इंदौर।
विद्वान लेखक, पत्रकार और फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे नहीं रहे। वह कैंसर से पीड़ित थे, बुधवार सुबह 8 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। 83 वर्षीय जयप्रकाश चौकसे को फिल्म जगत का चलता-फिरता एनसाइक्लोपीडिया माना जाता था। उनके निधन से मीडिया और फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। उनका अंतिम संस्कार शाम 5 बजे इंदौर के सायाजी होटल के पीछे स्थित मुक्तिधाम पर किया जाएगा। उनका पार्थिव शरीर अभी इंदौर में उनके निवास E-11 एचआईजी कालोनी (शैफाली जैन नर्सिंग होम के पीछे) पर रखा गया है जहां साहित्य, मीडिया और सिनेमा जगत की कई हस्तियां उन्हें श्रद्धांजलि देने आ रही हैं।
जयप्रकाश चौकसे के आलेख देशभऱ की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। वह दैनिक भास्कर अखबार के लिए 26 वर्षों से नियमित कॉलम ‘परदे के पीछे’ लिख रहे थे। बीती 28 फ़रवरी को “पर्दे के पीछे” की आखिरी किस्त का प्रकाशन हुआ, जिसमें उन्होंने अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए पाठकों से विदा ली थी। यह कॉलम 26 वर्ष 117 दिन तक निरंतर प्रकाशित हुआ और ऐसा करने वाले वह भारत के ही नहीं वरन दुनिया के सबसे पहले स्तम्भकार बने। उनका यह रिकार्ड गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज किया गया है। जयप्रकाश चौकसे अपने पीछे धर्मपत्नी श्रीमती उषा चौकसे, पुत्रगण राजू चौकसे एवं आदित्य चौकसे का भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं। कुछ महीने पहले ही जयप्रकाश चौकसे बुरहानपुर में अपने भतीजे मैक्रोविजन एकेडमी के डायरेक्टर श्री आनंदप्रकाश चौकसे के घर आए थे।
जयप्रकाश चौकसे ने उपन्यास ‘दराबा’, ‘महात्मा गांधी और सिनेमा’ और ‘ताज बेकरारी का बयान’ भी लिखे। ‘उमाशंकर की कहानी’, ‘मनुष्य का मस्तिष्क और उसकी अनुकृति कैमरा’ और ‘कुरुक्षेत्र की कराह’ उनकी चर्चित कहानियां हैं। चौकसे जी की समीक्षाएं आम फिल्मी समीक्षाओं की भाषा और गॉसिपबाजी से हटकर होती थी। उनमें दायित्वबोध भी था और इसीलिए वे पसंद भी किए जाते थे। एक तरह से उन्होंने फिल्म समीक्षा के लेखन की नई शैली रची, जिसे पाठकों ने बहुत पसंद किया। और, यह कहना गलत नहीं होगा कि आज के दौर में ज्यादातर फिल्म समीक्षक अपने लेखन में जयप्रकाश चौकसे का पीछा करते नजर आते हैं।
चौकसे ने फिल्म निर्माण से लेकर फिल्म रियलिटी शो के लिए स्क्रिप्ट राइटिंग का काम भी किया था। वह फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन बिजनेस से भी जुड़े रहे। लेकिन उनकी असली पहचान फिल्म पत्रकार के रूप में ही रही। चौकसे ने सलमान खान की हिट फिल्म बॉडीगार्ड की कहानी भी लिखी थी। 1 सितंबर, 1939 को बुरहानपुर में जन्मे जयप्रकाश चौकसे की पढ़ाई-लिखाई इंदौर में हुई। राजकपूर की फिल्मों के वह बचपन से दिवाने थे। बाद में राजकपूर से उनके नजदीकी रिश्ते भी रहे।
समाचार
साहित्य/सृजन
इंदौरः फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे नहीं रहे; मीडिया और फिल्म जगत में शोक की लहर
- by admin
- March 2, 2022
- 0 Comments
- Less than a minute
- 3 years ago
Leave feedback about this