November 22, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार

शिवहरे समाज की धरोहरों में गोवर्धन महाराज की जयकार..वैज्ञानिक सोच का पर्व

शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
दीपोत्सव के चौथे दिन गुरुवार को आगरा के शिवहरे समाज ने एक दीया उस प्रकृति के नाम पर जलाया, जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। पेड़-पौधे, फल-फूल, हवा-पानी, गाय जैसे उपहारों के दाता और भगवान नागेश्वर श्रीकृष्ण के साक्षात स्वरूप गोवर्धन महाराज के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अन्नकूट का प्रसाद चढ़ाया गया। आगरा में शिवहरे समाज की दोनों धरोहरों मंदिर श्री दाऊजी महाराज और मंदिर श्रीराधाकृष्ण में समाज ने गोवर्धन महाराज से अपनी छत्रछाया सदैव बनाए रखने की प्रार्थना की।

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दाऊजी मंदिर की नई संरचना 
सदरभट्टी स्थित मंदिर श्री दाऊजी महाराज में गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट समारोह इस कार ण विशेष रहा, कि संपूर्ण कार्यक्रम नई निर्माणाधीन संरचना में हुई। नई संरचना की भव्यता देख समाजबंधुओं के चेहरे खिल गए। हालांकि कुछ समाजबंधुओं ने यह शिकायत भी दर्ज कराई कि इस निर्माण के लिए उनसे कोई योगदान नहीं लिया गया। इस पर मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष भगवान स्वरूप शिवहरे ने माइक से घोषणा की कि जो भी समाजबंधु इस निर्माण में अपना आर्थिक योगदान करना चाहते हैं, वे स्वेच्छा से प्रबंध समिति से संपर्क कर सकते हैं। इससे पूर्व महेश पंडितजी ने विधि-विधान के साथ गोवर्धन पूजा संपन्न कराई।

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मुख्य जजमान के रूप में मंदिर अध्यक्ष श्री भगवान स्वरूप शिवहरे के साथ सर्वश्री बिजनेश शिवहरे, आशीष शिवहरे (जिज्ञासा पैलेस), धर्मेंद्र राज शिवहरे (कोषाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा), सियाराम शिवहरे एडवोकेट, संतोष गुप्ता, मुन्नालाल शिवहरे, मुकेश शिवहरे, अजय गुप्ता, अनूप शिवहरे, विजय शिवहरे, भूपेंद्र शिवहरे, विपिन शिवहरे, मनोज शिवहरे, आलोक शिवहरे, अमित शिवहरे समेत काफी संख्या में शिवहरे समाजबंधु उपस्थित रहे। गोवर्धन पूजा के उपरांत समाजबंधुओं ने गाय के गोबर से बनाई गई गोवर्धन महाराज की प्रतिकृति की परिक्रमा की और  अन्नकूट का प्रसाद वितरित किया गया।

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मंदिर श्री राधाकृष्ण में भक्तिभाव 
इसी प्रकार लोहामंडी में आलमगंज स्थित मंदिर श्री राधाकृष्ण में गोवर्धन पूजा का भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के दौरान महिलाओं द्वारा मंगल-कीर्तन की ध्वनि ने वातावरण को कृष्णमय बना दिया। पूजा के दौरान मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष अरविंद गुप्ता, उपाध्यक्ष अशोक शिवहरे अस्सो भाई, महासचिव मुकुंद शिवहरे, कोषाध्यक्ष कुलभूषण गुप्ता राम भाई, सहसचिव संजय शिवहरे के अलावा राजेंद्र शिवहरे (मास्टर साहब), राजेंद्र शिवहरे समेत अन्य समाजबंधुओं की उपस्थिति रही।

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भाजपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के ब्रज प्रांत संयोजक केके शिवहरे, मुन्नालाल कैलोकर वालों की उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही। गोवर्धन पूजा के उपरांत सभी भक्तों ने गोवर्धन महाराज की परिक्रमा की। और, अन्नकूट के स्वादिष्ट प्रसाद का आनंद लिया।

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गोवर्धन का विशेष महत्व
आपको बता दें कि दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व होता है। गिरिराज गोवर्धन को श्रीकृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि स्वजनों के कल्याण के लिए ही श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का विराट रूप धरा। इसलिए उन्हें गिरिराज कहा गया है। गोवर्धन पूजा करके हम सभी लोग ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उसने हमें विभिन्न प्राकृतिक चीजें देकर हमारा पोषण किया है।

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एक वैज्ञानिक परंपरा
जो लोग भारतीय त्योहारों को रूढ़िवादी परंपरा और उनको दकियानूसी की संज्ञा देते हैं, उन्हें इन पर्वों के वैज्ञानिक महत्व को भी जानना चाहिए। गोवर्धन पूजन के दिन सभी के मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि गोवर्धन पूजा में गोबर को प्रयोग क्यों किया जाता है। गोबर से ही क्यों गोवर्धन पर्वत को बनाया जाता है।दरअसल, वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गोवर्धन का मतलब होता है गो संवर्धन। यानी गाय का संवर्धन।

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इसलिए भी जरूरी है गोवर्धन पूजा
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बारिश के दिनों में या बारिश होने के बाद विभिन्न रोगों को जन्म देने वाले कीड़े-मकोड़े और बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं। गोबर एक ऐसा जबरदस्त एंटी बैक्टीरियल तत्व है जो गांव देहात में इन कीड़े-मकोड़ों को तो मार ही देता है साथ ही यह विभिन्न रोगों के कारक बैक्टिरियां को भी खत्म करता है। गांव और घर के आगन में गोबर की लिपाई-पुताई से इन सबका खात्मा हो जाता है। 

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रेडियम रोधी होता है गोबर
यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि गाय के गोबर से जहां लिपाई-पुताई हो जाती है, तो फिर उस जगह से रेडियम किरणें पार नहीं हो सकती। गाय के दूध और गोमूत्र में से स्वर्ण भी निकलता है, यह भी वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है। पुराने समय में तो ग्रामीण क्षेत्र के ग्वालों को गोवर्धन पूजा के दिन विशेष सम्मान दिया जाता था। मेरठ कालेज के भूगोल के रिटायर्ड प्रोफेसर डा. कंचन सिंह कहते हैं कि ये भारतीयों के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। इसलिए हम भारतीय को अपनी पुरातन भारतीय संस्कृति से जुड़े रहने की जरूरत है।

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