शिवहरेवाणी नेटवर्क
जमशेदपुर।
झारखंड की चंदन जायसवाल ने अपने नाम को सार्थक कर दिया है। उसके इरादों की खुश्बू से एक ऐसी बस्ती महक उठी है जिसके मर्द नशे डूबे रहते थे, और औरतें हताशा से घिरी थीं। नई पीढ़ी अपराध की ओर प्रवृत्त हो रही थी। चित्रकारी का शौक रखने वाली चंदन ने जब कूची को छोड़ हाथ में लाठी उठा ली, तो सारी बुराइयां उसका हौसला देख बस्ती छोड़ गई। आज बस्ती के परिवारों में शांति और सुकून है, उमंग है।
चंदन जायसवाल को प्रेस ऑफ इंडिया दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय गौरव अवार्ड से 24 जनवरी को सम्मानित किया गया। उन्हें यह अवार्ड बच्चों के अधिकारों एवं शिक्षा, महिला सशक्तीकरण के लिए संघर्ष के अलावा सरकार की योजनाओं का लाभ आमजन तक पहुंचाने में उनके योगदान के लिए दिया गया है। जायसवाल महिला संगठन से जुड़ीं चंदन जायसवाल को कई स्वजातीय मंचों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
चंदन जायसवाल के संघर्ष की यह कहानी झारखंड के पूर्वी सिंहभूमि जिले के जुगसलाई क्षेत्र की है। यहां एमई स्कूल रोड के पास एक हरिजन बस्ती है जिसमें शराब की छह अवैध दुकानें थीं। इन दुकानों के चलते बस्ती के लोग शराब के नशे मे डूबे रहते थे। घर की महिलाएं टोकतीं, तो उन्हें पीटा जाता था। बस्ती का हर परिवार इससे बुरी तरह प्रभावित था। 2016 की बात है, ह्यूमन राइट्स की पढ़ाई कर चुकीं चंदन ने इस बस्ती को दुर्दशा से निकालने की ठानी।
चंदन ने सबसे पहले बस्ती की महिलाओं से मुलाकात की। बस्ती में शराब की दुकानें बंद कराने और मर्दों को शराब नहीं पीने देने के लिए उन्हें तैयार किया। शराब बेचने वालों से आग्रह किया कि वे अपनी दुकानें बंद कर दें। लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ। चंदन ने अधिकारियों से उनकी शिकायत की। पुलिस ने छापे मारे लेकिन शराब का कारोबार चलता रहा।
चंदन की इस नेकनीयति ने बस्ती की औरतों को प्रेरित किया, और कुछ ही समय में 50 महिलाएं उसके साथ जुड़ गईं। शुरूआत में इन महिलाओं ने चंदन के नेतृत्व में हाथों में डंडे लेकर बस्ती में जुलूस निकाले, फिर शराब की दुकानों पर धावा बोलना शुरू कर दिया। ये लठैत महिलाएं रोज शाम को छह बजे से शराब की दुकानों की ओर जाने वाले रास्ते पर तैनात हो जाती, और वहां जाने वाले मर्दों को रोकती थीं। रात दस बजे तक ये लठैत महिलाएं इसी पहरेदारी में डटी रहती थीं। पहले तो बस्ती के मर्दों और शराब दुकान स्वामियों ने इसे हल्के मे लिया और महिलाओं के थकने का इंतजार किया। लेकिन चंदन न खुद थकीं और ना ही बस्ती की महिलाओं के हौसले गिरने दिये। पूरे डेढ़ साल तक बस्ती की महिलाएं यूं ही लाठी लेकर रोज शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक पहरे पर पूरी सख्ती से तैनात रहीं, कई बार मर्दों की पिटाई तक की। बिक्री न होने से शराब की दुकानें भी बंद हो गईं।
आज बस्ती की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। बस्ती में अब कोई मर्द शराब के नशे में नजर नहीं आता, लोग अपराध से दूर हो गए हैं, अपने काम-धंधों में लग गए हैं। बस्ती के बच्चों को चंदन पेंटिंग सिखा रही है, उनकी प्रतिभा और अभिरुचियों को निखारने का प्रयास कर रही है। हर परिवार खुश है, और इसके लिए वे क्रेडिट देते हैं चंदन जायसवाल को।
38 वर्षीय चंदन जायसवाल ने अभी विवाह नहीं किया है। कहती है कि जीवन में अभी और भी कुछ मन का करना हैं। चार बहनों और तीन भाइयों के साथ पली-बढ़ी चंदन के पिता का निधन 2003 में हो गया था।
निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की चंदन ने बड़े संघर्ष से पढ़ाई लिखाई की। बच्चों को पेंटिंग सिखाते हुए एकाउंट्स में स्नातक और पीजी किया। इग्नु से पीजी डिप्लोमा इन रूरल डेवलपमेंट और फिर जमशेदपुर वीमेंस कालेज से ह्यूमन राइट्स में सर्टिफिकेट कोर्स भी किया है। राजस्थान सेवासदन के पास अपने घर पर फाइन आर्ट का स्कूल चलाती हैं जिसमें दो सौ बच्चे पेंटिंग सीख रहे हैं। चंदन ने फाइन आर्ट्स में प्राचीन कला केंद्र से पांच वर्षीय और बंगीय परिषद से सात वर्षीय कोर्स भी किया है।
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