शिवहरे वाणी नेटवर्क
चैत्र नवरात्र पर शिवहरे वाणी के विशेष सीरीज ‘आज की दुर्गा’ के जरिये हम आपसे कलचुरी समाज की उन नौ महिलाओं से मिलवा रहे हैं जिन्होंने लीक से हटकर काम करते हुए अपनी पहचान बनाई है। इस सीरीज को आपकी उत्साहजनक प्रतिक्रियायें मिल रही हैं जिसके लिए आपका आभार। चौथी कड़ी में हम आपकी मुलाकात एक ऐसी महिला से करवा रहे हैं जिनकी मंजिल सबसे जुदा है, और रास्ते भी। बीटेक (एग्रीकल्चर) करने के बाद उनके लिए करियर के कई विकल्प खुले थे, लेकिन इससे हटकर उन्होंने वंचित और शोषित वर्ग को उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष की दुर्गम राह चुनी।
सूचना के अधिकार को अपना हथियार बनाकर कई बार सरकारों को कटघरे में खड़ा किया। संविधान की प्रस्तावना को धरातल पर उतारने का उनका यह संघर्ष कई मोर्चों पर निरंतर जारी है। हम बात कर रहे हैं भोपाल की रोली शिवहरे की।
35 वर्षीय रोली शिवहरे सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत अब तक सैकड़ों आवेदन लगा चुकी हैं और नर्मदा के विस्थापितों के हालात, महिला एवं बाल विकास, ड्रग ट्रायल जैसे कई मसलों को उन्होंने मजबूती से उठाया है। 2008 में रोली ने कुपोषित बच्चों की दयनीय स्थिति और गरीबी व भूख से बच्चों की मौत के खिलाफ इस तरह आवाज उठाई कि यह मध्य प्रदेश का चुनावी मुद्दा बन गया। रोली के आरटीआई आवेदन पर ही मध्य प्रदेश सरकार को पहली बार परियोजनाओं के कारण विस्थापित हुए लोगों की गणना करानी पड़ी। आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर काम करते हुए रोली को कई बार धमकियां मिलीं लेकिन वे अपने पथ से डिगी नहीं।
रोली ने गरीब और वंचित वर्ग को आरटीआई की ट्रेनिंग देकर उन्हें सशक्त नागरिक बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह एक समय नेशनल आरटीआई अवार्ड ज्यूरी की सदस्य भी रहीं। इसके अवाला नर्मदा के विस्थापितों के हक में मेधा पाटेकर के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की, जलसत्याग्रह में भाग लिया। आदिवासियों के हक, महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा, लोकपाल बिल, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर रोली के संघर्ष को कौन नहीं जानता।
रोली शिवहरे वर्तमान में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) की मध्य प्रदेश की संयोजक भी हैं और चुनाव सुधार के लिए संघर्ष कर रही हैं। वंचित और शोषित वर्ग के कल्याण के लिए रोली की ललक का अंदाजा इसी से लग जाता है कि बीती 8 मार्च को अपना जन्मदिन मेहनतकश महिला कामगारों के बीच मनाया। रोली शिवहरे अपने पति के साथ मिलकर युवा संवाद नाम के एक संगठन का संचालन भी कर रही हैं, जिसकी बेवसाइट पर देशभर के युवाओं के बीच तमाम ज्वलंत मुद्दों पर वैचारिक मंथन होता है।
इस तरह के काम कर पाना कतई आसान नहीं होता, और केवल नाम कमाने की ललक से भी नहीं हो सकते। ये तभी संभव हो पाता है जब आप अपनी पूरी संवेदनशीलता के साथ उस वंचित और शोषित वर्ग के दर्द का अहसास कर पाते हों। सही मायने में इंसान होने की परिभाषा भी यही है।
मध्य प्रदेश में कटनी निवासी व्यवसायी श्री ओमप्रकाश शिवहरे एवं एडवोकेट श्रीमती सुषमा शिवहरे की पुत्री रोली ने कृषि कॉलेज जबलपुर से बीटेक की उपाधि प्राप्त की। पिता चाहते थे कि वह सरकारी अफसर बने। रोली ने भी यही सोचा था। लेकिन बीटेक की पढ़ाई के दौरान गांवों में उनका जाना हुआ, जहां उन्होंने ग्रामीण जीवन की बदहाली को बहुत करीब से देखा। यही उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट बन गया।
गांव की भयंकर गरीबी और सरकारी योजनाओं के नाम पर विस्थापित किए जा रहे लोगों का दर्द देख रोली ने समाज में असमानता के खिलाफ संघर्ष करने का फैसला किया और इस संघर्ष को ही अपना जीवन बना लिया। इस दौरान शासकीय नौकरी के भी हालात बन लेकिन उन्होंने ये काम करना पसंद नहीं किया। रोली कई समाचार-पत्रों एवं पत्रिकों में सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर लेखन भी करती हैं। भ्रष्टाचार के सवाल पर लिखे गए उनके आलेख को एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन, हांगकांग द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित किया।
रोली को प्रशांत के रूप में एक ऐसा हमख्याल हमसफर मिला है जो असमानता, गरीबी और भुखमरी के खिलाफ संघर्ष में उनके साथ है। रोली शिवहरे और प्रशांत दुबे अपने पांच साल के बेटे राग को गोद में उठाये उस कंटीली राह पर बहुत आगे निकल आए हैं जिसकी मंजिल वह समाज है जो किसी भी असमानता, भय, अपराध, भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त हो, जहां वास्तविक लोकतंत्र और न्यायपूर्ण व्यवस्था हो।
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