आज (20 अक्टूबर) नवरात्रि का चौथा दिन कुष्मांडा देवी को समर्पित है। मां कुष्मांडा की विधि-विधान पूर्वक पूजा से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। भक्त की आयु, यश, बल और सेहत में वृद्धि होती है।
कुष्मांडा देवी को अष्टभुजा भी कहा जाता है। सिंह पर सवार मां ने अपनी आठ भुजाओं के हाथों में धनुष-बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल धारण किया हुआ है, वहीं एक और हाथ में मां के हाथों में सिद्धियों और निधियों से युक्त जप की माला भी है।
पौराणिक कथा के अनुसार मां कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा। मां दुर्गा ने असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था। मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी। कुष्मांडा की पूजा में कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है। मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है।
नवरात्र के चौथे दिन कुष्मांडा देवी की लाल रंग के फूलों से पूजा करने की परंपरा है। पूजा में मां को सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् अर्पित करें और सफेद कुम्हड़े की बलि भी दें। इसके बाद दही और हलवे का भोग लगाएं। मां कुष्मांडा की पूजा विधि पूर्वक करने के बाद दुर्गा चालीसा और मां दुर्गा की आरती जरूर करनी चाहिए।
मां कुष्मांड को प्रसन्न करने का मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नम:॥
बीज मंत्र
कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:
प्रार्थना
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
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