शिवहरे वाणी नेटवर्क
दमोह।
कभी भी यह शक मत करो की कोई विचारशील और दृढ नागरिक या ऐसे नागरिकों का एक छोटा सा समूह दुनिया बदल सकता है, बल्कि यही है जिसने कभी कुछ बदला है। मार्गरेट मीड के इस कथन के साथ आपको बताने जा रहे हैं एक अनूठी दास्तान। सावन का महीना है तो हरियाली की बात होनी ही चाहिए। हम सबका फर्ज है कि इस मुफीद मौसम में कुछ पौधे रोंपकर भगवान शिव की सृष्टि के संरक्षण में अपना योगदान करें। गणेश शिवहरे की कहानी पौधे लगाने की नहीं, बल्कि अपने लगाए पौधों को बचाने के संघर्ष की एक अनूठी मिसाल है जो उम्मीद जताती है कि ऐसे लोगों के रहते एक न एक दिन हमें प्रदूषण की समस्या से निजात मिलेगी, और सृष्टि अपने सौंदर्य, ताजगी और पाकीजगी के उसी पैकर में नजर आएगी, जिसमें वह वास्तव में हुआ करती थी।
मध्य प्रदेश के दमोह में रहने वाले श्री गणेश शिवहरे पेशे से टीचर हैं और ब्रिटिश इंस्टीट्यूट ऑफ इंग्लिश संचालित करते हैं। अब उनकी पहचान एक प्रकृति प्रेमी के रूप में भी हैं। दमोह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई पथरीली और बंजर पहाड़ियां हैं। ऐसी ही एक पहाड़ी यहां जटाशंकर सर्किट हाऊस पहाड़ी के पीछे किशन तलैया के पास है। करीब छह महीने पहले एक दिन मॉर्निंग वॉक के दौरान गणेश शिवहरे की नजर इस पहाड़ी पर पड़ी। पथरीली पहाड़ी बदरंग नजर आ रही थी, उस पर कोई पेड़ नहीं था, कुछ झाड़ियां इधर-उधर छितराई थीं। गणेश शिवहरे ने इस पहाड़ी को हरा-भरा करने की ठानी और, कुछ दिन बाद एक कुंडीय गायत्री यज्ञ कर 54 पौधे भी रोंप दिए।
खैर, यह कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि, असली चुनौती तो अब शुरू होनी थी। पौधे रोंपने के बाद सवाल था कि इनकी सिंचाई कैसे हो। पहाड़ी काफी ऊंची है और पानी का कोई साधन भी नहीं है। तलहटी पर कुछ दूरी पर किशन तलैया है जहा से पानी लाया जा सकता था। दो विकल्प थे, एक, मोटर और पाइप से पानी पहुंचाया जाए जो काफी खर्चे का काम था। दूसरे, किसी तरह बाल्टी या किसी अन्य बर्तन मे तलैया से पानी लाया जाए और ऊंची पहाड़ी पर चढ़ाया जाए। यह काम मुशकिल तो था मगर असंभव नहीं था। दमोह में इतनी तेज गर्मी पड़ती है कि पेड़-पौधे झुलस जाते हैं। लिहाजा चुनौती दोगुनी थी।
ऐसे में बेटी अनुषा और सरस्वती ने उनका हौसला बढ़ाया। गणेश शिवहरे ने ऐसे कुप्पों का चुनाव किया जो कम वजन के हों और उन्हें पकड़कर चलने में दर्द न हो। फिर अपने मित्रों संतोष अड्या और नारायण सिंह की मदद ली। इसके बाद ये तीनों मित्र बड़ी कुप्पियों और दोनों बच्चियां छोटी कुप्पियों में पानी लेकर वीरान पहाड़ी को हरा-भरा करने के अभियान पर चल निकले। पानी डालने के लिए सुबह 5 बजे का समय चुना। ताकि ठंडे-ठंडे में पानी लेकर पहाड़ी पर चढऩे से सुबह-सुबह व्यायाम हो जाएगा। यह लोग एक बार में 8 पानी के कुप्पे ऊपर ले जाते हैं, तीन लोग दो-दो व बालिकाएं एक-एक कुप्पा चढ़ाती हैं। कुल मिलाकर करीब 35 लीटर पानी रोज पेड़ों को दिया गया। पूरी गर्मी यह दौर चला। वीरान पहाड़ी पर रौंपे गए ये पौधे अब गणेश शिवहरे की मेहनत के बल पर हरे-भरे नजर आ रहे हैं। हालांकि पूरे 54 पौधे नहीं बच पाए लेकिन 40 पौधे अब हरे-भरे हो गए हैं और उनकी जड़ें जमीन पर मजबूती से जम चुकी हैं।
गणेश शिवहरे ने शिवहरे वाणी को बताया कि एक तरह से उन्होंने इस पहाड़ी को गोद ले लिया है, और इसे पूरी तरह हरा-भरा कर देंगे। उन्होंने बताया कि पहाड़ी पर बबूल और पलाश की झाड़ियां हैं। कुछ झाड़ियों के तने काफी मोटे हैं, और वे उनकी छंटाई कर रहे हैं। इससे करीब 150 झाड़ियां पेड़ का रूप ले लेंगी। 20 झाड़ियों को तो पेड़ का रूप दे भी दिया गया है। उन्हें उम्मीद है कि वह जल्द ही इस पहाड़ी को पेड़ों से ढकने के मिशन में कायमाब हो जाएंगे।
दमोह के चंदन बगीचा इलाके में रहने वाले गणेश शिवहरे की कोशिश होती है कि वे अपने इंस्टीट्यूट के बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बनाएं। और, अब पहाड़ी के सौंदर्यीकरण के कार्य में उनके स्टूडेंट्स भी उनका हाथ बंटा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने दमोह को हरा-भरा रखनेके लिए अपने इंस्टीट्यूट की ओर से एक साइकिल रैली का आयोजन किया था। श्री गणेश शिवहरे को इन कार्यों में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती हेमलता शिवहरे का पूरा सहयोग मिलता है जो पहले उनकी ही कोचिंग में पढ़ाया करती थीं, अब उन्होने बासा कस्बे में ज्ञानकुंज पब्लिक स्कूल के नाम से एक विद्यालय शुरू कर दिया है।
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