॥ ॐ नमोऽस्तुते कार्तवीर्याय ॥
हैहय क्षत्रिय वंश के कुलदीपक और हमारे आराध्य भगवान श्री सहस्रार्जुन के कई चित्र और प्रतिमा आज बहुत सी जगह पर है लेकिन उनमें सही चित्र और प्रतिमा कौनसी है यह प्रश्न हमेशा बना रहता है।
आजकल कम्प्यूटर और मोबाइल फोन में अनगिनत ऐसे एप उपलब्ध है जिससे कई लोग श्रद्धा, भक्ति में या चित्र को भव्य-दिव्य या सुंदर बनाने के लिए जाने-अनजाने ऐसे चित्र या प्रतिमा बना रहे या बनवा लेते है जो शास्त्रीय आधार पर सही नहीं होते। इस बार सहस्रार्जुन सप्तमी पर देश भर में आयोजित जन्मोत्सव कार्यक्रम के चल समारोह, शोभायात्रा, बैनर, निमंत्रण पत्र और शुभकामना के पोस्टर पर इस तरह के अलग-अलग चित्र दिखाई दिए जो अन्य देवता के चित्र में भगवान श्री सहस्रार्जुन को जोड़कर बनाए गए है। कमाल तो इस बात का है कि ऐसी हरकतों में वे भी सम्मिलित है जो खुद अपने को इसके विशेषज्ञ और ठेकेदार समझते है। भगवान श्री सहस्रार्जुन का नाम तो 10 % (प्रतिशत) जगह पर ही सही और शुद्ध लिखा गया था।
माना जाता है कि भगवान श्री अर्जुन कार्तवीर्य/कार्तवीर्यार्जुन/सहस्रार्जुन/ सहस्रबाहु की वह प्रतिमा या चित्र ही सही है जिसमे कम-से-कम उनके सोलह या इससे ज्यादा हाथ (भुजा) हों। इससे कम भुजा के कई देवी-देवताओं के चित्र और प्रतिमाएं होती है लेकिन भगवान श्री सहस्रार्जुन सहस्र (हजार) भुजाधारी है इसलिए यह आवश्यक है। भगवान श्री सहस्रार्जुन के दाहिने हाथ में तीर और दाहिने कंधे पर तूणीर (वह पात्र जिसमें तीर या बाण रखे जाते है), तरकश, भाथा विराजित या सुशोभित हो और बाएं हाथ में कमान होना चाहिए लेकिन इससे कम भुजा और बाएं कंधे पर तूणीर और दाहिने हाथ में कमान वाली प्रतिमा और चित्र भी दिखाई पड़ते है। किसी चित्र या प्रतिमा में कमान है तो तूणीर नहीं तो किसी में तूणीर तो है लेकिन कमान नहीं है तो किसी में तूणीर भी है और कमान भी है, लेकिन तीर ही नहीं है।
सनातन हिंदू धर्मानुसार हमारे सभी देवी-देवता के अस्त्र-शस्त्र, वाहन, शारीरिक रचना, केश विन्यास, श्रृंगार, अलंकार, परिधान, चेहरे के हाव-भाव, मुखमुद्रा अलग होते है। चित्र और मूर्ति शास्त्र में उसका महत्व अनन्य है और इसीसे उनकी पहचान की जाती है। जगह-जगह खुदाई में प्राप्त हजारों साल पहले की मूर्तियों की पहचान पुरातत्व विभाग इसी आधार पर करता है। नई प्रतिमा और चित्र की रचना करते समय इस बात का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए और किसी योग्य ज्ञानी से या मूर्तिकला/मूर्तिशास्त्र के ज्ञाता से इसकी जानकारी लेनी चाहिए।
श्री अर्जुन जो कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण कार्तवीर्य कहलाते थे, को सहस्र भुजा का वरदान अपने गुरु भगवान श्री दत्तात्रेय से प्राप्त हुआ था। जिसके कारण ही श्री दत्तात्रेय के प्रिय शिष्य अर्जुन कार्तवीर्य से सहस्रार्जुन और सहस्रबाहु कहलाए। उनका संपूर्ण व्यक्तित्व ही गुरु श्री दत्तात्रेय की देन है इसलिए श्री सहस्रार्जुन के चित्र में या प्रतिमा के साथ आशीर्वाद की मुद्रा में भगवान श्री दत्तात्रेय का चित्र या प्रतिमा होनी ही चाहिए। भगवान श्री सहस्रार्जुन के चित्र या मूर्ति में मुख्य प्रतिमा और उनके संपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाती आभासी विशाल प्रतिमा के, दोनों ही चेहरे स्पष्ट दिखाई देने चाहिए जैसे ऊपर विंडो में दिए चित्रों में दर्शाया गया है।
