December 3, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार

‘कलचुरी रत्न’ हरिहरानंद स्वामी को एलएनसीटी यूनीवर्सिटी से मानद उपाधि; आरएएस अधिकारी से आध्यात्मिक गुरू तक का सफर; एक दर्जन से अधिक पुस्तकों के लेखक

भोपाल।
प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान ‘एल.एन.सी.टी. यूनीवर्सिटी भोपाल’ ने आध्यात्मिक गुरु श्री हरिहरानंद स्वामी समेत विभिन्न क्षेत्रों की पांच विभूतियों को ‘डॉक्टरेट’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। बीते दिनों एल.एन.सी.टी. यूनीवर्सिटी के तृतीय दीक्षांत समारोह में मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगू भाई पटेल और केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने उन्हें यह सम्मान प्रदान किया। इस दौरान यूनीवर्सिटी के मेधावी विद्यार्थियों को पदक भी प्रदान किए।
श्री हरिहरानंद स्वामी को सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए यह सम्मान दिया गया है। उनके साथ विख्यात फिल्म गीतकार समीन अंजान, शिक्षाविद शिवानी पाटिल, पैरास्विमनर सत्येंद्र सिंह लोहिया और आध्यात्मिक गुरु अनिल गोस्वामी को भी यूनीवर्सिटी की ओर से मानद उपाधि सम्मानित किया गया। समारोह में यूनीवर्सिटी के कुलपति जे.एन. चौकसे, एल.एन.सी.टी. ग्रुप के सचिव डॉ. अनुपम चौकसे, वाइस चैयरपर्सन श्रीमती पूनम चौकसे एवं कार्यपालक निदेशक धर्मेन्द्र गुप्ता मंचासीन रहे। श्री हरिहरानंद जी महाराज ने शिवहरेवाणी से बातचीत में श्री जेएन चौकसे का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि एलएनसीटी यूनीवर्सिटी से मिला यह सम्मान उनके लिए बड़े गौरव का विषय है।


आरएएस अधिकारी के रूप में रिटायरमेंट
मूलतः जयपुर निवासी श्री हरिहरानंद स्वामी का वास्तविक नाम श्री हरीशचंद्र धनेटवाल है। इंग्लिश, संस्कृत और दर्शन के होनहार छात्र रहे हरीशचंद्र धनेटवाल ने स्नातकोत्तर के बाद अपने जीवन की शुरुआत राजस्थान में शिक्षा विभाग में सेवा से की। बाद में एक्साइज डिपार्टमेंट और पंजीयन विभाग में काम करते हुए आरएएस (राजस्थान प्रशासनिक सेवा) में आए और 1999 में जैसलमेर के ‘असिस्टेंट कलक्टर एंड मजिस्ट्रेट’ पद से रिटायर हुए।
सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक सेवा
सरकारी सेवा से रिटायरमेंट के बाद श्री हरीशचंद्र धनेटवाल सामाजिक सेवा में सक्रिय हो गए। वह अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रहे, और राजस्थान प्रांत की स्वजातीय संस्था के तीन बार प्रांतीय अध्यक्ष भी रहे। इस दौरान उन्होंने कई सामूहिक विवाह एवं परिचय सम्मेलन जैसे आयोजन भी कराए। सामाजिक कार्यों के लिए राजस्थान सरकार ने वर्ष 2007 में उन्हें भामाशाह की उपाधि से सम्मानित किया। करीब 10-11 वर्ष सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने के बाद वर्ष 2010-11 में उन्होंने दौसा के कीर्तिशेष समाजसेवी श्री रामस्वरूप जायसवाल को दायित्व सौंपकर धर्म-आध्यात्म के क्षेत्र में पदार्पण किया, जहां हरिहरानंद स्वामी के रूप में उनकी नई पहचान बनी।
वृंदावन से था लगाव, अब वहीं निवास
श्री हरिहरानंदजी स्वामी ने शिवहरेवाणी को बताया कि वह और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती द्रौपदी धनेटवाल नियमित रूप से भगवान श्रीकृष्ण की भूमि वृंदावन आते-जाते थे। वृंदावन से ऐसा लगाव हुआ कि उन्होंने बहुत पहले वहां बसने का इरादा कर लिया। 2006 में उन्होंने वृंदावन में इस्कॉन मंदिर के निकट बालाजी आश्रम के पास ही एक भूखंड ले लिया और, 2011 में सामाजिक दायित्वों से मुक्त होकर पत्नी के साथ यहां आ बसे।
लेखन, अनुवाद और व्याख्यान
वृंदावन में आने के बाद श्री हरिहरानंदजी स्वामी ने प्राचीन धार्मिक एवं आध्यात्मिक साहित्य पर विशेष कार्य किया। ‘द डायमंड्स ऑफ वाल्मीकी रामायण‘ उनकी सबसे चर्चित पुस्तक है। इसके अलावा ‘गोस्वामी बांकेबिहारी के चमत्कार’, ‘कलिकाल की लाडली बेटियों के नाम’, ‘जन्नत धरती पर उतरेगी’ समेत दर्जनभर से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने श्रीमदभागवत गीता का इंग्लिश अनुवाद भी किया। खास बात यह है कि गीता के अनुवाद में उन्होंने श्लोकों के सरल अंग्रेजी भावार्थ के साथ ही अंग्रेजी में विश्वस्तरीय उच्चारण को शामिल किया है। बीते 4-5 वर्षों से विभिन्न टीवी चैनलों पर उनके व्याख्यानों का नियमित प्रसारण भी हो रहा है। वर्तमान में संतवाणी चैनल पर प्रत्येक रविवार को उनका प्रोग्राम प्रसारित होता है। श्री हरिहरानंदंजी स्वामी अपने व्य़ाख्यान में संस्कृत में श्लोक बोलकर सरल हिंदी और अंग्रेजी में उसकी व्याख्या करते है।


