November 21, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार

क्या गुंजन पर मेहरबान होगी जिंदगी…दुआ कीजिये…और कुछ कीजिये

शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
आगरा में लोहामंडी निवासी अमित गुप्ता (शिवहरे) इन दिनों अपने जीवन के सबसे बड़े संघर्ष से गुजर रहे हैं, संघर्ष है पत्नी गुंजन के जीवन को बचाने का, जिसकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं। डाक्टरों ने साफ कह दिया है कि गुंजन की किडनी ट्रांसप्लांट करानी होगी, और इसमें लगेंगे 12 लाख रुपये। अब तक के उपचार में ही 2-3 लाख रुपये खर्च कर चुके अमित गुप्ता के लिए अब 12 लाख की पूरी रकम का इंतजाम करना चुनौती बन गया है। क्या अमित अपनी पत्नी को नया जीवन दे पाएगा?  सात जन्मों का साथ निभाने की कसम खाकर खूबसूरत रिश्ते में बंधे इस जोड़े को जिंदगी इस एक जन्म की खुशियां बख्शेगी? अस्पतालों और मंदिरों के चक्कर काट रहे अमित और गुंजन  को आपकी दुआएं चाहिए।

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आलमगंज लोहामंडी के रहने वाले अमत गुप्ता पुत्र श्री जगदीश प्रसाद गुप्ता पानी के प्लांट का काम करते हैं। करीब 15 साल पहले उनका विवाह मुरैना निवासी सुरेशचंद्र शिवहरे की पुत्री गुंजन शिवहरे से हुआ था। उनके दो प्यारे बच्चे हैं, 13 साल का बेटा कृष शिवहरे और 7 साल की बेटी एंजिल। जिंदगी में जब भरपूर प्यार हो, तो पैसे की कमी खलती नहीं है। ऐसा ही खुशनुमा था अमित और गुंजन का साथ।
लेकिन करीब दस महीने पहले खुशियों को ग्रहण लग गया, जब डाक्टर ने बताया कि गुंजन की दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं, जल्द से जल्द इसे ट्रांसप्लांट कराना होगा। अमित ने हौसला नहीं खोया और सामर्थ्य से बढ़कर दिल्ली के अपोलो जैसे अस्पताल में गुंजन का उपचार शुरू करा दिया। 

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किडनी के लिए अमित ने खुद अपना, रिश्तेदारों और नजदीकी दोस्तों का मेडिकल टेस्ट कराया। गुंजन की मां श्रीमती लक्ष्मी शिवहरे की किडनी मैच कर गई, वह बेटी के लिए किडनी देने को तैयार हैं। लेकिन अब सवाल ट्रांसप्लांट का है। अपोलो में इसकी विशेषज्ञता नहीं है। जयपुर के मॉनीलेक्स हॉस्पीटल के डाक्टर तोलानी किडनी ट्रांसप्लांट के लिए विख्यात हैं। डाक्टर तोलानी ने 12 लाख रुपये का एस्टीमेट दिया है, यह हिदायत भी दी कि गुंजन के डायलिसिस पर आने से पहले ट्रांसप्लांट करा दीजिये तो अच्छा हो, वरना डायलिसिस की स्थिति में ट्रांसप्लांट की सफलता संदिग्ध हो जाती है। 

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अमित अपना सबकुछ दांव पर लगाकर भी 6-7 लाख रुपये तक का इंतजाम कर पाए हैं। इतनी ही रकम और चाहिए होगी। वक्त तेजी से निकल रहा है। अमित ने सरकारी सहायता की सारी खिड़कियों पर दस्तक दी, लेकिन वे जैसे बंद पड़ी है, सरकारी दावे महज इश्तहार साबित हुए है। सहायता की प्रक्रियायें इतनी जटिल हैं, कि बीमार उसी में उलझकर रह जाए। 

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ऐसी बेचारगी में अक्सर समाज ही अपनी उपयोगिता साबित करता है। कलचुरी समाज तो इस मामले में और भी आगे है। शिवहरेवाणी ने पिछले डेढ़ साल में सहायता के ऐसे कई अभियानों की सफलता को देखा है और उसमें भागीदारी भी की है । आइये मदद का ऐसा ही एक और अभियान अमित और गुंजन की खुशियों के लिए भी छेड़ते हैं।

 

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