शिवहरे वाणी नेटवर्क
आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो गया है, घर-घर देवी की स्थापना की जा रही है। यह पर्व हमें बताता है कि हिंदू संस्कृति में मातृशक्ति को ही सर्वोपरि शक्ति माना गया है। यह अलग बात है कि आज महिलाओं की वैसी स्थिति नहीं है। फिर भी हमारा इतिहास गवाह है कि विनम्र और दयाशील मातृ-शक्ति ने वक्त आने रौद्र रूप भी धारण किया है। हमारे समाज में आज भी वीरांगनाओं की कमी नहीं है। शिवहरे वाणी इस चैत्र नवरात्र के नौ दिनों में आपकी मुलाकात कलचुरी समाज की नौ ऐसी मातृशक्तियों से कराएगा, जिन्होंने लीक से हटकर अपने दम एक मुकाम बनाया, प्रतिष्ठा अर्जित की, परिवार की ताकत बनीं। पहले दिन हम आपकी मुलाकात करवा रहे हैं श्रीमती रितु जायसवाल से जिन्होंने अपने दम पर पिछड़े गांव की तस्वीर बदलने के साथ ही उस गांव में रहने वाले लोगों की तकदीर भी बदली हैः-
ग्राम-प्रधान….मुखिया..। ये ऐसे शब्द हैं जिन्हें सुनते ही मस्तिष्क में तस्वीर उभरती है एक ऐसे रौबीले लहीम-शहीम आदमी की जो धोती कुर्ता और पगड़ी पहनता हो, जिसकी लंबी-लंबी मूंछें हों। लेकिन बिहार के सीतामढ़ी जिले के सिंहवाहिनी गांव इसका अपवाद पेश करता है। यहां की ग्राम प्रधान एक विनम्र, खूबसूरत और संवेदनशील महिला हैं जिसने कुछ ही समय में गांव की तस्वीर बदल दी। रितु विकास कार्यों की खुद निगरानी करती हैं। इसके लिए वह कभी बाइक ड्राइव करती दिखती हैं तो कभी ट्रैक्टर और JCB पर सवार हो जाती हैं। भ्रष्ट अधिकारी उनसे खौफ खाते हैं, मगर गांववाले उन्हें प्यार करते हैं, दिल से उनका सम्मान करते हैं। नाम है रितु जायसवाल जिन्हें केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच अवार्ड ने नवाजा जा चुका है। रितु की कहानी का सबक यह है कि एक कुशल, तत्पर और समर्पित नेतृत्व ही भ्रष्टाचार और अभाव से त्रस्त इस देश की किस्मत को बदल सकता है।
ये कहानी है दिल्ली के एक आईएएस अधिकारी की पत्नी की, जो अपनी लग्जरी लाइफ छोड़कर कुछ करने के इरादे से अपने पति के पैतृक गांव सिंहवाहिनी आ गईं। वैशाली में जन्मीं और पढ़ी-लिखीं रितु का 1996 में आईएएस अधिकारी अरुण कुमार से हुआ था। 2015 में पहली बार अपने पति के साथ सीतामढ़ी जिले में उनके पैतृक गांव सिंहवाहिनी आईं तो यहां दुर्दशा देखकर विचलित हो गईं। बिजली नहीं थी, सड़क का नाम-निशान नहीं था, और पीने के लिए साफ पानी नहीं था। लोग खुले में शौंच करते थे। स्कूल केवल नाम का था, लेकिन वहां टीचर नहीं आते थे। रितु ने गांव के लिए कुछ करने का इरादा पति और बच्चों के सामने रखा। रितु को परिवार का सपोर्ट मिला, बच्चे भी हॉस्टल में रहकर पढ़ने के लिए राजी हो गए। फिर क्या था, दिल्ली के चकाचौंध भरे सुविधायुक्त जीवन को अलविदा कह वह सिंहवाहिनी गांव चली आईं।
सिंहवाहिनी आते ही रितु गांव की एक बीएड लड़की से मिलीं जो बोकारो के एक स्कूल में पढ़ाती थी। रितु ने उसे अपनी जेब से अधिक सैलरी देकर गांव में बुला लिया और उन बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी, जिन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी। उस युवती ने गांव की 25 लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। रितु की कोशिश रंग लाई और गांव के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब 12 लड़कियों ने शानदार अंकों के साथ हाईस्कूल की परीक्षा पास की।
