August 3, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
धरोहर

आत्मकथा ‘मैं हूं मंदिर श्री दाऊजी महाराज’ (एपीसोड-1): बदलाव ही तो है सबसे पुरानी परंपरा!

by Som Sahu December 07, 2017  घटनाक्रमधरोहर 249

सोम साहू

नमस्कार..। मैं मंदिर श्री दाऊजी महाराज हूं। बीती 3 दिसंबर को दाऊजी की पूर्णिमा पर मैंने अपने सफर के 126 वर्ष पूरे किए हैं। इन 126 सालों में बहुत कुछ बदला है। आगरा का स्वरूप बदला है, सदरभट्टी चौराहे का रूप बदला है जहां मैं स्थित हूं। समाज बदला और खुद मैं भी बदला हूं। बदलना लाजिमी भी है, क्योंकि बदलाव ही सत्य है। कुछ लोग खुद को परंपराओं का पैरोकार बताते हैं, और दलीलें देकर बदलावों का विरोध करते हैं। यदि वे वास्तव में परंपरावादी हैं तो उन्हें समझना चाहिए कि परिवर्तन ही सबसे पुरानी परंपरा है। परिवर्तन का विरोध जहां तार्किक रूप से मजबूत होता है, वहां बदलाव की प्रक्रिया में उसे स्वतः जगह मिल जाती है।

मुझे ही देखिये, 126 साल पहले मैं जैसा था, वैसा आज नहीं हूं, और आज जैसा हूं वैसा आने वाले वक्त में नहीं रहूंगा। मेरे लिए बस एक ही चीज है जो नहीं बदली। और, वो है शिवहरे समाज के लोगों के मन और ह्रदय में  मेरे प्रति आस्था और सम्मान का भाव। शिवहरे समाज मुझे अपनी धरोहर मानता है, उसी शिद्दत से मेरा ख्याल रखता है, मुझे संवारता है। मुझे उस पर गर्व है।

 मैं आगरा में शिवहरे समाज के इतिहास का साक्षी हूं क्योंकि मैं उसकी सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा हूं। मेरे सामने, मेरे साये में, कई ऐसी घटनाएं हुईं जो समाज की प्रगति में टर्निंग प्वाइंट बनीं, कई संगठन हुए जिन्होंने समाज में चेतना का प्रसार किया, कई ऐसी शख्सियतें हुईं जो समाज की पहचान बनीं, जिन पर समाज ने फख्र किया। उन घटनाओ, संगठनों, महान लोगों की स्मृतियां आज भी मेरे जेहन में हैं। लेकिन, वे इतनी धुंधली हैं, कि उन्हें सिलसिलेवार जोड़ना मेरे लिए बड़ा दुष्कर है। 126 साल का लंबा सफर तय करने के बाद मेरी हालत ट्रेन की खिड़की वाली सीट पर बैठे उस मुसाफिर की तरह है, जिसे रास्ते में खिड़की से कई अच्छे-बुरे मंजर साफ दिखते हैं लेकिन अपना स्टेशन आते-आते कुछ ही मंजर जेहन में रह पाते हैं, वो भी धुंधले।

बेशक आज आगरा का शिवहरे समाज अब तक के अपने तीव्रतम प्रगति पथ पर है। प्रगति के क्रम में विस्थापन भी स्वाभाविक है और परिवारों का शहर, मुहल्ले छोड़कर नई जगहों पर बस जाना एक आम बात है। आगरा में भी लोग समय के साथ परिवार बढ़ने पर और बदली जरूरतों के हिसाब से दूर-दूराज के इलाकों में जा बसे हैं। अपने काम-धंधों में इतने व्यस्त हो गए हैं, कि अपनों से ही कटने लगे हैं। दूरियां बढ़ रही हैं। ऐसे में वेबपोर्टल शिवहरेवाणी.कॉम एक सेतु के रूप में उभरा है जो लोगों को आपस में जोड़ने का काम कर रहा है। तो मैं भी शिवहरे वाणी पर अपनी आत्मकथा के माध्यम से आपको आपके गौरवशाली अतीत से जोड़ने का प्रयास करुंगा। मुश्किल यह है कि मेरे जेहन में सिलसिलेवार कुछ भी नहीं है, जैसा कि मैं बता चुका हूं। खंडित और धुंधली स्मृतियां हैं, जिन्हें जोड़कर आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं। इसके लिए मुझे उल्टा क्रम अपनाना पड़ रहा है, मतलब जो स्मृति सबसे ताजा है, वह सबसे पहले। मेरी आत्मकथा को आप शिवहरेवाणी.कॉम पर मैं हूं मंदिर श्री दाऊजी महाराजशीर्षक के तहत कड़ियों में पढ़ेंगे, यह पहली कड़ी हैः-

