January 31, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
वुमन पॉवर

मां के शब्दों से महका महक का हौसला और जीत लिया एक मुश्किल पहाड़

मदर्स डे स्पेशल रीयल स्टोरी

शिवहरे वाणी नेटवर्क
वडोदरा।
विपरीत हालात में भी मंजिल पर नजर रखना कोई बच्चों का खेल नहीं है। संकट में धैर्य न खोना और हौसला बनाए रखना एक प्रकार की सिद्धि है जो आती है कठिन अभ्यास से जिसे हम तपस्या भी कह सकते है, या फिर ये धैर्य और हौसला माता-पिता से संस्कार में मिलता है। हम एक बच्ची के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके कानों में गूंजते मां के शब्दों ने उसे एक मुश्किल पहाड़ पर चढ़ने का हौसला दे दिया, जबकि उस वक्त एक कदम बढ़ा पाना भी उसके लिए नामुमकिन लग रहा था।

ये हैं गुजरात के वडोदरा में रहने वाली 13 साल की महक जायसवाल। कक्षा 8 की छात्रा है और स्कूल में रोप क्लाइंबिंग और उस जैसे अन्य एडवेंचर गेम्स में भागीदारी करती रहती है। पिता मनीष जायसवाल मैकेनिकल इंजीनियर हैं, और मां डा. हर्षा जायसवाल मनोवैज्ञानिक है। बीती अप्रैल डा. हर्षा के पास महक के स्कूल की ओर से मैसेज आया कि महक का चयन हिमाचल में भृगु लेक माउंटेन पर ट्रैकिंग के लिए हुआ है जिसमें स्कूल के 70 बच्चे भागीदारी करेंगे, क्या आप अपनी बेटी को भेजना चाहेंगी? 
स्कूल के इस मैसेज ने मनीष और हर्षा को असमंजस में डाल दिया। पहला सवाल-कहां है भृगु? नेट पर खोजा तो पता चला कि यह हिमाचल प्रदेश में समुद्रतट से 14000 फीट की ऊंचाई पर है और अनुमानित ट्रैकिंग 26 किलोमीटर है। बर्फ से आच्छादित पहाड़, बेहद दुरूह मार्ग। 5 दिन की ट्रैकिंग। इतनी सी बच्ची को इतनी बड़ी चुनौती के लिए भेजने का मन तो बिल्कुल नहीं था लेकिन बेटी का मन तो रखना ही था, और कुछ अपनी परवरिश पर भी भरोसा था, सो हर्षा ने मनीष को राजी कर लिया और उनकी इजाजत लेकर महक चल पड़ी एक ऐसी मुश्किल राह पर जिसकी उसे ख्वाहिश भी थी।

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25 अप्रैल को 70 लड़कियां कैंप आर्गनाइजर्स के साथ हिमाचल में कुल्लू घाटी पहुंची, जहां गुलाबा से ट्रैकिंग शुरू हुई। गुलाबा समुद्रतट से 8500 फीट ऊपर है, इतनी ऊंचाई पर ही वातावरण में हवा का दबाव कम हो जाता है और दिक्कतें पेश आने लगती है। लेकिन मंजिल तो 14000 फीट की ऊंचाई पर थी जिसके लिए यहां से 26 किलोमीटर की ट्रैकिंग करनी थी। लड़कियों ने चढ़ाई शुरू की जिनमें महक सबसे जूनियर थी, बाकी लगभग सभी उससे बड़ी क्लास की छात्राएं थी। शुरू में तो सभी छात्राओं में जोश रहा लेकिन जैसे-जैसे ऊंचाई चढ़ती गईं, चुनौतियां बड़ी होती गईं, हौसले टूटते गए, साथ चलने वाली लड़कियों की संख्या घटती रही। 11,000 फीट की ऊंचाई पर आते-आते लगभग आधी ही लड़कियां रह गईं। इस ऊंचाई को पार करते ही महक का सामना बर्फीले दलदल से हुआ, अचानक महक का कदम ऐसी जगह पर पड़ा, जहां उसके पैर बर्फ में घंसते चले गए। वह घुटने तक बर्फ में समा गई। खुद को निकालने की उसने बहुत कोशिश की लेकिन बर्फ ने जैसे उसके पैरों को जकड़ लिया था। कुछ देर में वॉलेंटियर्स मदद को आ गए। करीब आधे घंटे की कोशिश के बाद महक को बर्फीले दलदल से निकाला जा सका। उसका पैरा बुरी तरह सुन्न थे, वह चल नहीं सकती थी। कैंप ऑर्गेनाइजर्स ने भी उसकी हालत देखकर ताकीद कर दी कि महक अब आगे नहीं चढ़ेगी। महक खामोश बैठ गई, हालत पस्त…हौसला टूटा हुआ। लेकिन तभी उसके कान में मां के शब्द बार-बार गूंजने लगे- दस बार गिरना लेकिन गिरकर फिर भी उठना, उठकर फिर बढ़ना। 
इन शब्दों ने महक के मन में जैसे शक्ति का संचार कर दिया। उसने आर्गेनाइजर्स से कहा कि मुझे जाना है, मुझे भृगु लेक पहुंचना है। ऑर्गनाइजर्स 13 साल की बच्ची का हौसला देख हतप्रभ रह गए, और उसे आगे बढ़ने की इजाजत दे दी। चोटिल पैर के साथ महक ने आगे की चढ़ाई की, चढ़ती गई। आखिर में केवल 5 लड़कियां ही ट्रैकिंग करते हुए भृगु झील तक पहुंच पाईं और महक उनमें से एक थी, उनमें सबसे जूनियर।

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3 मई को सभी बच्चे हिमाचल से वडोदरा लौटे। अगली सुबह वडोदरा के अखबारों में स्कूली बच्चों के सफल अभियान के समाचार प्रकाशित हुए जिनमें महक के हौसले, हिम्मत और धैर्य का खास उल्लेख था। कहां से आई महक में इतनी हिम्मत, हौसला और धैर्य।
महक कहती है कि शायद मां के एक मनोवैज्ञानिक होने के लाभ उसे मिला है। मां के कहे शब्द कानों में न गूंजे होते तो मंजिल पाना नामुमकिन ही था। वहीं डा. हर्षा ने शिवहरेवाणी को बताया कि उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश इस तरह करने की कोशिश की है कि वे जीवन में हर हालात का सामना हिम्मत, हौसले और धैर्य से करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहें। बेशक, महक की कामयाबी ने मां को तसल्ली दी है।

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