बृज-गौरव व बृज-रत्न सम्मान
अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से स्वामीजी ने वृंदावन के संत समाज में विशेष प्रतिष्ठा एवं सम्मान अर्जित किया है। वृंदावन में होने वाले संत समारोहों में उनकी उपस्थिति अनिवार्य होती है, जहां वे अपने व्याख्यान देते हैं। उन्हें आध्यात्मिक क्षेत्र में ‘बृज गौरव’ से सम्मानित किया गया है। साथ ही जी-20 के दौरान बृजरत्न की उपाधि भी दी गई थी।
गत वर्ष मिला था कलचुरी-रत्न सम्मान
शिवहरेवाणी से बातचीत में श्री हरिहरानंदजी ने कहा कि ईश्वर की कृपा है जो समाज, धर्म और आध्यात्म के क्षेत्र में उनकी लौ लगाए रखी है। कलचुरी समाज से होने के नाते स्वजातीय बंधुओं का उन्हें अपार प्रेम मिलता है। गत वर्ष दिल्ली में कलचुरी समाज की एक राष्ट्रीय संस्था ने उन्हें ‘कलचुरी रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया था। अब विख्यात शिक्षाविद एवं समाजसेवी श्री जेएन चौकसे के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान एल.एन.सी.टी. यूनीवर्सिटी ने मानद उपाधि देकर उपकृत किया है।
श्री हरिहरानंदजी का परिवार
श्री हरिहरानंद स्वामी के एक पुत्र औऱ तीन पुत्रियां हैं। पुत्र वेदप्रकाश धनेटवाल होटल-टूरिज्म, इवेंट के काम में हैं, पुत्रवधु आशा सेवाभावी गृहणी है। बड़ी पुत्री कुसुम धारवाल फाइनेंस एडवाइज हैं और राजस्थान सरकार के उच्चतम वेतनमान पर कार्यरत हैं, दामाद नीलेश धारवाल बिजली विभाग में सुपरिंटेंडेंट हैं। दूसरे नंबर की बेटी सुमन हाडा कॉपरेटिव में असिस्टेंट रजिस्ट्रार हैं, जबकि उनके पति दुष्यंत हाडा आईसीआईसीआई बैंक में एजीएम के पद पर हैं। दुष्यंत हाडा राजस्थान के जाने-माने समाजसेवी श्री शिवचरण हाडा के पुत्र हैं। स्वामीजी की सबसे छोटी बेटी तृप्ति हैं जिनके पति का जयपुर में कपड़े का बिजनेस है।

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