शिवहरेवाणी के सभी पाठकों को हिदू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। आज 9 अप्रैल 2024 है, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, जो हिंदू वर्ष ‘विक्रम संवत 2081’ का पहला दिन है। उत्तर भारत में इस दिन से चैत्र नवरात्र का शुभारंभ होता है, वहीं महाराष्ट्र मे इस दिन गुड़ी पड़वा पर्व मनाया जाता है। दक्षिणी राज्यों में यह दिन अलग-अलग रूप से मनाया जाता है। आइये हिंदू नववर्ष के बारे में कुछ ऐसी जानकारियां साझा कर लेते है, जिसे हम सभी को जान लेना बहुत जरूरी है।
इससे पहले हम जान लेते हैं कि दुनिया में वैसे तो कई कलैंडर हैं, लेकिन तीन कैलेंडर सबसे ज्यादा प्रचलन में हैं जिन्हें नीचे हम उनकी शुरुआत के क्रम से बताने जा रहे हैः-
अ.विक्रम संवत – यह भारतीय हिन्दू कैलेंडर है और इसे भारत, नेपाल, और मॉरीशस में उपयोग किया जाता है। यह कैलेंडर चंद्रमा के चक्र के आधार पर होता है और विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है।
ब.ग्रेगोरियन कैलेंडर- इसे अंग्रेजी कैलेंडर भी कहते हैं जो सबसे आमतौर पर प्रयुक्त कैलेंडर है और अधिकांश दुनिया में उपयोग होता है। यह सूर्य के चक्र के आधार पर होता है।
स. हिजरी कैलेंडर- यह इस्लामी कैलेंडर है और इस्लामी समुदायों में उपयोग किया जाता है। यह चंद्रमा के चक्र के आधार पर होता है और प्रोफेट मुहम्मद की मक्का से मदीना की यात्रा, के बाद की संवत की गणना करता है।
आपने जाना कि ग्रेगोरियन कैलेंडर सूर्य की गति पर आधारित है और हिजरी कैलेंडर में चंद्रमा की गति ही गणना का आधार है, लेकिन विक्रम संवत चांद और सूरज, दोनों पर आधारित है जिसे चान्द्रसौर पद्धति कहते हैं, लिहाजा इस कैलेंडर को ज्यादा साइंटिफिक माना जाता है।
आइये आपसे साझा करते हैं हिंदू कैलेंडर को लेकर कुछ और खास जानकारियां जो आपको पता होना चाहिएः-
- ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार ‘विक्रम संवत’ की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने 57 ई.पू. में की थी। इसीलिए यह कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 वर्ष आगे है। जैसे ग्रेगोरियन कैलेंडर में बीती 1 जनवरी से वर्ष 2024 चल रहा है, और आज से विक्रम संवत 2081 शुरू हो गया है। कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपनी सम्पूर्ण प्रजा का ऋण खुद चुकाकर इस संवत की शुरुआत की थी। पौराणिक कथा के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी इसलिए हिन्दू इस तिथि को ‘नववर्ष का आरंभ’ मानते हैं। विक्रमादित्य ने भारत की इन तमाम कालगणना की सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर संवत को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवंदन करता है।
- हिंदू कैलेंडर के महीने चंद्र गति पर आधारित होते हैं, जबकि वर्ष सूर्य की गति पर निर्भर होता है। चांद पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है औऱ एक चक्कर पूरा करने में उसे 27 (स्पेसिफ़िकली 27.32) दिन लगते हैं। इस हिसाब से हिंदू कैलेंडर के नक्षत्र आदि तय हो जाते हैं जिसे चंद्रमा की पत्नियों के नाम पर भी जाना जाता है। कहा जाता है कि चंद्रमा हर दिन अपनी एक पत्नी के पास जाता है।
- हिंदू कैलेंडर विक्रम संवत में भी ग्रेगोरियन कैलेंडर की तरह ही 12 महीने होते हैं, जिनके नाम हैं चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। एक महीने में दो पखवाड़े होते हैं, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। हर पक्ष 15-15 दिन का होता है। अब हिंदू पंचांग के हिसाब से 12 चंद्र-माह में सिर्फ 355 दिन कवर हो पा रहे थे। इस तरह विक्रम संवत में एक साल ग्रेगोरियन वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा होता है, इसलिए प्रत्येक तीन वर्ष (36माह) में इसमें एक महीना जोड़ दिया जाता हृ जिसे मल-मास या अधिमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं।
- हिंदू कैलेंडर में अधिमास और ग्रेगोरियन कैलेंडर में लीप ईयर एक जैसी व्यवस्थाएं हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर एक साल 365 दिन का होता है और हर चौथे वर्ष लीप ईयर में एक दिन और जोड़ दिया जाता है। इस साल फरवरी माह 29 दिन का होता है, जबकि सामान्य वर्षों में यह 28 दिन का होता है। जिस तरह लीप ईयर में एक दिन बढ़ जाता है, वैसे ही हिंदू कैलेंडर में अधिमास के रूप में एक महीना बढ़ जाता है। अगर लीप ईयर और अधिकमास की व्यवस्था नहीं होती तो हमें होली का त्योहार ठंड में और दीपावली बारिश में मनानी पड़ती।
- विक्रम संवत नेपाल और भारत में कई जगहों का सांस्कृतिक और आधिकारिक पंचांग है। भारत में यह अनेकों राज्यों में प्रचलित पारंपरिक पंचांग है। नेपाल के सरकारी संवत के रुप में विक्रम संवत ही चला आ रहा है।
लेकिन शक संवत है भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर
आपको यह भी बता दें कि भारत का राष्ट्रीय कलैंडर विक्रम संवत नहीं बल्कि शक संवत है. जिसे भारत सरकार ने 1957 में अपनाया था। इस संवत का आरंभ कुषाण राजा ‘कनिष्क महान’ ने अपने राज्य आरोहण को उत्सव के रूप में मनाने और उस तिथि को यादगार बनाने के लिए किया था। कुषाण राजा कनिष्क को शक संवत का जनक माना जाता है। शक संवत हर साल 22 मार्च को शुरू होता है। इस दिन सूर्य विषुवत रेखा के ऊपर होता है और इसी कारण दिन और रात बराबर के समय के होते हैं। शक संवत के दिन 365 होते हैं और इसका लीप ईयर भी अंग्रेजी ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ ही होता है। लीप ईयर होने पर शक संवत 23 मार्च को शुरू होता है और उसमें 366 दिन होते हैं। भारत में शक संवत का प्रयोग वराहमिरि द्वारा 500 ई. से किया जा रहा है।
विक्रम संवत और शक संवत में अंतर
कई लोग शक संवत और विक्रम संवत के अंतर में भेद नहीं कर पाते। ऐसे में इन दोनों के बीच अंतर करना आम इंसान के लिए मुश्किल हो जाता है। शक संवत और विक्रम संवत के महीनों के नाम एक ही हैं और दोनों ही संवतों में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष हैं। इन दोनों संवतों में अंतर सिर्फ दोनों पक्षों के शुरू होने में है। विक्रम संवत में नया महीना पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष से होता है जबकि शक संवत में नया महीना अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। इसी कारण इन संवतों के शुरू होने वाली तारीखों में भी अंतर आ जाता है। शक संवत में चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, उस महीने की पहली तारीख है जबकि विक्रम संवत में यह सोलहवीं तारीख है।
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