माननीय संपादक,
शिवहरेवाणी
श्री सोम साहू जी
जय सहस्रार्जुन।
‘संवाद के शिष्टाचार’ विषय पर आपने अपनी कलम चलाकर समाज को जो संदेश दिया है उसके लिए आपका हार्दिक अभिनंदन। इस विषय को लेकर आज के सोशल मीडिया से जुड़े लोगो को समझने और चिंतन-मनन करने की बहुत आवश्यकता है।
मैं खुद लेखक, कवि, स्वतंत्र पत्रकार, साहित्यकार हूँ और चाहता हूँ कि कला, साहित्य, शिक्षा क्षेत्र में अपना योगदान देने वाले स्वजातीय जुड़कर रहे, यही सोचकर 01 जनवरी 22 को मैंने ‘साहित्य-कला मंच’ नाम से एक वाट्सएप समूह बनाया। आप (शिवहरेवाणी के माननीय संपादक श्री सोम साहू) भी इस ग्रुप से जुड़े हुए है।
कुछ दिन बाद एक महोदय का मुझे फोन आया कि मुझे आपके ग्रुप से जोड़ा जाए और ग्रुप एडमिन बनाया जाए। मैंने उनसे पूछा- “क्या आप इस क्षेत्र से संबंधित है?” तो वह अपना लंबा-चौड़ा परिचय देते हुए बोले- “नहीं लेकिन हम इस ग्रुप में कई व्यक्तियों को जोड़ सकते है।” केवल कला, साहित्य, शिक्षा और पत्रकारिता क्षेत्र से संबंधित ग्रुप होने के बाद भी मैंने उनको जोड़कर एडमिन भी बना दिया। ग्रुप से तो उन्होंने किसी को नहीं जोड़ा लेकिन कुछ महीने बाद उनकी एक संस्था जिसके वह पदाधिकारी है, का बड़ी-बड़ी योजना बताकर समाज से चंदा माँगने वाली पोस्ट ग्रुप में पोस्ट की तो मैंने (आजकल नई-नई संस्था बनाकर और उसके स्वयंभू अध्यक्ष और महासचिव बनकर समाज से योजनाओं के नाम पर कुछ लोगो द्वारा धन ऐंठने की घटनाओ से सबक लेकर क्योंकि एक बदनाम व्यक्ति जिसपर आरोप है कि उसने अपनी पहली संस्था में रुपयों का गबन किया, फिर चुनाव हार गया तो दूसरी संस्था मिलते-जुलते नाम से बनाई ली, फिर समाजजनों द्वारा आपत्ति उठाने पर तीसरी संस्था बना ली, ने मुझसे भी एक गरीब कन्या के विवाह के लिए दस हजार रुपये मांगे थे।) ग्रुप में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि “हमारे समूह के नियमानुसार ग्रुप में समाज के आयोजन और उपलब्धियों के समाचार तो डाले जा सकते हैं लेकिन चंदा और धन संग्रहण का यह मंच नहीं है।” तो वह सज्जन खुद ही ग्रुप से बाहर हो गए और मजेदार बात यह है कि उन्होंने जिन समूहों से मुझे जोड़ा था, उन सभी से मुझे तत्काल बाहर कर दिया। क्या यह शिष्टाचार का मानदंड हो सकता है? किसी कम उम्र के समूह साथी को ऐसी हरकत पर क्षमा भी किया जा सकता लेकिन एक व्यक्ति जो खुद को समाजसेवी कहता है और अपना लंबा-चौड़ा परिचय अपने साथ रखता है, उस वरिष्ठ व्यक्ति का एक वरिष्ठ व्यक्ति से किया गया यह आचरण क्या ठीक है? एक कहावत है जिनके घर कांच के होते है, वह दूसरे के घर पर पत्थर नहीं फेंकते। शिष्ट आचार की परिभाषा को पहले हमें सीखना चाहिए, फिर किसी दूसरे को शिष्टाचार का ज्ञान दिया जाना चाहिए। मुझे नहीं पता कि पटना के महाशय ने क्या कहा। लेकिन, संवाद और संपर्क में गरिमा बनी रहना चाहिए। आखिर हम सभी स्वजातीय है। आरोप-प्रत्यारोप में भाषा और व्यवहार का स्तर बनाए रखना चाहिए लेकिन यह मात्र एक व्यक्ति के लिए नहीं दोनों पक्ष की ओर से होना चाहिए। उसमें उम्र और आर्थिक, सामाजिक स्थिति का दंभ नहीं होना चाहिए।
सारी कहानी पढ़ने के बाद आप सोच रहे होंगे कि मैंने उस व्यक्ति का नाम तो आपको बताया ही नहीं जिनको पहले खुद शिष्टाचार सीखने और समझने की बहुत आवश्यकता है। उनका नाम है राजस्थान के श्री चंपालाल सिसोदिया, सी.एल. सिसोदिया।
हाँ एक बात और, मैं खुद भी कई सामाजिक, शैक्षणिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्था का पदाधिकारी हूं लेकिन इन सबका यहां उल्लेख करना मैं आवश्यक नहीं समझता।
– पवन नयन जायसवाल,
अमरावती (महाराष्ट्र)
संपर्क-9421788630
राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
Leave feedback about this