November 1, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
धरोहर समाचार

झांसीः जुगलकिशोर शिवहरे ने किया ऐसा काम कि नाज करेंगे आप; अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के सपने को किया साकार: राष्ट्रमाता जगरानी देवी की प्रतिमा स्थापित करवाई

झांसी।
महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद चंद्रशेखर आजाद कभी झांसी से पास ओरछा के जंगल में पहचान छिपाकर पंडित हरीशंकर ब्रह्मचारी के छदम नाम से डेढ़ साल रहे, वहां के बच्चों को पढ़ाते थे और निशानेबाजी की प्रेक्टिस करते थे। लेकिन, अब झांसी ने इस महान शहीद के साथ एक नया रिश्ता कायम किया है, सम्मान का रिश्ता….जिस पर झांसी को तो गर्व होगा ही, सबसे ज्यादा नाज झांसी के शिवहरे समाज को होगा।
दरअसल, झांसी में बड़ागांव गेट के पास स्थित श्मशानघाट में शहीद चंद्रशेखर आजाद की माताजी स्व. श्रीमती जगरानी देवी की प्रतिमा उस जगह स्थापित की गई है, जहां जहां 52 वर्ष पूर्व उनका अंतिम संस्कार किया गया था। आजादी के मतवाले को जन्म देने वाली राष्ट्रमाता स्व. श्रीमती जगरानी देवी माताजी की प्रतिमा बनवाई है शिवहरे समाज झांसी के पूर्व अध्यक्ष श्री जुगल किशोर शिवहरे ने। बीती 23 जुलाई को झांसी के मेयर श्री बिहारीलाल आर्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री प्रदीप जैन ने श्री जुगल किशोर शिवहरे के साथ राष्ट्रमाता जगरानी देवी की प्रतिमा का लोकार्पण किया। इस दौरान शिवहरे समाज, झांसी के अध्यक्ष श्री विष्णु शिवहरे समेत सभी पदाधिकारी एवं कई प्रतिष्ठित समाजबंधुओं भी उपस्थित रहे। 

आजाद की मां का झांसी से  था मार्मिक रिश्ता 
आप सोच रहे होंगे, कि शहीद चंद्रशेखर आजाद मध्य प्रदेश के झाबुआ के रहने वाले थे, फिर झांसी से उनका रिश्ता क्या था भला? तो हम बताते हैं। झांसी के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सदाशिव राव की चंद्रशेखर आजाद से बहुत दोस्ती थी, और ओरछा के जंगल में वे साथ छिपकर रहे थे। 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के विक्टोरिया पार्क में चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों की गोलीबारी में वीरगति को प्राप्त हुए थे। जबकि सदाशिव राव ने देश स्वतंत्रता के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। 15 अगस्त, 1947 को देश को आजादी मिलने के बाद सदाशिव राव भी जेल से रिहा हुए तो उनकी पहली इच्छा अपने दोस्त चंद्रशेखर आजाद के माता-पिता के हालचाल जानने की हुई। वह झाबुआ जिले के भाबरा गांव पहुंचे जहां चंद्रशेखऱ आजाद ने कभी उन्हें अपने पिताजी श्री सीताराम तिवारी व माताजी श्रीमती जगरानी देवी से मिलवाया था। भाबरा गांव पहुंचने पर पता चला कि पिताजी का निधन हो चुका है। आजाद के बड़े भाई पहले ही स्वर्गवासी हो गए थे। माताजी जगरानी देवी थीं जो बड़ी दयनीय स्थिति में जीवन काट रहीं थीं। शहीद बेटे का सम्मान रखते हुए वह किसी के आगे हाथ फैलाने के बजाय इतनी वृद्धावस्था में भी जंगल में लकड़ी काटकर लातीं, उसे बेचकर इतना ही प्राप्त हो पाता था कि कभी बाजारा तो कभी ज्वार पीसकर उसका घोल पीकर सो जाती थीं। सदाशिव राव ने उनकी इस हालत की वजह पता की तो आश्चर्य हुआ कि गांव के लोग आजादी के बाद भी उन्हें ‘डकैत की मां’ कहते थे और उनसे दूरी बनाकर रहते थे।। इससे भी दुखद पहलू यह है कि उस समय देश को आजाद हुए दो साल हो चुके थे। सदाशिव राव से आजाद की मां का यह देखा न गया और वह उन्हें अपने साथ झांसी ले आए। उन्हें मां की तरह अपने साथ, अपने पास रखा। मार्च, 1951 में आजाद की मां का झांसी में निधन हो गया। सदाशिव राव ने बेटे की तरह उनका अंतिम संस्कार अपने हाथों से बड़ागांव गेट के पास के श्मशान में किया। तब से यहां माताजी श्रीमती जगरानी देवी का स्मारक बनाने की बात होती रही लेकिन यह पूर्ण आकार नहीं ले पाया। अब आकर श्री जुगल किशोर शिवहरे ने राष्ट्रमाता स्व. श्रीमती जगरानी देवी की प्रतिमा स्थापित कर महान स्वतंत्रता सेनानी सदाशिव राव के सपने को पूरा किया है। 

ये भी रहे मौजूद
प्रतिमा लोकार्पण समारोह में शिवहरे समाज, झांसी के संरक्षक श्री स्वामी प्रसाद शिवहरे एवं श्री काशीप्रसाद शिवहरे के अलावा शिवहरे समाज समिति के महामंत्री श्री पवन शिवहरे (लोहे वाले), वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री केशव प्रसाद शिवहरे, उपाध्यक्ष श्री मोहन शिवहरे, मीडिया प्रभारी श्री सुदर्शन शिवहरे एवं सदस्यगण श्री मदन शिवहरे, श्री निखिल शिवहरे, श्री जीतू शिवहरे, श्री गिरीश शिवहरे, श्री रवि शिवहरे की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कार्यक्रम का संचालन श्री मनमोहन ‘मनु’ शिवहरे ने किया। अंत में श्री जुगल किशोर शिवहरे ने सभी का आभार व्यक्त किया। 
 

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