शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।(27/12/2017)
भारतीय कलचुरि जायसवाल समवर्गीय महासभा के चतुर्थ अधिवेशन में नई कार्यकारिणी के गठन को लेकर मचा हंगामा थम नहीं रहा है। महासभा स्पष्ट रूप से दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। ऐसे में महासभा के संरक्षक श्री बसंतलाल साव ने सख्त रवैया अपनाने हुए किसी भी हालत में पीछे नहीं हटने के स्पष्ट संकेत दिए हैं। महासभा के आजीवन सदस्यों को संबोधित एक पत्र में श्री साव ने कहा है कि अधिवेशन में नए पदाधिकारियों की घोषणा महासभा के संविधान के अनुरूप की गई थी, इसमें किसी परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है। साथ ही विरोधी खेमे को ताकीद दी कि वे आपस में कीचड़ उछालकर समाज की छवि खराब करने के बजाय किसी अन्य संस्था से जुड़कर समाज की सेवा करें। श्री साव के इस पत्र की जानकारी शिवहरे वाणी को दी गई है।
यहां बता दें कि बीती 2-3 दिसंबर को हरिद्वार में हुए महासभा के चतुर्थ अधिवेशन में नई कार्यकारिणी का चुनाव हुआ था जिसमें सर्वसम्मति से श्रीलालचंद गुप्ता को राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री शम्भुनाथ जायसवाल को राष्ट्रीय महासचिव और श्री वीरेंद्र राय को राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष घोषित किया गया था। मुख्य चुनाव अधिकारी होने के नाते श्री बसंतलाल साव की देखरेख में ही पूरी प्रक्रिया चली थी, और श्री वेद कुमार जायसवाल , श्री संतोष जायसवाल – नागपुर ,श्री ब्रज किशोर जायसवाल ( बादल बाबू ), सांसद श्री बंशीलाल महतो और श्री जी. अशोकन उनके सहयोगी चुनाव अधिकारी थे। अधिवेशन में ही महासभा के ही एक गुट के लोगों ने इस चुनाव प्रक्रिया का भारी विरोध किया था। अधिवेशन के समापन की घोषणा के बाद इस गुट के लोगों ने हंगामा करते हुए श्री एन. सुब्रहमण्यन को राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री राकेश कुमार जायसवाल को राष्ट्रीय महासचिव तथा श्री तेजराज मेवाड़ा को राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष घोषित किया गया। इसके बाद से सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ सी आई गई थी और दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप चल रहे थे।
अब इस पूरे मामले मे श्री साव ने समस्त आजीवन सदस्यों को संबोधित एक विस्तृत पत्र के जरिये पहली बार हस्तक्षेप किया है। शिवहरे वाणी को प्राप्त इस पत्र में श्री साव ने कहा है कि अधिवेशन में एक खेमा पहले से तय करके आया था कि यदि उपरोक्त पदाधिकारियों का चयन उनके मनपसंद का नहीं हुआ तो हगामा करेंगे। हंगामा करने वालों में ऐसे भी लोग थे जो महासभा के सदस्य भी नहीं थे। उन्होंने दावा किया कि पूर्व कार्यकारिणी में पिछले 3 वर्षों से भारी मतभेद चल रहे थे और हरिद्वार में तीनों शीर्ष पूर्व पदाधिकारियों के व्याख्यान भी आपसी मतभेदों की तस्दीक करने वाले थे। मतभेदों का खामियाजा महासभा को भुगतना पड़ा और उसकी बैठकों में न केवल भारी कमी आई बल्कि पूरे उत्तर भारत में इस दौरान शायद ही कोई कार्यक्रम हुआ हो। श्री साव ने आरोप लगाया कि पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष (श्री संजय जायसवाल) ने अपने छह वर्ष के कार्यकाल में केवल सदस्य वृद्धिका एकमात्र कार्यक्रम चलाया। इस दौरान कई असामाजिक तत्व महासभा के सदस्य बनाए गए और अधिकारी भी नियुक्त किए गए। इसका नतीजा 3 दिसंबर को हरिद्वार में हंगामे के रूप में सामने आया। उन्होंने यह भी कहा कि उस शर्मनाक घटना की वीडियोग्राफी कराई गई है, जिसे समय आने पर प्रदर्शित किया जाएगा।
श्री साव ने अपने पत्र में महासभा के संविधान में चुनाव प्रक्रिया संबंधी नियमों का विवरण देते हुए दावा किया कि मनोनीत चुनाव अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के निर्वाचन पर आपस में गहन चर्चा कर सर्वसम्मत घोषणा किया जाना ही कानून-सम्मत होता है। न कि उत्पात, हगामे, जिंदाबाद-मुर्दाबाद, टेबल-कुर्सी तोड़ने जैसा भद्दा प्रदर्शन करना। श्री साव ने दावा किया कि सभा विसर्जित होने के बाद पूर्व वरिष्ठ कार्यकारिणी अध्यक्ष श्री एन. सुब्रहमण्यन मेरे पास आए थे और शर्त रखी कि यदि चुनाव अधिकारी नए सत्र के लिए उन्हें अध्य़क्ष पद के लिए स्वीकार कर लें तो वह समझौते को तैयार हैं। चूंकि तीनों शीर्ष पदों पर चुनाव हो चुका था, लिहाजा दबाव या धमकी में निर्णय बदलना मुझे व मेरे सहयोगियों को मंजूर नहीं था। अंत में उन्होंने सभी आजीवन सदस्यों से आग्रह किया है कि मतभेदों को सुलझाने के लिए आपस में चर्चा करते रहें,लेकिन मनभेद न आने दें। यदि तब भी साथ मिलकर चलना संभव न हो तो बेहतर होगा कि लड़ने-झगड़ने के बजाय किसी अन्य संस्था जुड़ कर समाजसेवा में प्रयासरत रहें।
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