इसके बाद रितु ने गांव की समस्याओं पर ग्रामीणों से चर्चा करना शुरू किया। खुले में शौंच, घरेलू हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या और आर्गेनिक खेती जैसे तमाम मसलों पर ग्रामीणों को जागरूक किया। इन्हीं चर्चाओं में पता चला कि सिंहवाहिनी के लिए विद्युतीकरण योजना मंजूरी हो चुकी है काम शुरू नहीं हुआ है। रितु ने इसके लिए ग्रामीणों के साथ मिलकर अभियान छेड़ा और इसका सुखद परिणाम यह हुआ कि आजादी के 70 बरस बाद गांव में पहली दफा बिजली के पंखे चले। 2016 में सिंहवाहिनी में ग्राम प्रधान पद के लिए चुनाव हुए तो ग्रामीणों के बहुत कहने पर रितु ने चुनाव लड़ा। 32 प्रत्याशियों के बीच अकेले उन्हें ही 72 फीसदी वोट मिल गए।
मुखिया बनने के बाद उन्होंने खुले में शौंच को पहला टारगेट बनाया। रितु ने डीएम से बात गांव के हर घर में एक, कुल मिलाकर 2000 टायलेट बनवाए। फिर भी लोग टायलेट में नहीं जाते थे। इस पर रितु ने महिलाओं की सेना तैयार की जो हर सुबह 4 बजे सक्रिय हो जाती थी और खेत जाने वालों से बात करके उन्हें रोकती थी। नतीजा यह हुआ कि अक्टूबर 2016 को सिंहवाहिनी को खुले में शौंच से मुक्त घोषित कर दिया गया।
इसके बाद रितु ने गांव की सड़कों को दुरुस्त करने के लिए अपने पास से पैसा लगाकर काम शुरू कराया। उनकी देखा-देखी गांववाले भी अपनी सेविंग्स का कुछ हिस्सा देने लगे। आज सिंहवाहिनी की कच्ची सड़क ने चमचमाती डामर रोड का शक्ल ले ली है। इसके बाद रितु ने जनवितरण प्रणाली को दुरुस्त करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने पूरे गांव में राशन की आवश्यकता का आंकड़ा तैयार किया और पंचायत के तहत आने वाले 14000 ग्रामीणों को पूरा राशन मिलना सुनिश्चित कराया।
रितु बताती हैं कि अधिकारी अक्सर मुझे हलके में लेते थे लेकिन मेरी एजुकेशन बहुत काम आई। उदाहरण के लिए हमारे बीडीओ का चेहरा उस वक्त देखने लायक था जब मैने गांव में राशन का डेटा एक्सल शीट पर उसे दिखाया। जब मैंने खेत मजदूरों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित किया तो मुझे जमींदारों की ओर से धमकियां भी मिलीं।
रितु ने पंचायत के अंतर्गत सभी स्कूलों में टीचर्स अपाइंट किए। स्कूल में टीचर्स का समय पर और नियमित आना सुनिश्चित करने के लिए रितु ने गांधीगीरी का सहारा लिया। इसके तहत जब भी कोई टीचर स्कूल में लेट आता, गांववाले स्कूल के गेट पर आकर उन्हें फूल देते थे। जाहिर है, टीचरों को होश में आना ही था।
रितु ने गांव में स्वरोजगार बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग सेंटर खोले। साथ ही कई एनजीओ को इसके लिए आमंत्रित किया। इससे गांव में स्वरोजगार बढ़ा। कई तरह की दुकानें गांव में खुल गईं। बीते वर्ष अगस्त में सीतामढ़ी जिले में भयानक बाढ़ आ गई। तब रितु ने दिल्ली जाने के बजाय गांव में रहकर बचाव अभियान का नेतृत्व किया। कई रिलीफ कैंप चलाए। बहुत कम समय में गांव उस प्राकृतिक आपदा की तबाही से उबर गया।
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