इलाहाबाद।
एक शिवहरे दंपति के वाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है कि यदि कोई मां कानून के प्रावधानों और समाज की मान्यताओं के विरुद्ध जाकर अपने पति से तलाक लिए बगैर दूसरी शादी करती है तो भी उसे अपने नाबालिग बच्चे की परवरिश से वंचित नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस जेजे मुनीर की बैंच ने कहा कि, ‘नाबालिग को उसकी मां के साथ से वंचित करना उस बच्चे के समग्र विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, साथ ही यह उस बच्चे की भलाई के लिए भी उचित नहीं है।’ वाद साढ़े पांच साल के बच्चे अनमोल शिवहरे के भविष्य को लेकर था। अनमोल के पिता विकास गुप्ता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल कर कहा था कि उनके बेटे अनमोल शिवहरे को उसकी मां गीता (विकास गुप्ता की पत्नी) ने अवैध रूप से अपने साथ रखा हुआ है। गुप्ता (पिता) ने कोर्ट से प्रार्थना की थी कि अनमोल को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दे और उसे उसकी मां (गीता) के कब्जे से मुक्त कराकर उन्हें सौंपने का निर्णय दे।
मामला यह है कि विकास गुप्ता का विवाह 8 दिसंबर 2009 को गीता के साथ हिंदू रीति-रिवाज से कानपुर में हुआ था जिसके बाद 7 अगस्त 2015 को अनमोल का जन्म हुआ था। जैसा कि विकास गुप्ता का आरोप है कि 3 अक्टूबर 2019 को गीता उनके मासूम बच्चे अनमोल को लेकर घर से चली गई थी। 4 अक्टूबर, 2019 को गुप्ता ने गुरुग्राम के सेक्टर-37 पुलिस थाने में इसकी एफआईआर कराई थी जो आईपीसी की धारा-346 के तहत दर्ज की गई ।
गीता ने अपने बयान में कहा कि उसने बलराम चौधरी नाम के शख्स से शादी कर ली है और उसने 22 मई 2018 को हुए इस विवाह का प्रमाण-पत्र भी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया। गुप्ता का कहना था कि बलराम से गीता का विवाह शून्य माना जाना चाहिए क्योंकि यह उसके पति के रहते हुए बिना तलाक दिए दूसरी शादी करने का मामला है और इस लिहाज से भी वह अपने बच्चे पर अधिकार भी खो चुकी है। गुप्ता ने एक अजनबी के घर में अनमोल के गीता के साथ रहने को अवैध बताया। जबकि, गीता ने आरोप लगाया कि गुप्ता एक निर्दयी पिता है। गुप्ता उसके साथ बड़े वहशीपन से पेश आता था और इसीलिए वह उसे छोड़कर चली गई।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि नाबालिग के अपने अभिभावकों के प्रति व्यवहार पर विचार करते हुए महसूस होता है कि इस उम्र में बच्चे को मां के साथ से वंचित करना उसके समग्र विकास पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि नाबालिग की उम्र पांच साल से अधिक है, लेकिन यह उम्र बहुत नाजुक होती है जब उसे उस देखभाल की जरूरत होती है जो मां ही दे सकती है। अदालत ने कहा, यह सही है कि गीता अपने पति को तलाक दिए बिना घर से चली गई और बलराम चौधरी के साथ नए रिलेशन में आ गई जो कानून और समाज के लिए आघात हो सकता है, लेकिन यह उतना विकृत और अनैतिक भी नहीं है जितना कि एक मां को उसके मासूम बच्चे के जीवन में उसकी विशेष भूमिका से वंचित करना हो सकता है।
गीता ने कोर्ट को बलराम के घर में अपनी परिस्थितियों की जानकारी दी जिस पर कोर्ट ने पाया कि नाबालिग बच्चे को उसे मां के नए परिवार ने अच्छी तरह अपना लिया है। कोर्ट ने माना कि बलराम, गीता और दो बच्चों जो सौतेले भाई हैं, की फैमिली आपस में अच्छी बांडिंग वाला परिवार है, जिसमें नाबालिग अनमोल की बेहतर परवरिश होने का भरोसा किया जा सकता है।
दूसरी ओर, न्यायालय ने उल्लेख किया कि गुप्ता अपनी आजीविका में व्यस्त रहते हैं, और मां को छोड़कर कोई अन्य व्यक्ति किसी मासूम की उसकी मां जितनी तो क्या उसकी आधी भी परवरिश नहीं कर सकता। हालांकि अदालत ने अपने आदेश में पिता को अनमोल से मुलाकात करने के अधिकार को भी सुनिश्चित किया। गीता को हर दो महीने में एक बार, किसी भी रविवार वाले दिन अनमोल को कानपुर में उसके पिता विकास गुप्ता के घर ले जाने के लिए आदेशित किया है।
(पहचान छिपाने के उद्देश्य से अनमोल के पिता और मां के काल्पनिक नाम दिए गए हैं।)
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तलाक लिए बिना दूसरी शादी करने के बाद भी मां को बच्चे की परवरिश से वंचित नहीं किया जा सकताः हाईकोर्ट
- by admin
- January 7, 2021
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