नई दिल्ली।
केंद्रीय मंत्री श्रीपाद येसो नायक ने संपूर्ण भारतवर्ष में कलचुरी समाज के विभिन्न वर्गों से एकजुट होने का आह्वान किया है। सरदार महाराजा पापन्ना गौड़ का सपना भी तभी साकार हो सकेगा।
श्री नायक बीते 2 अप्रैल को दक्षिण भारत दक्षिण भारत के मध्ययुगीन इतिहास के महानायक और कलचुरी समाज के शिरोमणि सरदार महाराजा पापन्ना गौड़ के 315वें पुण्य-स्मृति दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे। नई दिल्ली में रफी मार्ग स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में हुए भव्य समारोह में तेलंगना समेत देशभर के विभिन्न प्रांतों से कलचुरी समाजबंधुओं ने भागीदारी की। मुख्य अतिथि के तौर पर पधारे श्री नायक ने अपने संबोधन में कलचुरी समाज के गौड़ वर्ग के महान योद्धा सरदार महाराजा पापन्ना गौड़ के जीवन और उनके संघर्षों पर प्रकाश डाला, साथ ही विभिन्न वर्गों व उपवर्गों में विभाजित कलचुरी समाज की एकजुटता पर जोर दिया।


इससे पूर्व श्री यसो नायक व अन्य अतितियों ने पापन्ना गौड़ के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन वं पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम में दक्षिण भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार सुमन तलवार आकर्षण का केंद्र रहे जो स्वयं भी कलचुरी समाज के गौड़ वर्ग से आते हैं। कार्यक्रम में तेलंगाना सरकार के कैबिनेट मंत्री पुन्नम प्रभाकर गौड़ और श्रीनिवासन गौड़ सहित कई विधायक भी विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन रहे।


अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के राष्ट्रीय महासचिव एवं जायसवाल समाज दिल्ली-एनसीआर के अध्यक्ष श्री एसके जायसवाल एडवोकेट ने दिल्ली की सरजमीं पर देशभर से आए स्वजातीय महानुभावों का स्वागत करते हुए कहा कि संगठन में ही शक्ति निहित होती है, और हमारे महान-प्रतापी योद्धा सरदार महाराजा पापन्ना गौड़ की यशगाथा भी इसी की मिसाल है। उन्होंने कहा कि कलचुरी समाज देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग उपजातियों से जाना जाता है लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम सब एकजुट हो जाएं। समारोह का संचालन गौड़ कलचुरी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. रामाराव गौड़ और राष्ट्रीय संयोजक श्री राजा नाडर ने किया।


मुगलों को हराकर सामाजिक क्रांति का किया था सूत्रपात
आपको बता दें कि कलचुरी समाज के गौड़ वर्ग के एक साधारण परिवार में जन्मे सरदार महाराजा पापन्ना गौड़ (1650-1710) ने दक्षिण भारत में वारंगल से लेकर गोलकुंडा तक (वर्तमान तेलंगना) के विशाल भूभाग को न केवल मुगलों से मुक्त कराया था, बल्कि शासन व जमींदारी व्यस्था में बहुजनों को बराबरी का हक देकर एक सामाजिक क्रांति का सूत्रपात भी किया था। हालांकि इसके चलते उन्हें उच्च जाति के हिंदू जमींदारों व फौजदारों के विश्वासघात का शिकार भी होना पड़ा था। मुगल सेना और विद्रोहियों के साथ लंबे संघर्ष के बाद अप्रैल 1710 में, पपन्ना का सिर काटकर दिल्ली में बहादुर शाह प्रथम के पास भेज दिया गया। इस तरह लगभग 30 वर्षों के सामाजिक संघर्ष के बाद स्थापित बहुजन साम्राज्य ढह गया। पापन्ना ने 30 वर्षों के कार्यकाल में नलगोंडा के बुवनगिरी, वारंगल के थाटीकोंडा, कोलानुपाका, चेरियाला, करीमनगर, हुजुराबाद और हुस्नाबाद क्षेत्रों में निर्भीकता से शासन किया और समाज में सामाजिक-आर्थिक समानता लाने की पहल की।


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