आगरा।
सबकुछ ठीक रहा तो आगामी 15 अगस्त को आगरा में शिवहरे समाज की धरोहर दाऊजी मंदिर के अध्यक्ष पद का चुनाव होना तय है। और, यदि श्री अमित शिवहरे के प्रस्ताव पर सहमति बनी तो इसी दिन आगरा का शिवहरे समाज, संगठन की एक नई परंपरा शुरू करने की दिशा में एक कदम भी बढ़ सकता है।
दरअसल बीते रविवार को दाऊजी मंदिर समिति की बैठक में समिति के मीडिया प्रभारी एवं शिवहरे समाज एकता परिषद के संयोजक और शिवहरेवाणी के फोटो संपादक श्री अमित शिवहरे (फोटो जर्नलिस्ट) ने आगरा शिवहरे समाज का एक अध्यक्ष चुने जाने का प्रस्ताव रखा था, जो आगरा में संपूर्ण शिवहरे समाज और उसके अन्य संगठनों का शीर्ष पद होगा। जैसा कि अमित शिवहरे का प्रस्ताव है, आगरा में शिवहरे समाज की दोनों धरोहरों, दाऊजी मंदिर और राधाकृष्ण मंदिर, की प्रबंध समितियां व उनके अध्यक्ष, समाज के निर्वाचित अध्यक्ष के निर्देशन और मार्गदर्शन मे अपने-अपने कार्यों और कार्यक्रमों को अंजाम देंगे। अमित शिवहरे का कहना था कि समाज के अन्य संगठन, चाहें वे युवा संगठन हों या महिला संगठन, भी समाज के निर्वाचित अध्यक्ष के निर्देशन में ही कार्य करें।
अमित शिवहरे के इस प्रस्ताव का वहां मौजूद सभी लोगों ने समर्थन किया। समिति के अध्यक्ष श्री भगवान स्वरूप शिवहरे एवं वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री विजनेश शिवहरे समेत सभी ने इस प्रस्ताव को उपयोगी और व्यवहारिक मानते हुए कहा कि 15 अगस्त को दाऊजी मंदिर समिति के अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान इस प्रस्ताव पर भी चर्चा की जानी चाहिए, और सहमति बने तो उसी समय अध्यक्ष पद के निर्वाचन की प्रक्रिया भी संपन्न कर दी जाए।
दरअसल वर्तमान में आगरा में मुख्य रूप से दो ही सामाजिक संगठन हैं जो समाज की दोनों धरोहरों, दाऊजी मंदिर और राधाकृष्ण मंदिर, की प्रबंध समितियां हैं। बेशक दोनों ही समितियां बड़ी निष्ठा के साथ अपनी-अपनी धरोहरों के प्रबंधन, पुनर्निर्माण और विकास के कार्यों को अंजाम दे रही हैं, लेकिन इस क्रम में समाज से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों और सामाजिक कार्यों की भारी अनदेखी हो रही है जिसका खामियाजा समाज को उठाना पड़ रहा है और धरोहरों को भी।
धरोहरों का विकास और समाज का विकास, दो अलग-अलग चीजें जरूर हैं लेकिन दोनों का साथ चलना जरूरी है। समाज का विकास केवल उसकी धरोहरों की भव्यता से नहीं, बल्कि समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य, महिलाओं के उत्थान, युवाओं के रोजगार और दहेजरहित विवाहों को प्रोत्साहन आदि के स्तर से निर्धारित होता है। समाज में इन मुद्दों को केवल सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, बल्कि इसमें सामाजिक सहयोग की अहम और निर्णायक भूमिका होती है। जो, वर्तमान में पूरी तरह नगण्य है।
जबकि, आगरा में शिवहरे समाज के लिए इस तरह का सामाजिक सहयोग और सहकार कोई नई बात नहीं है। स्वतंत्रता के ठीक बाद इसी दाऊजी मंदिर से तत्कालीन समाज के युवाओं ने समाज-सुधार और शिक्षा के प्रसार की दिशा में जो काम किया, वह आगरा शिवहरे समाज के इतिहास का सबसे गौरवशाली हिस्सा है। उस वक्त विद्याबल और चरित्रबल से संपन्न युवाओं ने शिवहरे मित्र मंडल नाम से एक संगठन बनाकर समाज के परिवारों को बच्चों की शिक्षा, मांस-मदिरा बंद करने, युवाओं को आबकारी कारोबार से हटकर अन्य कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित करने के साथ ही महिलाओं को शिक्षित करने और उन्हें घरों में रामचरित मानस, सुखसागर, प्रेमसागर जैसे ग्रंथों के नियमित वाचन करने जैसे कार्यों के लिए प्रेरित करने का महत्वपूर्ण काम किया था। और, दाऊजी मंदिर इन सब गतिविधियों का केंद्र था। इससे समाज की स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन सामने आया। उसी दौर में दाऊजी मंदिर में एक स्कूल भी चलाया गया जिसमें समाज के बच्चों और खासकर लड़कियों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी।
