मुरैना/झांसी।
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में बुरी खबरों का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन उम्मीद का पहलू यह भी है कि ऑक्सीजन, वेंटीलेटर और जीवनरक्षक दवाओं की तमाम किल्लत बावजूद मृतकों से अधिक संख्या उन लोगों की है जो कोरोना संक्रमण से निजात पा रहे हैं, स्वस्थ हो रहे हैं। और, ऐसे लोग कोरोना से गंभीर संक्रमितोंं का जीवन बचाने में अहम योगदान कर सकते हैं। कैसे? इसकी एक शानदार मिसाल पेश की है मुरैना जिले के बानमोर कस्बे के रविकांत शिवहरे ने। आईआईटी गुवाहाटी से पासआउट इंजीनियर रविकांत शिवहरे ने सौ किलोमीटर से भी अधिक दूर झांसी जाकर अपना प्लाज्मा डोनेट किया जिससे कम से कम दो गंभीर मरीजों को बताया जा सकेगा।
बानमोर के किसान उत्तमचंद शिवहरे के युवा पुत्र रविकांत शिवहरे ने झांसी जाकर वहां के मेडिकल कालेज मे अपना प्लाज्मा डोनेट किया। उन्होंने बताया कि पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य के एक सार्वजनिक आग्रह ने उन्हें प्लाज्मा डोनेट करने के लिए प्रेरित किया और वे झांसी पहुंच गए। झांसी मेडिकल कालेज में कराई गई जांच में उनके प्लाज्मा में मानक से सात गुना ज्यादा एंटीबॉडीज पाई गईं। चिकित्सकों का कहना है कि अब यह प्लाज्मा दो मरीजों को चढ़ाया जाएगा। रविकांत के मुताबिक,’ पहले उनके परिजनों की धारणा थी कि प्लाज्मा दान करने से कमजोरी आती है। फिर मैंने उन्हें समझाया कि मैं पढ़ा-लिखा हूं और अच्छी तरह जानता हूं कि इससे कोई नुकसान होने वाला नहीं है, तब कहीं जाकर परिजन राजी हो सके।‘ रविकांत शिवहरे कहते हैं कि अब वह कोरोना से ठीक हो चुके अन्य लोगों को भी प्लाज्मा दान करने के लिए प्रेरित करेगा, इस बारे में उनकी भ्रांतियों को दूर करेगा। यदि कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके लोग एक निर्धारित समय और अन्य मानकों के अंतर्गत नए संक्रमितों को अपना प्लाज्मा देने को राजी हो जाएं तो कई गंभीर मरीजों को बचाया जा सकता है। अफसोस इस बात का है कि अब भी लोग गलत धारणाओं और विश्वासों के चलते प्लाज्मा डोनेट करने में कतरा रहे हैं, जबकि प्लाज्मा डोनेशन रक्तदान जितनी ही साधारण और सुरक्षित प्रक्रिया है।
क्या है प्लाज्मा थैरेपी
सिद्धांत यह है कि जब कोई वायरस या सूक्ष्मजीव शरीर में घुसता है, तब इम्यून सिस्टम सक्रिय हो जाता है और उसके खिलाफ एंटी बॉडीज का निर्माण करता है। ये एंटी बॉडीज सूक्ष्म जीव और संक्रमण से लड़ते हैं और ब्लड में महीनों या वर्षों भी रह सकते हैं। डॉक्टर कोरोना से रिकवर मरीजों के डोनेट किए ब्लड से एंटीबॉडी से भरपूर सीरम को अलग करते हैं और बुरी तरह प्रभावित मरीज के शरीर में उसे चढ़ाते हैं।
कौन कर सकता है डोनेट
जो लोग कोरोना पॉजिटिव रह चुके हैं और डोनेशन और कोविड-19 की दो बार जांच रिपोर्ट निगेटिव आने से तीन सप्ताह पहले ठीक हो चुके हैं।
जिन लोगों की आयु 18 साल की हो चुकी है, मगर 60 साल से ज्यादा न हो। वजह 50 किलोग्राम या ज्यादा हो, और फिट हों।
Leave feedback about this