04/01/2018
अब भारतीय कलचुरी जायसवाल समवर्गीय महासभा के दूसरे गुट के महासचिव राकेश कुमार जायसवाल ने जारी किया पत्र
साव पर लगाए गंभीर आरोप, अपने साथ जनमत होने का दावा किया, साथ ही दुबारा जनमत प्राप्त करने की चुनौती दी
शिवहरे वाणी नेटवर्क
सीधी, (मध्य प्रदेश)
भारतीय कलचुरी जायसवाल समवर्गीय महासभा में हरिद्वार अधिवेशन के दौरान छिड़ा विवाद अब अपने चरम पर है। कलचुरी समाज की यह शीर्ष संस्था अब सीधे तौर पर दो हिस्सों में बटने के कगार पर है। हाल ही में संस्था के संरक्षक श्री वसंतलाल साव ने अपने लैटर पैड पर एक पत्र जारी कर हरिद्वार में अध्यक्ष पद पर श्री लालचंद गुप्ता के चुनाव को उचित ठहराते हुए दूसरे पक्ष पर तमाम आरोप लगाए थे जिसे शिवहरे वाणी ने प्रकाशित किया। इस पत्र के जवाब में अब दूसरे पक्ष की ओर संस्था के नाम से ही एक नए लैटर पैड पर पत्र जारी किया है जिसमें श्री साव पर नियमों को दरकिनार कर संस्था को अपना जेबी संगठन बनाने का गंभीर आरोप लगाते हुए पलटवार किया है।
पत्र जिस लैटर पैड पर जारी किया गया है, उसमें संरक्षक के तौर पर पूर्व अध्यक्ष श्री संजय कुमार जायसवाल का नाम अंकित है, अध्यक्ष के तौर पर डा. एन. सिवासुब्रहमण्यन, महासचिव श्री राकेश कुमार जायसवाल और कोषाध्यक्ष के रूप में डा. तेजराज मेवाड़ा के नाम व पते अंकित हैं। इस पक्ष के महासचिव श्री राकेश कुमार जायसवाल की ओर से संस्था के सभी आजीवन सदस्यों को संबोधित पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है और इसलिए देश में कार्यरत किसी भी सामाजिक संस्था को सदैव प्रजातांत्रिक प्रणाली का पालन करना होता है। कोई भी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह किसी सामाजिक संस्था को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह नहीं चला सकता। शिवहरे वाणी को प्राप्त पत्र में श्री जायसवाल ने जिन बिंदुओं को उठाया वे निम्न प्रकार हैः-
संस्था की पंजीयन प्रक्रिया ही नियमविरुद्ध
श्री जायसवाल ने पत्र में कहा कि वर्ष 2007 में संस्था के गठन के बाद पंजीकरण नई दिल्ली में न कराकर श्री साव के गृहनगर नागपुर में महाराष्ट्र धर्मदाय अधिनियम के अंतर्गत कराया गया और महासभा का संविधान जानबूझकर इस तरह बनाया कि पंजीयनकर्ताओं (श्री वसंतलाल साव एवं श्री वेदप्रकाश जायसवाल) का वर्चस्व सदैव बना रहे। यदि इस संविधान को चुनौती दी जाए तो कानून सम्मत न होने के कारण अदालत इसे निरस्त कर सकती है अथवा संशोधन करा सकती है।
दोहरा मापदंड
पत्र में लिखा है कि हरिद्वार में श्री साव द्वारा अध्यक्ष घोषित किए गए श्री लालचंद गुप्ता इससे पहले छह वर्ष से संस्था के महासचिव पद पर रहे और उनका दायित्व था कि पिछले तीन अधिवेशनों और आज तक की कार्यकारिणी बैठकों की रिपोर्ट धर्मदाय आयुक्त नागपुर को जमा कराते लेकिन उन्होंने कर्तव्यपालन नहीं किया, बल्कि संस्था के आजीवन सदस्यों को अंधेरे में रखा। उनकी लचर कार्यप्रणाली की पूरी तरह अनदेखी तक पदोन्नति दे दी गई। पत्र में लिखा है कि हरिद्वार अधिवेशन में महासभा के महासचिव घोषित किए गए शंभूनाथ जायसवाल की बैठकों में उपस्थिति केवल 17 प्रतिशत रही थी। महासभा के भीलवाड़ा अधिवेशन में श्रीमती अर्चना जायसवाल को 50 फीसदी से कम उपस्थिति के आधार पर अध्यक्ष पद की दावेदारी करने से रोक दिया गया था। ऐसे में 17 फीसदी उपस्थिति वाले श्री शंभूनाथ जायसवाल किस आधार पर महासचिव हो सकते हैं।
अधिवेशन हरिद्वार में क्यों
पत्र में आरोप लगाया गया है कि संरक्षक श्री साव एवं तत्कालीन महासचिव श्री लालचंद गुप्ता ने चार राज्यों के प्रस्तावों को दरकिनार कर उत्तराखंड (हरिद्वार) में अधिवेशन कराने का मनमाना निर्णय लिया जहां से महासभा का केवल एक आजीवन सदस्य है और कोई प्रांतीय समिति हमसे संबद्ध नहीं है। आरोप लगाया कि कम से कम आजीवन सदस्यों के वहां पहुंचने की दुर्भावना से यह निर्णय लिया गया था, और हरिद्वार में जो कुछ हुआ, उससे यह दुर्भावना स्पष्ट हो गई। इसके अलावा अधिवेशन अत्यधिक ठंड के मौसम में किया गया, शायद इसलिए, कि आजीवन सदस्यों की कम से कम उपस्थिति रहे।
उक्त मुद्दों को उठाते हुए श्री राकेश कुमार जायसवाल ने पत्र में हरिद्वार अधिवेशन की कार्रवाई पर भी सवाल खड़े किए। मसलन संरक्षक के रूप में श्री साव ने 3 दिसंबर को पूर्व पदाधिकारियों के साथ बैठक कर गत तीन वर्षों के कार्यों की समीक्षा क्यों नहीं की। इससे पहले 2 दिसंबर को पूर्व कार्यकारिणी की अंतिम बैठक की अध्यक्षता नियमानुसार तत्कालीन अध्यक्ष श्री संजय कुमार जायसवाल से कराई जानी थी लेकिन तत्कालीन महासचिव श्री लालचंद गुप्ता ने श्री साव से बैठक की अध्यक्षता क्यों कराई।
पत्र में दावा किया गया है कि हरिद्वार अधिवेशन में मौजूद आजीवन सदस्यों ने सर्वसम्मति से श्री संजय कुमार जायसवाल को संरक्षक, डॉ. एन.शिवसुब्रहण्यन को अध्यक्ष, मुझे (श्री राकेश कुमार जायसवाल) को महासचिव और डा. तेजराज मेवाड़ा को कोषाध्यक्ष चुना है। अंत में श्री साव एवं उनके समर्थकों को चुनौती देते हुए कहा है कि यही जनमत का फैसला है, इसे स्वीकार करें या दुबारा जनमत लें।
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