August 4, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
धरोहर

शिवहरे समाज की उत्थान यात्रा में मित्र मंडल के सुधारवादी आंदोलन का प्रभाव (एपीसोड-4 ‘मैं हूं मंदिर श्री दाऊजी महाराज’)

by Som Sahu December 17, 2017  जानकारियांधरोहर 188

गतांक से आगे

शिवहरे नवयुवक मित्र मंडल के प्रयासों से देखते ही उस समय के ज्यादातर युवक परंपरागत आबकारी व्यवसाय से हटकर विभिन्न व्यवसायों में लग गए। इसका एक बड़ा फायदा यह हुआ कि समाज में ज्यादातर लोगों के एक ही कारोबार (आबकारी) में होने से बढ़ती कारोबारी प्रतिस्पर्धा के कारण जो परस्पर वैमनस्य और संबंधों में तनाव उत्पन्न हो रहा था, वह कम हो गया या यूं कहें कि लगभग समाप्त सा हो गया। इससे समाजिक संबंधों मे सौहार्द्र और प्रेम में वृद्धि हुई।

अनेक युवक शू-मैटेरियल और लोहे के कारोबार समेत विविध वस्तुओं के क्रय-विक्रय में लिप्त हो गए। कई युवकों ने अभियंत्रिकी के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त करके जूतों के निर्माण में काम आने वाले उपकरणों एवं कील बनाने के कारखान बनाए। इस मामले में पीपलमडी निवासी स्व. किशनलाल जी अग्रणी थे। उन्होंने शू मैटेरियल विक्रेताओं का एक पूल भी बनाया, जिससे ये विक्रेता ट्रेडर्स का दर्जा पा गए। हालांकि कतिपय कारणों से वह पूल भंग हो गया। मित्र मंडल के सदस्य श्री विशंभरनाथजी (गुजराती पाड़ा, नाई की मंडी), श्री सोहनलाल (हल्का मदन, नाई की मंडी), आलमगंज के श्री रामशरण लालजी. किशलालजी, श्री गिरधर गोपालजी, श्री द्वारिका प्रसादजी आदि इस काम में लगे प्रमुख लोग थे। इन लोगों ने बिरादरी के बहुत से युवकों को अपनी सेवाओं में लगाया। इन युवकों से पहले की पिछली पीढ़ी के लाला श्री बाबूलाल और श्री गेंदालालजी इस व्यापार में स्थापित हो चुके थे। शिवहरे मित्र मंडल के सक्रिय सदस्य श्री पन्नालालजी ने हींग की मंडी में शू मैटेरियल की दुकान शुरू की और बाद में लोहामंडी में हार्डवेयर के कारोबार में लग गए। आलमगंज के श्री ईश्वरी प्रसादजी के ज्येष्ठ पुत्र हींग की मंडी में दुकान चला रहे थे, जबकि उनके पुत्र श्री रामनाथ और श्री रमेशचंद्र के लोह के कारोबार स्थापित हो गए। ऐसे कई नाम हैं जो अन्य कारोबारों में काफी चमके, स्थापित हुए, तरक्की की।

मित्र मंडल के कुछ विशिष्ट सदस्य नियमित रूप से मेरे परिसर में सुबह-शाम आरती के समय उपस्थित रहते थे। यहीं पर चर्चाएं, योजनाएं, उद्देश्यों और लक्ष्यों पर परामर्श के अलावा स्नान-ध्यान भी करते थे और उनके साथ तत्कालीन पुजारी श्री जानकी प्रसाद भी शामिल हो जाते थे। मित्र मंडल के सदस्य बारी-बारी से दाल-बाटी की सैरें आयोजित करते थे। उन सैरों में मित्र मंडल के बाहर के लोगों को अपने विचारों से अवगत कराते थे। दरअसल वह आजादी के तत्काल बाद का दौर था, और अपने सपनों के आजाद भारत को साकार करने को लेकर आम भारतीयों खासकर युवा वर्ग में आदर्शवाद की लहर चल रही थी। इसके चलतं देश के हर कोने में सामाजिक सुधार के आंदोलन चरम पर थे। यह सुधारवाद की बयार शिवहरे समाज में भी बह रही थी जिसकी नुमाइंदगी कर रहा था शिवहरे मित्र मंडल। मित्र मंडल का सबसे बड़ा योगदान शिवहरे बिरादरी के घर-घर में शिक्षा-प्रेम का उत्साह जागृत करना था जो आज भी बढ़ता जा रहा है। आज मेधा और वैदुष्य का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें शिवहरे जनों की पैठ न हो। फिर भी, मित्र मंडल का सपना साकार नहीं हो सका। बताउंगा अगले एपीसोड में, तब तक जय रामजी की

 

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