शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
लोहामंडी स्थित मंदिर श्रीराधाकृष्ण में बीते शुक्रवार ऐन होली की शाम को हुए शिवहरे समाज के होली मिलन समारोह को लेकर एक पाठक ने फेसबुक मैसेंजर के माध्यम से शिवहरे वाणी को शिकायती लहजे में बताया है कि वह अपना प्रोग्राम तैयार करके ले गए थे लेकिन उन्हें माइक नहीं दिया गया। उनके मुताबिक, ऐसा लगा जैसे होली मिलन केवल आयोजकों का था। वहीं एक अन्य पाठक ने सवालिया अंदाज में पूछा कि होली मिलन समारोह में समाज की शिरकत लगातार कम हो रही, इस पर चर्चा होनी चाहिए।
इनमें एक सवाल का जवाब तो हम भी दे सकते है। होली मिलन समारोह दो घंटे विलंब से शुरू हो सका। गलती साउंड वाले की रही जिसने बुकिंग के बाद भी समय का ख्याल नहीं रखा। शाम 4 बजे से निर्धारित कार्यक्रम शाम 6 बजे शुरू हो सका। ऐसे में कुछ ही प्रस्तुतियां संभव थीं। वैसे हमारे पाठक ने यह बात स्पष्ट नहीं की है कि प्रस्तुति देने की अपनी इच्छा उन्होंने आयोजकों के समक्ष रखी थी या नहीं। ऐसे आयोजन किसी संस्था या व्यक्ति के नहीं होते बल्कि समाज के होते हैं और जरूरत इस बात की है कि सभी लोग इसमें उत्साह से भागीदारी करे।
दूसरा प्रश्न गंभीर चर्चा का विषय हो सकता है। वजह यह है कि हर बार होली मिलन जैसे आयोजन में समाज के लोगों की न्यून उपस्थिति आयोजकों को हतोत्साहित करती है। हालांकि तमाम उन लोगों को भी मलाल रहता है जो ऐसे आयोजन में मजबूरीवश नहीं जा पाते हैं। सुबह होली और उसी शाम होली मिलन समारोह! ऐसे में समाज के ज्यादातर लोगों को इन दो में से किसी एक का चयन करना पड़ता है। जमकर होली खेलनी है या होली मिलन में जाना है। होली खेलने के बाद न तबीयत माकूल होती है, और न ही सूरत। रंगों की खुमारी और सुस्ती भी तारी रहती है। यही वजह है कि होली की शाम को होने वाले होली मिलन समारोहों में अक्सर कम उपस्थिति देखी जाती है, वो होली मिलन किसी भी समाज का हो या किसी भी संस्था का। आगरा में शिवहरे समाज का होली मिलन समारोह भी ऐन होली की शाम को होता है, और हर बार कम उपस्थिति देखने को मिलती है। गाहे-बगाहे इसे सामाजिक चेतना की कमी कहकर समाज के लोगों को तोहमत दी जाती है।
पहले होली की शाम को मंदिर श्रीदाऊजी महाराज में होली मिलन समारोह आयोजित किए जाने की परंपरा थी। वहीं, मंदिर श्रीराधाकृष्ण में दौज की शाम को होली मिलन समारोह होता था। यह परंपरा बुजुर्गों ने स्थापित की थी और पहले इनमें समाज की उपस्थिति काफी रहती थी। तब समाज बहुत छितराया हुआ नहीं था। अब शहर का विस्तार होने के साथ ही बड़ी संख्या में समाज के परिवार दूर-दराज की कालोनियों में रहने चले गए हैं। होली की थकान और सुस्ती के चलते वे इच्छा होते हुए भी होली मिलन में आने की स्थिति में नहीं रहते।
पिछले वर्ष पहली बार समाज के दोनों मंदिरों का होली मिलन एकसाथ हुआ था। इस बार मंदिर श्रीराधाकृष्ण में हुआ है। उम्मीद थी कि ऐसा करने से होली मिलन में समाज के लोगों की अधिक भागीदारी होगी। बेशक यह बहुत अच्छा और सकारात्मक सोच थी, लेकिन परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं आए और दोनों बार समाज की उपस्थिति कम ही रही।
इस बार आयोजन से जुड़े एक वरिष्ठ समाजबंधु का कहना है कि इस पर चर्चा की जानी चाहिए और जरूरी लगे तो एक और परंपरा को बदल दिया जाए। उनका सुझाव है कि होली मिलन होलिका दहन की शाम को हो या होली के बाद किसी भी दिन किया जा सकता है। उनके मुताबिक, इस बार हम चाहते थे कि यह समारोह होली के अगले दिन किया जाए लेकिन वरिष्ठजनों ने परंपरा की दुहाई दे दी। लिहाजा समारोह होली की शाम को ही करना पड़ा।
खैर, यह एक चिंताजनक मसला है और इस पर विमर्श की जरूरत है। परंपरा की दुहाई देने वालों को यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि पुराने की जगह नए का आना ही सबसे पुरानी परंपरा है। यदि यह बात नहीं समझी गई तो समाज का एक बड़ा तबका होली मिलन जैसे अहम सामाजिक समारोह से मजबूरन वंचित होता रहेगा। और, हम सामाजिक चेतना में कमी का रोना रोते रहेंगे।
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