तब राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था और दाऊजी मंदिर समाज की ऐसी धरोहर के रूप में सामने आया था, जिससे पूरा समाज कई तरह से लाभान्वित हो रहा था। समाज के लोगों से शादी-ब्याह के लिए दाऊजी मंदिर प्रबंधन ना के बराबर शुल्क लेता था और निर्धन वर्ग के लिए यह पूरी तरह निःशुल्क हुआ करता था। बाद में जब राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण हुआ तो वह भी एक ऐसी सामाजिक धरोहर के रूप में विकसित हुआ जिसने शिवहरे समाज के गौरव में चार चांद लगाए। राधाकृष्ण मंदिर में समाज के युवा ऐसे नाटकों का मंचन करते थे, जिनका कथानक समाज को शैक्षणिक व सामाजिक उत्थान के साथ अंध-विश्वासों के शमन के लिए प्रेरित करते थे। जन्माष्टमी पर राधाकृष्ण मंदिर की झांकियां समाज के युवाओं की कलात्मक, वैज्ञानिक, शैक्षणिक, सामाजिक और राजनीतिक चेतना का झरोखा हुआ करती थीं। कुल मिलातक अतीत में इन दोनों मंदिरों ने समाज की धरोहरों से कहीं बढ़कर समाज के एक ऐसे मंच के रूप में काम किया, जिसने आगरा में शिवहरे समाज को अन्य विकसित समाजों के समकक्ष खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आज दोनों मंदिरों का संरचनात्मक विकास तो बहुत हो गया लेकिन समाज इससे कितना लाभान्वित हो पा रहा है? समाज में ये सवाल उठ रहे हैं। दाऊजी मंदिर में शादी ब्याह या उठावनी जैसे आयोजनों के लिए समाज के लोगों से ली जाने वाली धनराशि और गैरसमाज के लोगों से ली जाने वाली धनराशि के बीच ‘मामूली’ अंतर पर भी बतकहियां होती हैं। आज पैसे की कमी से पढ़ाई छोड़ने को बाध्य हो रहे होनहार बच्चों की सहायता के लिए समाज में क्या व्यवस्था है? बेरोजगारी के चलते भुखमरी के कगार पर आ चुके परिवारों को फिर से खड़ा करने में मदद के लिए कोई सिस्टम है? गरीब कन्याओं के विवाह के लिए सहयोग की कोई श्रृंखला है? गरीब परिवार के बीमारों के लिए उपचार में मदद का कहीं कोई सिस्टम है? और तो और, कोई ऐसी व्यवस्था भी नहीं है जहां समाज के बुजुर्गों और विधवाओं को सरकारी पेंशन दिलवाने में मदद हो सके, पात्रों को सरकारी योजनाओं के लाभ दिलाने में सहयोग हो सके।
अमित शिवहरे का प्रस्ताव इन सब सवालों का समाधान दे सकता है। समाज के सभी संगठनों के साथ ऐसे ‘उपेक्षित’ मुद्दोंपर चर्चा कर इनके समाधान पर सहमति बनाने और सहयोग सिस्टम डेवलप करने में समाज के निर्वाचित अध्यक्ष की अहम भूमिका होगी। जरूरत होने पर मंदिर के संसाधनों का एक हिस्सा इन कार्यों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि इन पर शिवहरे समाज के निर्धन वर्ग का कुछ हक बनता है। और, यदि ऐसा होता है तो एक समाज के रूप में शिवहरे समाज की बेहतर तस्वीर सामने आएगी…साथ ही, धरोहरों और समाज के बीच की दूरी भी कम होगी जो फिलहाल बढ़ती जा रही है।
समाचार
तो आगरा के शिवहरे समाज के लिए ऐतिहासिक हो सकता है यह 15 अगस्त, क्या अमित शिवहरे के प्रस्ताव पर होगी बात?
- by admin
- July 27, 2021
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