह शराब की लत लग गई। घरवालों और दोस्तों ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन राकेश ने शराब नहीं छोड़ी। वह बीमार रहने लगा और इसी साल फरवरी में उसकी मौत हो गई।
सास-ससुर पहले ही नहीं थे, जेठ थे लेकिन उनकी माली हालत भी ऐसी नहीं थी कि बहुत मदद कर पाते। मायका भी आर्थिक रूप से बेहद कमजोर..। राकेश के कुली दोस्तों ने लक्ष्मी को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। लक्ष्मी शिवहरे के मुताबिक, एक दिन पति राकेश के एक दोस्त ने उससे पूछा कि राकेश के बिल्ला नंबर-13 का क्या करोगी, किसी को दे दोगी या राकेश की जगह खुद काम करोगी? इस सवाल ने लक्ष्मी को उलझन में डाल दिया, ‘ज्यादा पढ़ी-लिखी हूं नहीं…मेहनत मजदूरी के सिवा क्या कर सकती हूं।’ दो-तीन दिन सोचने विचारने में लग गए, और आखिरी में फैसला किया कुली बनने का।
राकेश के दोस्तों ने बिल्ला नंबर-13 को लक्ष्मी के नाम एलॉट कराने की प्रक्रिया चालू की। बीते अगस्त में उसे राकेश का ही बिल्ला नंबर 13 एलॉट हो गया। तब से वह भोपाल रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रही है। लक्ष्मी बताती है कि अब पता चला है कि वजन उठाने के लिए केवल ताकत की नहीं, ट्रिक की भी जरूरत होती है। भोपाल स्टेशन के अनुभवी कुलियों से वह यही सिखा रहे हैं। लक्ष्मी को रात की ड्यूटी मिली है। पूरा दिन घर में बेटे के साथ गुजरता है, रात को स्टेशन आ जाती है और फिर पूरी रात ट्रेनों के पीछे भागने, मुसाफिरों का बोझ उठाने का क्रम।
Leave feedback about this