कल से सावन शुरू हो रहा है, सावन यानी भगवान भोले शंकर की उपासना का महीना। पेश है शिव के एक ऐसे पुजारी से बातचीत जिसने बताया शिवत्व का अर्थ। शिवत्व किसी शिवालय में जाकर उपासना करना भर नहीं है, बल्कि यह एक जीवन-शैली है, वैराग्य और सांसारिकता के बीच की मजबूत कड़ी है। इस बात को सिंगर कैलाश खेर से अपने अंदाज में बताया, जिनके द्वारा गायी गईं शिव की स्तुतियों पर भोले के भक्त झूम उठते हैं। सोम साहू की कैलाश खेर से यह बातचीत दो साल पहले आगरा के जेपी होटल में हुई थी।
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मेरी आवाज ही पहचान है
सोम साहू
आगरा।
कद दरम्याने से भी कम मगर आवाज कैलाश पर्वत जितनी बुलंद। नाम भी कैलाश है उनका, कैलाश खेर। शिवरात्रि को शहर के हर शिवालय पर उनकी आवाज में ‘बम-बम..’ स्तुति गूंज रही थी और अगले ही दिन ताज महोत्सव के मंच पर शिवत्व का यह पुजारी अवतरित हो गया। नाद और सुर के इस साधक कैलाश के साथ भी एक गंगा चलती है, ज्ञान गंगा जो उन्हें सही और गलत की पहचान का सलीका देती है। स्वभाव बेहद सरल..। सादगी का एक नमूना यह कि देश-विदेश में तमाम नाम कमाने, अवार्ड पाने के बाद भी उनके दिल के सबसे करीब है यश भारती अवार्ड।
सोम साहू से खास बातचीत में कैलाश बोले, कहते हैं कि घर का जोगी जोगना, आन गाम का सिद्ध होता है। मैं भी यही मानता था। इंसान पूरी दुनिया में ख्याति पा ले लेकिन घर में मिला सम्मान बेजोड़ होता है। मैं यूपी में जन्मा, दिल्ली पला-बढ़ा और मुंबई में कामयाब हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार ने जिस भाव से मुझे यश भारती से सम्मानित किया, मैं उनका शुक्रगुजार रहूंगा। मेरे लिए तो यह वास्तव में घर में सम्मान पाने जैसा ही है।
आपने बड़ा मुकाम हासिल किया लेकिन प्ले बैक सिंगिंग में हीरो के लिए गाना हर गायक का ख्वाब होता है शायद…। खेर इस एक लाइन से ही पूरा सवाल भांप गए और बात पूरी होने से पहले तपाक से बोले कि मुझे कोई अफसोस नहीं है। मैं मानता हूं कि मेरी आवाज ही मेरी यूएसपी है, मेरी पहचान है। यहीं बात करते-करते खेर के अंदर का शिवत्व जाग गया, बातचीत की धारा ही बदल गई। बोले-भोले ने आपको सम्राट बनाया है, तो भिखारी मत बनो… यह उसका अपमान होगा। मुझे क्यों अफसोस होगा भला। आपको एक किस्सा बताऊं। सूरत में लिटिल चैंप्स के सेट पर शाहरुख खान आए और मेरे पैर छू लिए। मैंने मजाक समझा और उलटे मैं उनके पैर छूने के लिए झुका तो उन्होंने मुझे बड़े सम्मान से रोक दिया। शाहरुख का यह सम्मान उस कला के लिए था जो ईश्वर ने मुझ नाचीज को बख्शी है।
कैलाश बोले जा रहे थे, ईश्वर ने हमें अंग दिए हैं, समाज ने हमें अपंग बना दिया। हमारे अंदर इच्छाएं जागृत कर दीं और हम उनके गुलाम बन गए। अपंग क्यों बने कोई? आपमें दम है तो आप आगे बढ़ेंगे, कोई रोकने वाला नहीं होगा। जब भी कोई नामी-गिरामी आएगा तो अपने दम पर ही आएगा। चाटुकारिता से मुकाम हासिल नहीं होता। चाटुकारिता के भाव अलग होते हैं, सिंसीयरिटी के भाव अलग होते हैं। दोनों की भाषाएं भी अलग अलग-अलग हैं। सिंसीयरिटी सबको अच्छी लगती है, भगवान शवि को भी।
रात का एक बज रहा है, जेपी होटल के कमरा संख्या 2202 में बेड पर बैठे कैलाश ने घंटेभर मेरे साथ बात की। शाम को ताज महोत्सव में अपनी लंबी प्रस्तुति देकर देर रात होटल लौटे हैं मगर चेहरे पर कहीं थकान का नामो-निशाननहीं, नीद की भी कोई चिंता नहीं। जबकि सुबह साढ़े छह बजे उन्हें दिल्ली रवाना भी होना है। कैसा है यह आदमी? गाता भी है, संगीत भी गढ़ता है, पढ़ता है, लिखता है, चिंतन करता है, सृजन करता है। मैं चला आया लेकिन उनकी बातों का अनहद नाद पूरी रात मेरे साथ रहा।
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