आगरा।
भारत को त्योहारों का देश भी कहा जाता है। यहां धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषीय और तमाम अन्य विविधताओं के बीच अनगिनत त्योहार मनाए जाते हैं। लेकिन, दीपावली की बात ही निराली है। कहा जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या को ही भगवान राम लंका दहन करके 14 साल के वनवास से लौटे थे, तब अयोध्या वासियों ने इस खुशी में दीप जलाकर प्रकाश किया था। तब सवाल यह कि अगर ऐसा ही है तो दीपावली पर भगवान राम की पूजा क्यों नहीं की जाती है, लक्ष्मीजी को क्यों पूजा जाता है।
दरअसल दीपावली ऐसा त्योहार है जिसे मनाए जाने का कोई एक कारण नहीं है, और मनाने का कोई एक तरीका भी नहीं है। भारत में जन्मे हर धर्म में दीपावली का महत्व है। कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही समुद्र मंथन से अवतरित हुई थीं। अतः इस दिन यानी कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली मनाते हैं और लक्ष्मीजी की पूजा करते हैं। चलो यह तो रही लक्ष्मी पूजन की बात, अब सवाल उठता है कि गणेशजी की पूजा क्यों होती है। गणेशजी बुद्धि के देवता माने जाते हैं और लक्ष्मीजी धन की देवी। यदि बुद्धि और विवेक न हो तो धन व्यक्ति को मदांध कर सकता है। इसलिए गणेशजी और सरस्वती की पूजा साथ की जाती है। वैसे भी भगवान गणेश प्रथम पूज्य देवता हैं तो किसी भी पूजा से पहले उनकी पूजा अनिवार्य होती है।
एक अन्य मान्यता है कि राक्षसों का वध करने के लिए मां देवी ने महाकाली का रूप धारण किया था लेकिन राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ, तो भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। पूर्वी भारत में इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा की जाती है।
दीपावली की एक कथा भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास की अमावस्या को ही राक्षसों के राजा नरकासुर का वध करके सोलह हजार स्त्रियों को मुक्त कराया था। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की 16008 रानियां थीं, इनमें 16000 पटरानियां नरकासुर के चंगुल से मुक्त कराई गईं स्त्रियां थीं।
एक अन्य मान्यता यह है कि महाभारत काल में पांडव पुत्र इसी दिन 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास काटकर लौटे थे। आपको पता होगा कि कौरवों और पांडवों के बीच द्युत यानी जुआ खेला गया था जिसमें पांडव अपना सबकुछ हार गए थे। और, उन्हे 12 वर्ष के वनवास पर जाना पड़ा था।
दीपावली के पीछे कई अन्य पौराणिक कथाएं हैं और अन्य धर्मों में भी इसका महत्व है। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व इसी दिन गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों-लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्यागा था। महावीर-निर्वाण संवत् इसके दूसरे दिन से शुरू होता है। इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरंभ की शुरुआत मानते हैं।
1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिंदजी को ग्वालियर के किले से 52 राजाओं के साथ मुक्त किया गया था जिन्हें मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबंद करके रखा था। इसे सिक्ख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। इसके अलावा स्वर्ण मंदिर के निर्माण का शुभारंभ भी दीपावली के दिन हुआ था।
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