November 1, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
शख्सियत समाचार

स्मृति-शेषः अपनी कलाकृतियों में जीवित रहेंगे प्रभात राय; ग्वालियर के विख्यात मूर्तिकार को श्रद्धांजलि

ग्वालियर।
प्रख्यात मूर्तिकार प्रभात राय नहीं रहे। इस दुखद समाचार से कला-जगत में शोक की लहर दौड़ गई। फ्रांस में स्थापित महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा से लेकर अयोध्या में भगवान राम की ‘कोदंड’ प्रतिमा तक, पांच हजार से अधिक ‘बोलती कलाकृतियां’ बनाने वाला यह कलाकार दुनिया से इतनी जल्दी विदा ले लेगा, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
गत अक्टूबर माह में कोटा (राजस्थान) के अभेड़ा महल तिराहा पर स्थापित भगवान सहस्रबाहु अर्जुन की 10 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा संभवतः प्रभातजी की अंतिम बड़ी कलाकृति थी। यह प्रतिमा उन्होंने बीमारी की हालत में तैयार की थी। कोरोना काल के बाद से वह लीवर की गंभीर समस्या से पीड़ित थे। दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में लंबे समय से उनका उपचार चल रहा था। कुछ दिन पहले तबीयत अधिक खराब होने पर परिजन उन्हें दिल्ली ले गए, जहां चिकित्सकों ने जवाब दे दिया। परिजन उनकी अंतिम इच्छा पर उन्हें मोतीझील स्थित उनके स्टूडियो ‘प्रभात मूर्ति कला केंद्र’ ले गए जहां बीते शनिवार-रविवार की दरमियानी रात 2 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार स्टूडियों में ही किया गया। वह अपने पीछे पत्नी सुनीता, विवाहित पुत्र अनुज राय और एक विवाहित पुत्री को बिलखता छोड़ गए हैं।
ग्वालियर में मोतीझील स्थित एक पहाड़ी पर प्रभातजी ने वर्ष 2000 में अपना स्टूडियो स्थापित किया था। 12 बीघा क्षेत्र में फैले इस स्टूडियों में कदम कदम पर प्रभातजी की कल्पनाशीलता, सृजन और कौशल दिखाई देता है। खास बात यह है कि प्रभातजी की कलाकृतियों के चलते अब इस पहाड़ी को लोग ‘मूर्ति पहाड़ी’ के नाम से जानते हैं।
प्रभात राय के पिता पेशे से शिक्षक होने के साथ ही स्वयं भी सिद्धहस्त मूर्तिकार भी थे। प्रभातजी के बड़े भाई प्रशांत राय के साथ मिलकर पिता से मिली मूर्तिकला को आगे बढ़ाया। 1988 के पोस्ट ग्रेजुएट प्रभात राय ने अपने करियर की शुरुआत एक कमरे में बहुत छोटे स्तर से की थी। उनका पहला काम सनातन मंदिर में हुआ जहां उन्होंने 20 रुपये की मजदूरी पर काम किया। उन्होंने पहली बड़ी प्रतिमा महाराणा प्रताप की बनाई जो ग्वालियर में गोले के मंदिर में स्थापित हुई, जिसका उदघाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने किया था। इस शानदार काम क लिए प्रधानमंत्री ने उन्हें विशेष सम्मान से भी नवाजा था। तब से अब तक के 28 साल के सफर में प्रभातजी का सालाना कारोबार 3 करोड़ रुपये से अधिक का हो चुका है और 20 कलाकारों की टीम उनके स्टूडियो में काम करती है। उनकी प्रतिमाएं देश के कई शहरों की शान बढ़ा रही हैं, तो फ्रांस तक में भी भारत की शान में इजाफा कर रही हैं।
में उनकी बनाई मूर्तियां में केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से सौ से अधिक बार सम्मानित किया जा चुका है। अपने 28 साल के करियर में उन्होंने 5000 से अधिक प्रतिमाएं तैयार की। उनकी कुछ बहुत प्रसिद्ध कलाकृतियों के नाम हमने नीचे दिए हैः-
फ्रांस में स्थापित महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा
गुजरात में 11 मुखी शिवलिंग
रतनगढ़ में सिंगल पीस कास्टिंग का घंटा
पंजाब में वाल्मीकि, बाबा बंदा बहादुर की प्रतिमा
रायपुर में बिरसामुंडा की प्रतिमा
कर्नाटक में बैल औऱ किसान की मूर्ति
दिल्ली में रानी अवंती बाई की प्रतिमा
राजस्थान में तुलसीदास व कबीरदास की प्रतिमाएं
कोटा में डाल्फिन की प्रतिमा और हाल ही में स्थापित भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन की अष्टधातु की प्रतिमा
जम्मू में धनवंतरि की प्रतिमा
इंदौर में हनुमानजी की प्रसिद्ध प्रतिमा
कन्याकुमारी में निवेदिता का प्रतिमा
मेघालय में इंदिरा गांधी की प्रतिमा
बिहार में बाबा कुंअर सिंह की प्रतिमा
महाराष्ट्र में माधवराव सिंधिया की प्रतिमा
भोपाल में राजा भोज और रानी कमलापति की प्रतिमाएं
अयोध्या में महर्षि वाल्मीक एयरपोर्ट पर महर्षि वाल्मीक की प्रतिमा

