November 23, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार

एक समर्पित जीवन…भोलेनाथ की पवित्र गंगा के सच्चे पुत्र थे राकेश जायसवाल

शिवहरे वाणी नेटवर्क
कानपुर।
सावन में भोलेनाथ भगवान शिव की उपासना का खास महत्व है। इस सावन भी हर तरफ शिव-भक्ति के अदभुत नजारे हैं। शिवभक्त मीलों की दूरी पैदल तयकर पवित्र नदियों खासकर गंगा का जल ला रहे हैं और उससे भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ही गंगा को स्वर्ग से उतारकर लाए थे। लेकिन अफसोस.. हम इंसानों ने गंगा की कद्र नहीं जानी, उसे इस कदर दूषित-प्रदूषित कर दिया है कि मैदानी इलाकों में गंगा का जल आचमन करने लायक तक नहीं रहा। ऐसे में याद आता है एक सच्चा शिवभक्त जिसने गंगा की सफाई को ही उपासना माना और अपना जीवन भोलेनाथ की गंगा को समर्पित कर दिया। यह है कानपुर के राकेश जायसवाल।
1962 में जन्मे राकेश जायसवाल की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई तो मिर्जापुर में हुई. लेकिन 1991 में वह एनवायरमेंटल पॉलिटिक्स पर पीएचडी करने के लिए कानपुर शिफ्ट हो गए। वह यहां अपनी बहन के यहां रहते थे। इसी दौरान गंगा के प्रदूषण की ओर उनका ध्यान गया, जब एक दिन घर के नल ने गंदा और बदबूदार पानी उगला। यह घटना उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट बन गई। लोगों के लिए साफ पेयजल का सवाल उन्हें गंगा तक ले गया जो कानपुर में औद्योगिक और शहरी गंदगी गिरने से बजबजा रही थी। पवित्र गंगा की इस हालत ने उन्हें झकझोर दिया, और तभी उन्होंने गंगा की सफाई के लिए कुछ करने का बीड़ा उठा लिया।  सबसे पहले उन्होंने कानपुर में गंगा की 13 किलोमीटर लंबी पट्टी का नाव से सर्वे किया, उसके किनारे बसे लोगों से बात की। इस तरह कई महीनों तक गंगा के प्रदूषण के कारणों और उसके दुषप्रभावों का गहन अध्ययन किया। 
1997 में राकेश जायसवाल ने कानपुर में इको फ्रेंड्स नाम का एक एनजीओ बनाया और गंगा की सफाई का काम शुरू कर दिया। इको फ्रेंड्स में केवल दो ही लोग थे, एक जायसवाल खुद और दूसरे, उनके ऑफिस असिस्टेंट। कोई फंड नहीं था, कोई मैनपॉवर नहीं। शुरुआत में उन्होंने  गंगा के किनारे बसे गांवों में रहने वाले हजारों लोगों को नदी को प्रदूषित करने से रोकने के लिए प्रेरित किया। हालांकि जायसवाल जानते थे कि, इतने भर से बात बनने वाली नहीं है। कुछ ऐसा करना होगा जिससे शासन-प्रशासन को भी समस्या की गंभीरता का अहसास हो सके। 
राकेश जायसवाल ने ग्रामीणों को एकजुट किया और उनकी मदद से गंगा में गिरने वाले खुले नालों को रेत के कट्टे लगाकर ब्लॉक कर दिया। यह एक सांकेतिक लेकिन बहुत साहसिक कदम था जो समस्या की ओर प्रशासन का ध्यान खींचने में सफल रहा। देखते ही देखते जायसवाल को ख्याति मिल गई। इसके बाद जायसवाल ने गंगा की सफाई के लिए कुछ ठोस पहलें कीं। 
अपने सर्वे में जायसवाल ने पाया था कि गंगा के प्रदूषण का एक बड़ा कारण इसमें शवों को प्रवाहित करना भी है। कानपुर में 1980 के दशक में गंगा एक्शन प्लान के तहत अज्ञात लाशों के अंतिम संस्कार के लिए विद्युत शवदाह-गृह स्थापित किया गया। लेकिन विद्युत शवदाह-गृह ज्यादातर खराब ही रहता था। परंपरागत तरीके से हिंदू विधि से अंतिम संस्कार काफी महंगा पड़ता था। इसलिए पुलिसवाले शवों को गंगा में प्रवाहित कर देते थे। 
अधजली लाशों को भी गंगा में डाल दिया जाता था। हिंदू रीति में मृत बच्चों और अविवाहित महिलाओं के शवों को नहीं जलाया जाता है और उनके शवों को नदी की सतह पर छोड़ दिया जाता है। जायसवाल ने मछुआरों और नाविकों को एकत्र किया जिनकी आजीविका गंगा पर निर्भर थी और उनके साथ गंगा से शवों को निकालने का अभियान छे़ड़ दिया। गंगा से निकाली गईं लाशों को नदी तट पर दफना दिया। मानसून के बाद उफनाई गंगा में इन शवों के अवशेष बह गए।
जायसवाल के प्रयासों से ही कानपुर का विद्युत शवदाह-गृह सुचारू हो सका, इसके शुल्क कम किए गए ताकि लोग लकड़ी से शवदाह के बजाय इसे प्राथमिकता दें। जायसवाल के अभियान से प्रेरित होकर कानपुर के सभी पुलिस थानों में एक कोष बनाया गया ताकि अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह-गृहों में कराया जा सके। 
जायसवाल स्कूलों में जा-जाकर बच्चों को गंगा के महत्व और इसे साफ रखने की जरूरत की जानकारी देते थे। कानपुर में गंगा की पट्टी सबसे अधिक प्रदूषित है। यूरोप और अमेरिका की मीडिया ने इस पर कई बार स्टोरी की हैं और इसके लिए उनके पत्रकारों को कानपुर आना होता था। लेकिन किसी भी पत्रकार की स्टोरी तब तक पूरी नहीं होती थी जब तक वह जायसवाल से नहीं मिल लेता था। जायसवाल पत्रकारों को गाइड करते थे, गंगा प्रदूषण के तमाम पहलुओं और कारणों की बहुत विस्तार से जानकारी देते थे। वह गंगा पर कई घंटों तक बिना रूके बात कर सकते थे, लोगों के सवालों के जवाब देते थे और इसके लिए उन्हें किसी कागज या दस्तावेज का संदर्भ लेने की जरूरत नहीं होती थी, मानो सारी जानकारियां उन्हे कंठस्थ हों।
जायसवाल का कहना था कि गंगा का पानी कृषि और घरेलू इस्तेमाल में डायवर्ट नहीं किया जाना चहिए। गंगा या किसी अन्य नदी का भी ऐसा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। वैकल्पिक व्यवस्थाएं करना सरकार का काम है। गंगा पर बांध मत बनाइये, गंगा को मुक्त बहने दीजिए..फिर देखिए..हमारी पवित्र गंगा हमेशा साफ रहेगी।
आज राकेश जायसवाल हमारे बीच नहीं हैं। बीते माह महज 57 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। गंगा के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया और उनके फूल गंगा की धारा में प्रवाहित कर दिए गए। वह सच्चे अर्थों में शिवभक्त थे जिन्होंने भोलेनाथ की लाई गंगा को दिल से मां का दर्जा दिया, गंगा और उसके तटों को ही अपनी कर्मभूमि बना लिया, और अपनी जीवन गंगा को समर्पित कर दिया।  
 

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