बांसवाड़ा।
राजस्थान के बांसवाड़ा में मेवाड़ा कलाल समाज के सामूहिक विवाह की गौरवशाली परंपरा में एक और अध्याय जुड़ गया। बीते सोमवार को 15वें सामूहिक विवाह समारोह में 18 जोड़ों ने अग्नि के फेरे लेकर वैवाहिक जीवन की शुरुआत की। सभी जोड़ों को घर-गृहस्थी के जरूरी सामान के साथ दुल्हनों के हाथों में हैलमेट भी दिए गए, और उनसे कहा गया कि इसे पतियों को पहनाना उनकी जिम्मेदारी होगी।
बीते 28 नवंबर को हुए सामूहिक विवाह में सभी 18 जोड़ों को गोदरेज की बड़ी अलमारी, किचन सेट, गैस सिलेंडर और चूल्हा, चांदी की पाजेब, कंबल, दुल्हन की ड्रेस, वीआईपी सूटकेस भेंट किया गया। समाज के संरक्षक एवं पूर्व अध्यक्ष श्री हरीश कलाल सेनावासा की ओऱ से प्रत्येक दूल्हे को तलवार और हैल्मेट का उपहार दिया, और प्रत्येक दुल्हन को ड्रेस भेंट की। हर जोड़े को भारत माता की तस्वीर भी उन्होंने दी। सामूहिक विवाह में दुल्हन को संकल्प दिलाया गया कि वह अपने पति को यातायात नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करेंगी और बिना हैलमेट पहने ड्राइव नहीं करने देंगी।
आपको बता दें कि बांसवाड़ा के मेवाड़ा कलाल समाज में एकल विवाह प्रतिबंधित है और समाजबंधु अपने बच्चों की शादी सामूहिक विवाह के माध्यम से ही करते हैं। कोरोना के चलते बीते दो साल से सामूहिक विवाह नहीं हो पा रहा था। 28 नवंबर को 15वें सामूहिक विवाह समारोह के साथ यह विराम टूटा है। सामूहिक विवाह की परंपरा शुरू करने में अहम भूमिका निभाने वाले समाज के संरक्षक एवं पूर्व जिलाध्यक्ष हरीश कलाल सेनावासा ने इस विराम को तोड़ने में भी अहम पहल की है। उन्होंने विवाह के लिए सबसे पहले अपने छोटे बेटे प्रिंस का नाम लिखवाया था। खास बात यह है कि 3 दिसंबर, 2014 को जब बांसवाड़ा में पहला सामूहिक विवाह करवाया गया था, तब भी लोगों को प्रेरित करने के लिए श्री हरीश कलाल सेनावासा ने ही अपने बड़े बेटे की शादी इसी सामूहिक विवाह से की थी और सबसे पहले उसका नाम लिखवाया था। प्रतिष्ठित कारोबारी एवं समाजसेवी श्री हरीश कलाल की इस पहल के बाद ही लोगों ने अपने बच्चों के नाम सामूहिक विवाह के लिए लिखवाए थे और एक अनुकरणीय परपंरा की शुरुआत हुई थी।
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