शिवहरे वाणी नेटवर्क
भगवान श्रीकृष्ण हमारी संस्कृति के एक अद्भुत एवं विलक्षण महानायक हैं। एक भक्त के लिए वह भगवान हैं, जिसका जीवन चमत्कारों से भरा हुआ है। लेकिन, दरअसल वह राजनीति औऱ जीवन दर्शन के प्रकांड पंडित हैं, ज्ञान-कर्म-भक्ति का समन्वयवादी धर्म उन्होंने प्रवर्तित किया। वह कला, साहित्य और सभी रचनात्मक एवं सृजनात्मक प्रवृत्तियों के स्वामी हैं। यही वजह है कि भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर उनके भक्त अपने घरों में और मंदिरों में विशेष प्रकार की सजावट कर अपनी कलात्मक सुरुचि प्रदर्शित करते हैं। हम बड़े गर्व से कह सकते हैं कि आगरा में शिवहरे समाज की दोनों धरोहरों मंदिर श्री दाऊजी महाराज और मंदिर श्री राधाकृष्ण में शिवहरे समाजबंधु जन्माष्टमी पर अदभुत सजावट में अपनी कल्पनाशीलता, रचनात्मकता, सृजनात्मकता और कलात्मकता प्रदर्शित भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी सच्ची आस्था और श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
इस बार 3 सितंबर को जन्माष्टमी पर आगरा में शिवहरे समाज की दोनों ही धरोहरों में जन्माष्टमी कुछ अलग तरीके से मनाई जाएगी। सदरभट्टी चौराहा स्थित मंदिर श्री दाऊजी महाराज में ठाकुरजी का विशेष फूलबंगला सजाया जाएगा। गत वर्ष की भांति इस बार भी श्रद्धालुओं को चांदी के हिंडोले में लड्डूगोपाल के अद्भुत दर्शन होंगे। मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष श्री भगवान स्वरूप शिवहरे ने बताया कि इस बार छप्पन भोग भी सजाया जाएगा। अर्धरात्रि को ठाकुरजी का अभिषेक किया जाएगा जिसके बाद प्रसाद वितरण होगा।
वहीं लोहामंडी स्थित मंदिर श्री राधाकृष्ण में जन्माष्टमी की शाम पूरी तरह कृष्ण के रंग में रमी होगी। बाहर से बुलाई गई भजन मंडली एक से बढ़कर एक भजन प्रस्तुत करेगी। मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष श्री अऱविंद गुप्ता ने बताया कि इस शाम राधाकृष्ण की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया जाएगा और रात्रि बारह बजे विशेष आरती की जाएगी। इसके बाद प्रसाद वितरण होगा।
एक दौर था जब मंदिर श्री राधाकृष्ण एक समय में जन्माष्टमी पर अपनी सजावट को लेकर पूरे आगरा ही नहीं, बल्कि आसपास के गांव-कस्बों तक में चर्चित रहता था। लोहामंडी फाटक में रहने वाले वयोवृद्ध समाजबंधु श्री जगदीश शिवहरेजी ने उन दिनों का स्मरण करते हुए शिवहरे वाणी को बताया कि नव्वे के दशक कआखिर तक हर साल जन्माष्टमी पर मंदिर की सजावट देखने औऱ दिखाने लायक होती थी। मंदिर श्री राधाकृष्ण आगरा के उन पहले मंदिरों में है जहां जन्माष्टमी पर इलेक्ट्रिकल झांकियों का इस्तेमाल किया गया। पहली इलेक्ट्रिकल सजावट की कमान नाई की मंडी निवासी स्व. श्री आनंद गुप्ता के संभाली थी। उस वर्ष की सजावट को लोग आज भी याद करते हैं।
इसी तरह सदर भट्टी चौराहा स्थित मंदिर श्री दाऊजी महाराज भी जन्माष्टमी पर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा करता था। यहां सजावट की जिम्मेदारी हमेशा ही युवाओं के हाथों में रही थी। एक दौर था जब शिवहरे मित्र मंडल के वालेंटियर्स मंदिर को सजाते थे और उनका लक्ष्य ऐसी झांकियां तैयार करना रहता था जो सामाजिक मुद्दो और समाज सुधार के विषयों को संबोधित करती हों। बाद में इन झांकियों में तकनीकी का प्रभाव बढ़ता गया और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर केंद्रित होती गईं।
खैर, समय की बलिहारी है कि अब जन्माष्टमी का स्वरूप काफी बदल चुका है। बदलते आर्थिक परिवेश मे युवा वर्ग करियर और बिजनेस के भारी दवाब में है। रही बात आस्था और भक्ति की, तो कर्म का संदेश देने वाले भगवान श्रीकृष्ण तो इसी में संतुष्ट हैं कि उनके भक्त अपने कर्म में लीन हैं। पापों से दूर रहना ही श्रीकृष्ण का धर्म है, और निस्वार्थ कर्म ही उनकी भक्ति।
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