बेतिया।
बिहार की पश्चिमी चंपारण लोकसभा सीट से लगातार तीन बार के सांसद डा. संजय जायसवाल जीत का चौका लगाने के लिए एक बार फिर चुनाव मौदान में हैं। डा. संजय जायसवाल जनसेवा की राजनीति के लिए जाने जाते हैं। उनका शुमार उन चंद सांसदों में होता है जिन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता में अपने प्रति विश्वास को मजबूत किया है। सांसद के रूप में अपने 15 साल के करियर में उन्होंने कई बार बा़ढ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में खुद प्रभावित क्षेत्रों में जाकर राहत-बचाव एवं सेवा कार्य किए, जिसकी चर्चा मीडिया में होती रही है। हाल ही में ‘फेम इंडिया’ मैगजीन ने एशिया पोस्ट के साथ किए सर्वे में डा. संजय जायसवाल को ‘कर्तव्य-परायणता’ की श्रेणी में सर्वोच्च स्थान पर रखा है। वह लोकसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक रहे, उन्हें संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएऩडीपी) के बाहरी सलाहकार समूह का सह-अध्यक्ष बनाया गया था।
अब तक अपराजेय रहे हैं डा. जायसवाल
पटना मेडिकल कालेज से एमबीबीएस और दरभंगा मेडिकल कालेज से एमडी डा. संजय जायसवाल आकर्षक व्यक्तित्व के धनी हैं। 56 वर्षीय डा. संजय जायसवाल अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि के चलते ही सियासत में आए। उनके पिता स्व. डा. मदन प्रसाद जायसवाल बेतिया लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर 1996, 1998 और 1999 में लगातार तीन बार सांसद निर्वाचित हुए थे। 2009 में डा. मदन प्रसाद जायसवाल के निधन के बाद डा. संजय जायसवाल ने पिता की राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाला। 2008 में पश्चिमी चंपारण लोकसभा सीट अस्तित्व में आई और 2009 में इस सीट पर पहला लोकसभा चुनाव हुआ जिसमें भाजपा प्र्त्याशी डा. संजय जायसवाल, एलजेपी के टिकट पर खड़े हुए विख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा को डेढ़ लाख से भी अधिक वोटों के अंतर से पराजित कर पहली बार सांसद निर्वाचित हुए। तब से वह पश्चिमी चंपारण सीट पर निरंतर अपराजेय साबित हुए हैं। 2014 के चुनाव में उन्होंने एक बार फिर प्रकाश झा को बड़ी मात दी जिन्होंने जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में डा. संजय जायसवाल को 3 लाख 71 हजार वोट प्राप्त हुए। लेकिन 2019 के चुनाव में डा. संजय जायसवाल ने 6 लाख से अधिक वोट हासिल कर लोकप्रियता के अपने पिछले रिकार्ड तोड़ दिए। उन्होंने बीएलएसपी प्रत्याशी ब्रजेश कुमार कुशवाहा को लगभग 3 लाख मतों से पराजित किया। अब 25 मई को इस सीट पर फिर चुनाव होना है। भाजपा ने फिर डा. संजय जायसवाल को उतारा है, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में गई। कांग्रेस ने अभी अपना प्रत्याशी तय नहीं किया है लेकिन महात्मा गांधी की आंदोलन-भूमि पर होने वाला चुनावी-रण निश्चय ही कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई होगी।
सेवा की राजनीति से चमका कैरियर
डा. संजय जायसवाल सांसद के रूप में अपने तीन कार्यकालों में कई महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य रहे। वह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर केंद्रीय परिषद के सदस्य भी हैं। डा. संजय जायसवाल की शिनाख्त एक ऐसे लोकप्रिय सांसद के रूप में होती है जो अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन हमेशा शिद्दत से करते रहे हैं। खास बात यह है कि अपने डाक्टरी पेशे को उन्होंने सेवा का जरिया बनाया। बाढ़ की स्थिति में खुद की नाव पर सवार होकर प्रभावित इलाको में पहुंच जाते है, मेडिकल कैंपों में जाकर प्रभावित लोगों का परीक्षण करते हैं, दवाएं देते हैं। प्रशासन के राहत एवं बचाव कार्यों की निगरानी भी करते हैं।
डा. संजय जायसवाल को सियासत के साथ ही उनके मेडिकल पेशे में उनकी माताजी डा. श्रीमती सरोज जायसवाल और पत्नी डा. श्रीमती मंजू चौधरी चिकित्सा का सहयोग मिलता है। उनका एक पुत्र एवं एक पुत्री हैं। हालांकि जनता के प्रति अपनी ड्यूटी निभाने के बाद भी डा. जायसवाल के सामने पार्टी के अंदर कई चुनौतियों खड़ी होती रहीं लेकिन अपने राजनीतिक कौशल और समझ-बूझ से सफलता पूर्वक इनका सामना करते रहे।
मां सीता की शरणस्थली; महात्मा गांधी की कर्मभूमि
बता दें कि पश्चिमी चंपारण भारत के स्वाधीनता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यहीं नील आंदोलन से अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह की शुरुआत की थी। पश्चिमी चंपारण पौराणिक इतिहास से भी जुड़ा है। यहां का वाल्मीकि नगर कोमां सीता की शरणस्थली माना जाता थी जो उनके पिता राजा जनक के तिरहुत प्रदेश का अंग था, जो ईसा पूर्व छठी सदी में वैशाली साम्राज्य का हिस्सा बन गया था। उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगा पश्चिमी चंपारण जल एवं वन संपदा से परिपूर्ण क्षेत्र है। पश्चिमी चंपारण लोकसभा सीट वर्ष 2008 में अस्तित्व में आई। इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल 6 विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें से पश्चिमी चंपारण जिले के नौतन, चनपटिया और बेतिया विधानसभा क्षेत्र तथा पूर्वी चंपारण जिले के रक्सौल, सुगौली और नरकटिया विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।
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