यह भी होता है कि कई लोग खुद को प्रचारित करने के लिए भगवान के चित्र के साथ अपना चित्र जोड़कर अपना नाम भी लिखते है। कभी-कभी तो अपना चित्र भगवान के चित्र से उपर लगा देते है और भगवान के चित्र पर अपना नाम लिखते है। यह बहुत ही गलत है। इससे भगवान के चित्र दूषित हो जाते है। भगवान के चित्र पर कुछ भी नहीं लिखना चाहिए और अगर अपनी फोटो लगाने की प्रबल इच्छा को रोक न सको तो अपने फोटो को भगवान के चरणों से निचले भाग की ओर रखना चाहिए। ध्यान रहे आपका चित्र भगवान के चित्र के समकक्ष ना रहे। भगवान का स्थान हमेशा ऊंचा रहना चाहिए।
इसके साथ-साथ हमें अपने आराध्य का नाम भी सही लिखना चाहिए जैसा इस संदेश में लिखा गया है। हमारे सनातन हिंदू धर्म में किसी भी देवी-देवता के पूर्णाकृति चित्र की ही पूजा-अर्चना की जाती है। केवल चेहरे वाले आधे-अधूरे चित्र पूजन के योग्य नहीं होते।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की ‘सहस्रार्जुन सप्तमी’ को हैहयवंश के कुलदीपक और हमारे आराध्य भगवान श्री सहस्रार्जुन के अवतरण दिवस, जयंती पर सभी कलाल, कलार, कलवार, कलचुरियों ने अपने घर, मंदिर, प्रतिष्ठान कार्यालय में भगवान श्री सहस्रार्जुन का चित्र लगाया और परिवार के साथ भगवान सहस्रार्जुन का पूजन कर जन्मोत्सव मनाया ही होंगा। अगर आप भी शास्त्रीय आधार पर भगवान श्री सहस्रार्जुन का चित्र चाहते हैं तो मेरी जानकारी और दृष्टि से यह तीनों ही चित्र शास्त्रीय आधार पर प्रमाणित है। आप किसी भी फोटो लैब में इनकी चित्रों की बड़े आकार की फोटो बना सकते है।
हमें प्रयत्न पूर्वक अपने हैहय क्षत्रिय वंश के कुलदीपक और हमारे आराध्य की प्रतिमा और चित्र को शास्त्रीय आधार पर बनाना और उनका नाम सही और शुद्ध लिखना और बोलना चाहिए। सामाजिक कार्यक्रम के आयोजन में मंचों से, अपने घर-परिवार के सदस्यों और स्वजातियों को भी यह सारी जानकारी देनी ही चाहिए।
शिवहरेवाणी के लिए यह लेख पूर्व में धार्मिक ग्रंथों के वाचन और सुने हुए प्रवचनों की जानकारी के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य के लिए लिखा गया है। किसी भी धार्मिक कार्य को शास्त्रोक्त विधि-विधान से ही संपन्न कराना चाहिए। इसमें मनमानी नहीं करनी चाहिए।
ॐ स्वस्ति अस्तु।
पवन नयन जायसवाल
राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
संयोजक- भगवान श्री सहस्रार्जुन जन्मोत्सव जागरूकता अभियान
9421788630
pawannayanjaiswal@gmail.com
‘पूर्णिमा’, किशोर नगर
अमरावती- 444606 विदर्भ, महाराष्ट्र
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