शिवहरे वाणी नेटवर्क
तेंदुखेड़ा।
देश इस समय आजादी की वर्षगांठ का जश्न मना रहा है। हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की खास बात यह थी कि यह आंदोलन सामाजिक सुधार के समानांतर चला। आजादी के दीवाने केवल राजनीतिक आजादी ही नहीं चाहते थे, बल्कि वे कुप्रथाओं, संकीर्णताओं, भेदभाव और किसी भी प्रकार की हिंसा से भी आजादी चाहते थे। वे सही मायने में आजादी के दीवाने थे। आज हम कलुचरी समाज की एक ऐसी ही महान विभूति का जिक्र कर रहे हैं, वे हैं नरसिंहपुर में तेंदुखेड़ा के स्वतंत्रता सेनानी स्व. रामचंद्रजी राय। उनका जिक्र इसलिए कि कलचुरी समाज में इन दिनों एक कुप्रथा से आजादी का शानदार आंदोलन चल रहा है, जो उनके दिल के बहुत करीब था बल्कि यूं कहें कि वह मृत्युभोज से मुक्ति की पहल करने वालों में शामिल थे।
दरअसल नवंबर, 2002 में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के तेंदूखेडा कसबे में ट्रक व्यवसायी कंछेदी लाल राय काफी घाटा होने पर घर छोड़कर चले गए। कुछ ही दिनों में उनकी बीमार पत्नी स्वर्ग सिधार गईं, तो उनके बेटे रवि राय ने तेरहवी पर मृत्युभोज कराया। इसके 15 दिन बाद ही रवि को दो महीने पहले के एक समाचार पत्र में अपने पिता का फोटो लावारिस मृतक के रूप में छपा दिखा। लिहाजा रवि राय ने फिर कर्ज लेकर मृत्यु भोज कराया। इसके एक माह के भीतर रवि राय का भी देहांत हो गया। स्वंत्रता संग्राम सेनानी श्री रामचंद्र राय ने रवि के परिवार के लोगों को समझाया कि अब मृत्युभोज मत कीजिये। रवि राय के परिवार के लोगों ने परम्परा का हवाला देकर मृत्यु भोज कराया लेकिन इससे परिवार घोर कर्जे में दब गया। इस बात से स्व. रामचंद्र राय बहुत आहत हुए, उन्होंने अपने तीनों बेटों को बुलाया और वचन लिया कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी तेरहवी में भोज मत कराना, बल्कि अगर कुछ कराना ही है तो श्रद्धांजलि सभा कराना। यह भी सख्त ताकीद की कि इस मामले में चाहे कोई कुछ भी कहे, यह शुरूआत तुम्हें अपने परिवार से ही करनी होगी, तभी समाज के अन्य परिवार मृतक भोज बंद करेंगे।
25 जून 2003 को स्व. रामचंद्र राय का देहावसान हो गया। बेटो ने पिता को दिए वचन का अक्षरशः पालन किया। तेंदुखेड़ा में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी तेहरवीं पर मृत्युभोज नहीं हुआ। शुरू में इसे लेकर आलोचना भी हुई लेकिन धीरेःधीरे लोगों के समझ में आया और आज स्थिति यह है कि तेंदुखेड़ा में कई समाजों ने मृत्युभोज का आयोजन त्याग दिया है। आज तेंदुखेड़ा में कलचुरी समाज ने पूरी तरह मृत्युभोज को त्याग दिया है। अब अन्य समाज जैन,अग्रवाल,गुप्ता गहोई; ने भी मृतक भोज बंद कर दिया है जो अपने आपमें एक मिसाल है।
9 फरवरी 1922 को स्वनामधन्य श्री नर्मदा प्रसाद राय के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जन्मे श्री राय ने 15 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में अपने आपको झौंक दिया था। इनका विवाह तेरह वर्ष की आयु में श्रीमती रेवा बाई राय से हुआ था । विवाह के कुछ वर्षो बाद ही ये लाल कुर्ती सेना में शामिल हो गए थे। लालकुर्ती सेना का काम गुप्त सूचनाओ का एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाना था। एक पुराना टाइप राइटर और साइक्लोस्टाइल प्रिंटर को जंगल की झोपडीयों में रखकर सूचनाएं तैयार करते थे और घास-फूस के गट्ठर में उन कागजों को छिपा कर 60 से 100 किलोमीटर तक साइकिल चलाकर उन सूचनाओं को उनके गंतव्य तक पहुंचाते थे। इस काम के लिए उन्हें महीनों तक घर से बाहर रहना पड़ता था। स्व. राय ने ‘जंगल चिपको आंदोलन’ में भाग लिया। अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें बुरी तरह पीटा औऱ जेल में ठूंस दिया। वह सात दिन जेल में रहे।
25 जून 2003 को स्व. रामचंद्र राय के चिर निद्रा में लीन होने के पश्चात मध्यप्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने इनकी एक मूर्ति तेंदूखेडा जिला नरसिंहपुर में स्थापित कराई जहां प्रत्येक राष्ट्रीय त्योहार पर ध्वजारोहण अनुविभागीय अधिकारी राजस्व द्वारा किया जाता है एवं एन;सी;सी;की सलामी एवं राष्ट्रगान होता है जहां नगर एवं क्षेत्र के सभी सम्मानीय जन् शामिल होते हैं।
स्व. रामचंद्र राय के तीन पुत्र हैं- अशोक राय, किशोर राय और राजेश राय। पांच पुत्रियां हैं-श्रीमती सत्यवती महाजन, श्रीमती उषा जायसवाल, स्व. श्रीमती नीलम सूर्यवंशी, श्रीमती रजनी गौर एवं श्रीमती ममता मालवीय। स्व. राय ने देशसेवा और समाजसेवा का पाठ अपने बेटों-बेटियों को भी पढाया। किशोर राय आज राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष एवं राजेश राय नगर परिषद तेंदूखेडा के उपाध्यक्ष के रूप में सक्रिय हैं।
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