राम जन्मभूमि के लिए भगवान राम की कोदंड प्रतिमा
प्रभात राय ने भगवान राम की कोदंड प्रतिमा तैयार की थी जिसे वह अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर में स्थापित कराना चाहते थे। मेटल कोटेड फाइबर से तैयार 6 फीट की यह प्रतिमा फिलहाल अयोध्या में रामसेवकपुरम में रखी हुई है। वह इस प्रतिमा को अपने दिल के सबसे करीब मानते थे। उनका कहना था कि इस प्रतिमा में रामलला के चेहरे पर उन्होंने बहुत काम किया था। दरअसल प्रभातजी ने कल्पना की थी कि जब भगवान राम लंका-विजय कर अयोध्या लौटे थे तब उनके चेहरे पर क्या भाव रहे होंगे। और वह इस अपनी कल्पना को प्रतिमा में उकेरने में पूरी तरह सफल रहे।
कलचुरी समाज के लिए बड़ी क्षतिः राहुल पारेता
कलाल समाज कोटा के अध्यक्ष श्री राहुल पारेता ने शिवहरेवाणी से बातचीत में कहा कि प्रभातजी से पहली मुलाकात ग्वालियर में उनके स्टूडियो में हुई थी। उनकी विम्रता दिल जीत लेने वाली थी। छह महीने की कड़ी मेहनत से उन्होंने कोटा के समाज के लिए भगवान सहस्त्रबाहु की अष्टधातु (गनमेटल) की दो टन भारी और दस फीट ऊंची अदभुत प्रतिमा तैयार की। वह सच्चे कलाकार थे और उनका जाना कलाजगत के साथ ही कलचुरी समाज के लिए भी बड़ी क्षति है।
आम जनमानस को भी प्रभावित करता था प्रभातजी का कामः अनूप शिवहरे
ग्वालियर के प्रसिद्ध चित्रकार अनूप शिवहरे का कहना है कि प्रभातजी से उनकी पहली मुलाकात नव्वे के दशक में एक प्रदर्शनी के दौरान हुई जहां उन्होंने राष्ट्रपति महात्मा गांधी की प्रतिमा प्रदर्शित की थी। उनके पहले ही काम से वह बहुत प्रभावित हुए। उसके बाद प्रभातजी ने बहुत प्रगति की। उनका खास बात यह थी कि कलापारखी तो उनके काम के कायल थे ही, आम जनमानस को उनकी कलाकृतियों खासा प्रभावित करती थीं। उन्होंने ग्वालियर को एक बहुत स्तरीय और अनोखा स्टूडियो दिया। कलाजगत में ग्वालियर का नाम रोशन किया।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video