अब वो दौर नहीं जब करवा चौथ केवल महिलाओं का त्योहार हुआ करता था। भारतीय समाज की प्रगतिशीलता ने इस त्योहार के स्वरूप में बहुत बदलाव किया है। ऐसे पतियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो पत्नी के साथ निर्जला व्रत रखते हैं और चंद्रमा की पूजा-अर्चना करने के बाद एक-दूसरे को पानी पिलाकर उपवास तोड़ते हैं।
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दरअसल कुछ समय से करवा चौथ का त्योहार समाज में लैंगिक असमानता के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले बुद्धिजीवियों के निशाने पर आ गया है। वे इसे महिलाओं के साथ भेदभाव और अत्याचार से जोड़कर देखते हैं। वैसे उनका सवाल वाजिब भी है कि पत्नी ही पति की दीर्घायु के लिए व्रत क्यों रखे भला। करवा चौथ पर व्रत रखकर सवाल करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं आज के युवा पति। ऐसे पतियों की सराहना की जानी चाहिए।
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इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि जो पति व्रत नहीं रखते वे अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करते। हमारे यहां तो प्रेम पति-पत्नी के बीच एक स्थायी भाव है। विवाह नाम की संस्था में हम भारतीयों का भरोसा अन्यों के मुकाबले कहीं अधिक है। हमारे यहां विवाह एक अनुष्ठान है, सात जन्मों का बंधन है। ज्यादातर संस्कृतियों में विवाह एक अनुबंध है, जिसमें तलाक की शर्तें भी तय होती हैं।
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हमारे यहां विवाह एक स्थायी संबंध है और पति-पत्नी इसे आजीवन निबाहते हैं। करवा चौथ का त्योहार वैवाहिक जीवन में समरसता कायम रखने का महत्वपूर्ण काम सदियों से कर रहा है। यह एक ऐसा दिन है जिसमें वैवाहिक जीवन की ‘बासी कढ़ी’ भी उफान मारने लगती है। पत्नियों का श्रृंगार और पतियों का प्यार वैवाहिक जीवन में उमंग भर देता है।
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वैसे तो करवा चौथ का त्योहार प्राचीन काल से चला आ रहा माना जाता है। एक मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत माता पार्वती ने भोलेनाथ के लिए रखा था, जिससे उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी। तब से सुहागनें यह व्रत रखती हैं। एक पौराणिक उल्लेख है कि एक बार दानवों और देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया जिसमें दानव भारी पड़ रहे थे। तब ब्रह्माजी के कहने पर सभी देवताओं की पत्नियों ने करवा चौथ का व्रत रखकर सफलता की कामना की थी।
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महाभारत काल में भी करवा चौथ के व्रत का उल्लेख है। एक बार द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से पांडवों को संकट से उबारने का उपाय पूछा तो भगवान ने उन्हें कार्तिक मास की चतुर्थी को व्रत रखने को कहा। द्रोपदी ने यह व्रत रखा जिससे पांडवों को संकट से मुक्ति मिल गई।
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भारतीय इतिहास के मध्यकाल में करवा चौथ का त्योहार बड़ी आस्था के साथ मनाया जाता था। उस दौर में महिलाएं घर की चारदीवारी में रहती थीं। पूरी तरह पति पर निर्भर थीं। विधवाओं की स्थिति समाज में बहुत दयनीय थी। बीमारियों का प्रकोप था जिससे सुहागन महिलाएं अनहोनी की आशंका से भयभीत रहती थीं। ऐसे में वे करवा चौथ का त्योहार पूरी आस्था, श्रद्धा और परंपरा से मनाती थीं, ताकि प्रभु प्रसन्न रहें और पति सलामत।
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ऐसे भय और आशंका का दौर अब नहीं है, बल्कि आज की महिला के लिए करवा चौथ का त्योहार पति के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति का एक अवसर होता है। यही भाव पति का भी पत्नी के प्रति रहता है। पति भले ही व्रत नहीं रखता हो लेकिन पत्नी को खुश करने और उसका आभार व्यक्त करने में पीछे नहीं रहना चाहता।
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इसका असली लाभ उठा रहा है बाजार। महिलाएं जहां करवा चौथ के लिए नई साड़ियां खरीद रही हैं और महंगे ब्यूटी पार्लर्स पर जाकर सजना के लिए सजने में लगी हैं, वहीं पुरुष अपनी पत्नी को गिफ्ट करने के लिए ज्वैलरी की दुकानें खंगालते नजर आ रहे हैं। लॉकडाउन से कमजोर बाजार में करवा चौथ के त्योहार ने उमंग भर दी हैं।
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लेकिन, सच तो यह है कि पति-पत्नी का प्रेम किसी श्रृंगार, गिफ्ट या किसी एक दिन का मोहताज नहीं होता। वैवाहिक जीवन में प्रेम एक निरंतर अभिव्यक्त होने वाला भाव है जो टिफिन में रखी सब्जी के स्वाद में नजर आता है, घर लौटते ही पानी के गिलास में नजर आता है, कपड़ों की प्रेस में दिखता है, उनकी हर बात और हर संवाद में नजर आता है। आपका वैवाहिक जीवन प्रेम के इसी खुशनुमा अहसास में महकता रहे…करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं।
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