शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
आगरा में शिवहरे समाज की प्रमुख धरोहर मंदिर श्री दाऊजी महाराज में प्रवास कर रहे भगवान गणेश की विदाई इस बार अनोखे तरीके से की जाएगी। कुछ इस तरह, कि विघ्नहर्ता गणेशजी की कृपा समाज पर सदैव बनी रहे और समाज की इस धरोहर मे उनकी पवित्र स्मृतियां हमेशा के लिए संजोयी जा सकें।
सदरभट्टी चौराहा स्थित मंदिर श्री दाऊजी महाराज में प्रवास पर आए भगवान गणेश की सेवा के प्रभारी एवं मंदिर प्रबंध समिति के वरिष्ठ पदाधिकारी श्री आशीष शिवहरे (होटल जिज्ञासा पैलेस) ने शिवहरे वाणी को बताया कि इस बार भगवान गणेश का विसर्जन यमुना नदी में न करके मंदिर में भी किया जाएगा। इसके लिए 23 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन मंदिर परिसर में ही ईटों से एक अस्थायी कुंड तैयार किया जाएगा और उसे स्वच्छ पानी से भरकर उसमें गणेश प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा ताकि गणपति इस भूलोक की सगुण साकार मूर्ति से मुक्त होकर निर्गुण निराकार रूप में देवलोक जा सकें। इसके पश्चात मूर्ति की मिट्टी को एक गमले में डालकर उसमें तुलसी का पवित्र और औषधीय गुणकारी पौधा रोपित किया जाएगा जो मंदिर परिसर में भगवान गणेश की उपस्थिति और उनकी कृपा को दर्शाता रहेगा।
मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष भगवान स्वरूप शिवहरे ने बताया कि ताजनगरी की जीवनरेखा यमुना नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए यह अहम निर्णय लिया गया है। उन्होंने सभी समाजबंधुओं से आग्रह किया है कि यदि उन्होंने अपने घर पर अथवा किसी सार्वजनिक स्थल या पवित्र स्थल पर गणेश प्रतिमा स्थापित की है, तो विसर्जन की यह पद्यति अपना कर पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान करें जिससे एक प्रगतिशील, विचारशील और आधुनिक समाज के रूप में शिवहरे समाज की छवि और मजबूत हो।
इसलिए किया जाता है गणेश विसर्जन
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि गणेशोत्सव के बाद गणपति विसर्जन क्यों किया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, देवलोक में सभी देवताओं का निवास है, जबकि हम सभी प्राणी भूलोक में रहते है। गणेश चतुर्थी को भगवान गणपति की मूर्ति स्थापित की जाती है और पूजा अर्चना के माध्यम से निराकार भगवान गणेश से देवलोक से भूलोक की इस मूर्ति में साकार रूप लेने का आह्वान किया जाता है। तब यह माना जाता है कि भगवान गणेश साकार रूप में इस मूर्ति में विराजमान हैं।
मान्यता-1
मान्यता है कि गणपति उत्सव के दौरान अपनी इच्छा भगवान गणेश के कानों में कह देते हैं और अंत में गणपति को अनंत चतुर्दशी के दिन बहते जल, नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है ताकि भगवान गणेश इस भूलोक की साकार मूर्ति से मुक्त होकर निराकार रूप में देवलोक जा सकें और लोगों द्वारा प्रार्थनाओं और कामनाओं को पूर्ण करने का उपक्रम कर सकें।
मान्यता-2
एक अन्य मान्यता यह भी है कि श्री वेद व्यासजी ने महाभारत की कथा भगवान गणेश को गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक लगातार 10 दिन तक सुनाई थी। लगातार 10 दिन ज्ञान की बातें सुनते-सुनते गणेशजी को ज्वर हो गया है। लिहाजा वेद व्यासजी ने गणेशजी को निकट के कुंड में ले जाकर डुबकी लगवाई, तब जाकर उनका ज्वर कम हुआ। इसी आधार पर आधुनिक मान्यता यह बनी कि लगातार 10 दिन तक लोगों की दुःख-दर्द और अधूरी कामनाएं सुन-सुनकर गणपति का तापमान बढ़ जाता है और इसलिए शीतल जल में उन्हें ठंडा किया जाता है।
मान्यता-3
एक अन्य और बहुत महत्वपूर्ण मान्यता इस वैज्ञानिक सत्य पर आधारित है कि सृष्टि की उत्पत्ति जल से ही हुई है। मान्यता है कि जल बुद्धि का प्रतीक है और भगवान गणेश बुद्धि के अधिपति है, जल ही उनका स्थायी वास है। इसीलिये, गणेशजी की मूर्ति नदी किनारे की मिट्टी से तैयार की जाती हैं और फिर नदी में ही उन मूर्तियों का विसर्जन कर दिया जाता है।
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