तो शुरू करता हूं अपने मौजूदा प्रधान सेवक श्री भगवान स्वरूप शिवहरे एवं उनकी टीम की मंदिर पुनरुद्धार योजनासे। बीती 3 दिसंबर 2017 को दाऊजी की पूर्णिमा पर काफी समय बाद नगर के दूरदराज के क्षेत्रों से शिवहरे समाज के लोग यहां बड़ी संख्या में आए थे, तब पहली बार मंदिर पुनरुद्धार योजनाका थ्री-डी यानी त्रि-विमीय मानचित्र सबके सामने प्रस्तुत किया गया। दरअसल यह योजना समाज के गौरवपूर्ण अतीत, समृद्ध वर्तमान के साथ ही भविष्य की जरूरतों की एक आदर्श अभिव्यक्ति प्रतीत होती है। मंदिर के  मूल स्वरूप, यानी सेहन चबूतरा, गर्भगृह को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है। इसे आप यूं समझिये कि मुख्य मंदिर का स्वरूप यथावत रहेगा और पुनर्निर्माण में मंदिर के बाद का हिस्सा यानी छोटा हाल, पिछला आंगन, धर्मशाला, अंदर का हाल और छत शामिल है। इसमें बेसमेंट भी जोड़ा गया है जहां पार्किंग की व्यवस्था होगी। इस निर्माण के पीछे उद्देश्य मंदिर में उपलब्ध जगह को अधिकतम उपयोगी बनाना है। एक समय था जब मैं शिवहरे समाज के मांगलिक आयोजनों का मुख्य स्थल हुआ करता था। लेकिन आज के आधुनिक मैरिज होम्स में उपलब्ध सुविधाओं और स्पेस के मुकाबले  मेरी जगह अब नाकाफी लगती है, और सुविधाएं पिछड़ी हुई। वक्त की इस जरूरत को वर्तमान प्रबंध समिति ने समझा है।

अब जरा चित्र को देखिये। यह चित्र केवल ग्राउंड फ्लोर की योजना का है। ऊपर का चित्र मौजूदा हाल के भावी स्वरूप का है। खास बात यह है कि हॉल की रैलिंग जो बेहद उत्कृष्ट लोहे पर बेहतरीन कारीगरी का नमूना है, को तथावत रखा है। सामने मुख्य मंदिर से हाल में प्रवेश स्थल पर बने पिलर हैं जो हाल की शान हैं, उन्हें भी यथावत रखा गया है। भीतरी आंगन से जुड़े हाल के पिलर्स वहां से सुरक्षित हटाए जाएंगे और इनका प्रयोग भीतरी हाल को आंगन से जोड़ने में किया जाएगा। जैसा कि नीचे वाले मानचित्र में आप देख सकते हैं। नीचे वाला मानचित्र जिस एंगेल से दिया गया है, वह 8 फुट का मुख्य द्वार होगा, वहीं से बेसमेंट में उतरने की सीढ़ियां होंगी। इसे छत से पाटकर और भीतरी हाल को इसमे मिलाकर एक बड़े हाल का रूप दिया जाएगा। योजना वास्तव में उत्साहजनक है जिसकी संकल्पना को समझाने के लिए यह मानचित्र रखा गया है। ध्यान रहे कि यह काल्पनिक मानचित्र है, वास्तविक नहीं। कल्पना और वास्तविकता में कुछ तो अंतर हो ही जाता है।

अब मिलेंगे अगले एपीसोड मेः

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