शिवहरे वाणी नेटवर्क
भोपाल।
लोग चिकित्सक को भले ही भगवान का दर्जा देते हों, लेकिन आखिर होता तो वह इंसान ही है। कभी-कभी ऐसे मौके आते है, जब ऑपरेशन थियेटर में जाने से पहले उसके हाथ भी कंपकपाते हैं, नसें तन जाती हैं, तनाव हावी होने लगता है। मेडिकल प्रोफेशन के प्रति समर्पण और कौशल की परीक्षा की यही घड़ी होती है। इस बात को डा. अंशुल राय से बेहतर कौन जान सकता है भला।
दरअसल, भोपाल एम्स में सुपर स्पोशलिस्ट मैक्सिलोफैशियल सर्जन डा. अंशुल राय ने महज डेढ़ साल की एक अबोध बच्ची की सफल सर्जरी की है, जिसकी जीभ और तालू जन्म से चिपके हुए थे। यब बहुत रेयर होता है। दुनियाभर में अब तक ऐसे केवल 23 ऑपरेशन हुए हैं और देश में महज 8 ऑपरेशन हुए हैं। इस केस की स्टडी ब्रिटिश जनरल ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी के ताजा अंक में प्रकाशित हुई है और चिकित्सा जगत में इसकी चर्चा है।
दरअसल बैरागढ़ निवासी डेढ़ साल की समीक्षा की जीभ और तालू जन्म से चिपके थे। खाना निगलने और सांस लेने के लिए गले में महज 4 एमएम की जगह थी। इसी से उसे तरल पदार्थ दिया जा रहा था। बच्ची को सांस लेने में हर पल तकलीफ होती थी। परिजनों ने बेटी को कई डॉक्टर्स को दिखाया, लेकिन जब सबने हाथ खड़े कर दिए तो परिजन भोपाल एम्स पहुंचे। यहां पर डॉक्टर्स की टीम ने उसकी जांच के बाद सर्जरी की सलाह दी। एम्स के दंत चिकित्सा विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और सुपर स्पोशलिस्ट मैक्सिलोफैशियल सर्जन डॉ. अंशुल राय को बच्ची की बीमारी के बारे में बताया गया। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वह ठीक हो जाएगी, लेकिन सर्जरी करने में जान का खतरा ज्यादा है।
डा. अंशुल राय ने यह बात कह तो दी, लेकिन वह जानते थे कि यह आसान नहीं है। यह एक ऐसा मामला है जो उन्हें पढ़ाने वाले चिकित्सकों एवं गुरुओं के सामने भी शायद ही कभी आया हो। रिस्क बहुत बड़ा था। कई चुनौतियां थीं। सर्जरी में जरा सी चूक होने पर अधिक खून बहने का खतरा था, और ऐसा होने पर फेफड़े में खून जा सकता था जिससे बच्ची की जान खतरे में पड़ जाती। दूसरी चुनौती थी कि बच्ची को बेहोश करने की, और यह सुनिश्चित करने की ऑपरेशन के दौरान बच्ची को सांस मिलती रहे। डा. अंशुल ने अपने टीम की राय ली। पहले सोचा कि गले की सांस नली में छेद कर ऑपरेशन के समय उसको सांस दी जाए, लेकिन ऐसा करने से उसकी जान भी जा सकती थी। इसलिए टीम ने तय किया कि न तो सांस नली में छेद करेंगे और न ही समीक्षा को बेहोश करेंगे।
डॉ. अंशुल ने शिवहरे वाणी को बताया कि समीक्षा परसिस्टेंट बाक्कोफेरिनजियल मेम्ब्रेन नामक बीमारी से पीड़ित थी। इसमें व्यक्ति का तालू और जीभ चिपकी रहती है। मुंह में खाना जाने की जगह संकरी हो जाती है और सिर्फ सांस के लिए छोटी सी जगह रहती है। जैसा कि डा. अंशुल ने बताया कि यह तलवार की नोक पर चलने जैसा था। जरा सी चूक होती तो पूरे करियर पर दाग लग जाता। लेकिन ऐसी चुनौतियों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। फिर उन्हें भरोसा था कि लक्ष्य पवित्र हो तो ईश्वर जरूर मदद करता है।
यही सोचकर डा. अंशुल अपने तीन असिस्टेंट और एनीथिसिया (बेहोश करने वाले डाक्टर) को लेकर ऑपरेशन थियेटर में दाखिल हुए। अपने नर्वस सिस्टम को नियंत्रित किया, जिसके लिए वह कुछ दिनों से अभ्यास कर रहे थे, और बड़े शांत भाव से बच्ची का ऑपरेशन शुरू किया। करीब चार घंटे के बाद डा. अंशुल ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकले तो उनका मुस्कराता चेहरा देख समीक्षा के परिजनों की जान में जान आई। बच्ची अब पूरी तरह स्वस्थ है और अस्पताल से उसे छुट्टी दे दी गई है।
डा. अंशुल राय मूल रूप से विदिशा से रहने वाले कलचुरी परिवार से हैं। उनके पिता स्व. जगदीश राय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंधक पद से रिटायर हुए थे। मां श्रीमती प्रतिमा राय हाउस वाइफ हैं। डा. अंशुल की धर्मपत्नी श्रीमती मोनिका आर्य राय भी डेंटिस्ट हैं। वह बैतूल नगर पालिका अध्यक्ष श्री अल्केश आर्य की बेटी हैं। डा. अंशुल के दो जुड़वा बेटे भी हैं। वैसे डा. अंशुल का पूरा परिवार मेडिकल प्रोफेशन से जुड़ा है। उनकी बहन डा. नेहा का विवाह डा. सुरेंद्र से हुआ है जो गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल में हैं। उनके छोटे भाई भी भोपाल एम्स में जॉब करते हैं।
फिलहाल समीक्षा की सर्जरी से डा. अंशुल राय के कौशल की चिकित्सा जगत में सराहना की जा रही है। वैसे डा. अंशुल राय के लिए यह पहली उपलब्धि नहीं है। इससे पहले भी वह कई जटिल सर्जरी कर चुके हैं जिसके लिए उन्हें बीते वर्ष एक्सीलेंस इन डेंटल सर्जरी अवार्ड भी मिल चुका है। इसके अलावा भी कई अवार्ड उन्हें मिल चुके हैें। पूरे परिवार को डा. अंशुल पर गर्व है। शिवहरे वाणी उनके और उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है।
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