शिवहरे वाणी नेटवर्क
रायपुर।
किसी भी समाज में परंपराओं की स्थिति किसी कानून से कम नहीं होती। खासकर जिन परंपराओं के साथ लोगों की धार्मिक आस्थाएं जुड़ी होती हैं, उन्हें बदलने या बदलने की कोशिशों को अक्सर मजबूत सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना ही पड़ता है। मौजूदा सबरीमाला मंदिर विवाद इसका एक क्लासिक उदाहरण है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को प्रवेश की इजाजत देने का आदेश दिया है। इसके विरोध में सर्वाधिक साक्षर केरल में हिंसा और तनाव का माहौल बना हुआ है। लेकिन, सबरीमाला अकेला मंदिर नहीं है जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित हो। हम आपको बताने जा रहे हैं
ऐसे ही एक मंदिर के बारे में जिसमें महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। मंदिर की देखरेख करने वाले श्री उत्तम जायसवाल का दावा है कि मंदिर में आज तक किसी महिला या युवती ने न तो प्रवेश किया है, और इसे लेकर उन्हें कोई शिकायत, आपत्ति या मलाल भी नहीं है।
यह है कि छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में मां राजोदाई देवी का मंदिर। जिला मुख्यालय कवर्धा के करीब 25 किलोमीटर दूर सूरजपुरा गांव में बने डेढ़ सौ वर्षों से अधिक पुराने इस मंदिर में आज तक किसी महिला ने प्रवेश नहीं किया है। पुरुष ही पूजा-पाठ करते हैं। महिलाएं मंदिर के बाहर से पूजा-पाठ कर सकती हैं लेकिन गर्भगृह में प्रवेश की इजाजत उन्हें नहीं है।
खास बात यह है कि कवर्धा और आसपास के जिलों में भी इस मंदिर की काफी मान्यता है। दूर-दराज से श्रद्धालु यहां आते हैं लेकिन महिलाएं परंपरा और मान्यता के अनुरूप मंदिर में प्रवेश नहीं करतीं। हालांकि दस वर्ष तक की बालिकाओं के लिए यह प्रतिबंध लागू नहीं है।
मां राजोदाई मंदिर समिति के अध्यक्ष श्री उत्तम जायसवाल के मुताबिक, मंदिर में पिंड के रूप में विराजममान राजोदाई देवी कुंवारी हैं, इसलिए महिलाओं का प्रवेश यहां वर्जित माना गया है। आस्था से जुड़ी यह परपंरा मंदिर की स्थापना से ही चली आ ही है।
मंदिर की स्थापना को लेकर एक रोचक कहानी है। बताते हैं कि बहुत पहले की बात है, एक बुजुर्ग ग्रामीण के सपने में देखा कि गांव के पास बहने वाली फो नदी के बीच धार में देवी का पिंड बह रहा है। उन बुजुर्ग ने अगले दिन अन्य ग्रामीणों को अपने सपने के बारे में बताया।
आस्थावान ग्रामीण इस सपने के आधार पर नदी में पहुंचे तो देखा कि वहां वास्तव में एक पिंड बीच धार में बह रहा था। ग्रामीणों ने पहले तो इस पिंड को वहीं स्थापित कर दिया, फिर इसे नदी तट पर बनी एक झोपड़ी में विराजमान कर दिया। सालों बाद इस पिंड को सूरजपुरा में राजोदाई देवी के रूप में इस मंदिर में स्थापित किया गया।
इस देवी के कुंवारी होने के पीछे की कहानी क्या है, इसे लेकर लोगों की मान्यता अलग-अलग है। लेकिन कहते हैं कि ये देवी प्रसन्न होने पर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। नवरात्रि में ज्योति प्रज्ज्वलित कराते हैं। मनोकामना के लिए सोमवार और गुरुवार को यहां केवल खैरा बकरी की पूजा पाठ कर बलि दी जाती है। लेकिन नवरात्रि में यह प्रथा बंद रहती है।
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