November 21, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार समाज

दक्षिण वालों से सीखें उत्तर के कलवार; शिमोगा के शिरालकोप्पा पहुंची पदयात्रा; देखते ही बन रहे एकता के नजारे

शिमोगा।
उत्तर भारत में कलवार समाज की ‘राजनीतिक शक्ति’ और ‘राजनीतिक चेतना’ जैसे शब्द हमें चुनावी मौसम में समाज के उन कथित पहरुओं और कथित अलमबरदारों के मुंह से सुनाई देते हैं, जो मौका लगते ही अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरी कर लेने की जुगाड़ मेंं हैं। चुनावी मौसम में कथित तौर पर ‘समाज के लिए’ इनकी सक्रियता देखकर ऐसा लगता है मानो इनके या इनके साथ वाले स्वजातीय बंधुओं के चुनाव लड़ने और जनप्रतिनिधि बनने भर से समाज राजनीतिक रूप से बहुत शक्ति संपन्न हो जाएगा। ‘राजनीतिक शक्ति’ और ‘राजनीतिक चेतना’ के सही मायनों को समझना है तो उत्तर वालों को इन दिनों दक्षिण भारत की ओर जरूर देखना चाहिए, जहां कर्नाटक में कलवार समाज के सभी वर्ग अपनी दस मांगों के लिए एकजुट होकर 658 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकले हुए हैं। जगह-जगह स्थानीय स्वजातीय बंधु इस यात्रा का जोरदार स्वागत कर रहे हैं, और उनके प्रसादम (भोजन) और रात्रिविश्राम के इंतजाम कर रहे हैं।

ब्रहमर्षि नारायण गुरु शक्तिपीठ के पीठाधीश श्री प्रवणानंद स्वामी के नेतृत्व में कर्नाटक के कलवार समाज (एडिगा, बिल्लवा, एजवा, गुट्टेदार, नामधारी, नाडर समेत 26 उपवर्ग) की यह पदयात्रा 16वें दिन (22 जनवरी को) शिमोगा जिले में शिकारीपुर ताल्लुका के शिरालकोप्पा नगर में पहुंच गई है। खास बात यह है कि शिरालकोप्पा नगर में कलवार समुदाय के केवल छह ही घर हैं, इसके बावजूद यात्रा के स्वागत की शानदार व्यवस्था इन लोगों ने की। शिरालकोप्पा के गणपति मंदिर में श्री प्रवणानंद स्वामी और अन्य पदयात्रियों ने समाजबंधुओं के साथ एक ‘जागरूकता बैठक’ भी की। जिसमें पदयात्रा के उद्देश्यों को लेकर चर्चा की गई। 

आपको बता दें कि शिरालकोप्पा से पदयात्रा का अंतिम मुकाम बंगलुरू 350 किलोमीटर दूर रह गया है। उम्मीद है कि आगामी 15-16 फरवरी को यह यात्रा बंगलुरु के फ्रीडम पार्क पहुंच जाएगी जहां श्री प्रवणानंद स्वामी और पदयात्रा में शामिल अन्य लोग बेमियादी भूख हड़ताल शुरू करेंगे। श्री प्रवणानंदजी स्वामी के नेतृत्व में कर्नाटक के कलवार समाज की पदयात्रा बीती 6  जनवरी को मंगलुरु के कुदरौली मंदिर से शुरू हुई थी। इस यात्रा में कुछ स्थायी पदयात्री हैं जो आरंभ से यात्रा में चल रहे हैं और अंतिम मुकाम तक चलेंगे। वहीं हर जगह खासी संख्या स्थानीय महिला-पुरुष अपने क्षेत्र में इस यात्रा के साथ चलते हैं। यात्रा प्रतिदिन लगभग 20 किलोमीटर (कुछ कम या कुछ ज्यादा) की दूरी तय कर रही है। यात्रा में समुदाय से जुड़ी आकर्षक झांकियां भी हैं।  
कलवार समाज की एकजुटता के ऐसे अदभुत नजारे उत्तर भारत में देखने को नहीं मिलते। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उत्तर भारत में किसी भी राज्य में कलवार समाज ने सत्ता के सामने अपनी मांगों को इतनी पुरजोर तरीके से कभी उठाया ही नहीं। दो दशक पूर्व लखनऊ में हुई दो विशाल ‘चेतना रैली’ इसका अपवाद है, जिसके बाद तत्कालीन रामप्रकाश गुप्ता सरकार ने कलवार समाज को ओबीसी सूची में शामिल किया था। इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्ता  के सम्मान में एक और तीसरी बड़ी रैली आयोजित की गई थी। लेकिन इसके बाद से ऐसा प्रदर्शन नहीं हुआ। यह अलग बात है कि हर बार चुनाव आते ही कुछ सामािक संगठनों के लोग स्वजातीयों के लिए टिकट की मांग को लेकर राजनीतिक दलों (खासतौर पर एक विशेष राजनीतिक दल) के नेतृत्व की परिक्रमा करते नजर हैं। समाज की ‘राजनीतिक चेतना’ का आलम यह है कि सोशल मीडिया पर कलवार समाज के ज्यादातर ग्रुपों में समाज हित के मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं होती, सिर्फ ‘हिंदू-मुस्लिम नफरत’ के मैसेज चलते है। उत्तर भारत के कलवार समाज के पहरुओं को चाहिए कि उन वास्तविक मुद्दों पर चर्चा खड़ी करे जिनमें समाज का आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक उत्थान निहित है। फिर इनके लिए संघर्ष के वास्ते स्वजातीय समाज को एकजुट करें। समाज की ‘राजनीतिक चेतना’ की यही सच्ची तस्वीर होगी। और, भारत जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में समाज की ‘राजनीतिक चेतना’ ही उसकी ‘राजनीतिक शक्ति’ है। 

स्वामी श्री श्री प्रणवानंदजी की प्रमुख मांगेः-
• ब्रह्मश्री नारायण गुरु निगम का गठन किया जाए जिसके बाद सरकार की ओर से इसे 500 करोड़ रुपये की अनुदान राशि प्रदान की जाए। 
• प्रदेश में ताड़ी दोहन के व्यवसाय को अनुमति दी जाए, जोकि बिल्लवा, एडिगा और नामधारी समुदायों का पैतृक व्यवसाय है।
• सरकार एडिगा समुदाय द्वारा संचालित सिंगदूर चौदेश्वरी मंदिर की प्रशासन समिति के उत्पीड़न पर रोक लगाए। (आरोप है कि सरकार इस मंदिर के प्रबंधन को उच्च जातियों के हवाले करने का षडयंत्र रच रही है।)
• प्रदेश के प्रमुख केंद्रों और हर जिले में बिल्लवा समुदाय के लिए सामुदायिक भवन का निर्माण शुरू करे।
• आगामी विधानसभा चुनाव में दक्षिण कन्नड, उत्तर कन्नड, उडुपी, शिवमोगा जैसे तटीय जिलों में एडिगा, बिल्लवा, नामधारी समुदाय के लिए 14 सीटें आरक्षित की जाएं।
• बिल्लवा समुदाय का रिजर्वेशन कोटा बढ़ाया जाए। एक व्यापक सर्वे कराकर बिल्लवा समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाए। इससे पूरे समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में भी वृद्धि होगी।
 

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video