बाड़ी।
युद्धग्रस्त युक्रेन में फंसे भारतीय छात्र-छात्राओं को निकालने और उनकी सहायता करने के सरकारी दावे क्या हवा-हवाई हैं? अपनी जान पर खेलकर खारकीव से लिविव के लिए निकली बाड़ी की विदुषी शिवहरे जिन हालात में फंसी है, उसे देखते हुए इस तरह के सवाल उठना लाजिमी है।
विदुषी ने बताया कि वह और उसके साथ करीब 24 अन्य इंडियन स्टूडेंट्स ट्रेन में हैं, लेविव पहुंचने वाले हैं। उन्हें कोई आइडिया नहीं है कि वहां से पोलैंड तक वे कैसे पहुंचेंगे। उसने कहा कि हम लोगों ने एंबेसी से मदद मांगी लेकिन एंबेसी हमारा कोई जवाब नहीं दे रही है, और ऊपर से वो लोग कह रहे हैं कि हमें पैसे देने पड़ेंगे। वो लोग लगभग 400 यूरो (भारतीय मुद्रा में लगभग 33 हजार रुपये) बोल रहे हैं।
विदुषी ने 2 मार्च की देर रात यह जानकारी एक ऑडियो क्लिप के माध्यम से दी है जिसे उसने किसी तरह ट्रेन के वाशरूम छुपके से रिकार्ड किया। इस रिकार्डिंग में विदुषी ने बताया कि ट्रेन में उन लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। ट्रेन का टीटी जरा सी बात पर बुरी तरह नाराज हो गया है। बात बस इतनी थी कि किसी ने ब्रेड काटकर उसका एक टुकड़ा डस्टबिन के पास फेंक दिया था। इस बात पर गुस्सा होकर टीटी उसके पूरे ग्रुप को ट्रेन से उतारने की धमकी दे रहा है। कह रहा है कि ट्रेन से बाहर नहीं निकलना है तो 5000 रिव्निया (युक्रेनी मुद्रा) दो जो करीब 15000 रुपये होते हैं। और यहां हमारे पास कैश नहीं है और अभी हमें जाना है पोलैंड बार्डर पर, हम कैसे जाएंगे..हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है। , ‘हमारी मदद कीजिये…हमें यहां से निकालिए।’
समाचार लिखे जाने तक विदुषी अपने साथियों के साथ ट्रेन में ही है और वे सभी लोग बेहद मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं और अपने-अपने परिवारों से संपर्क कर सहायता की गुहार लगा रहे हैं। इधर, इन बच्चों के माता-पिता भी उनसे कम परेशान नहीं है। विदुषी के पिता शेखर शिवहरे और मां वंदना शिवहरे हफ्तेभर से ठीक से नहीं सो पाए हैं। दिन-रात बेटी की चिंता में गुजर रहा है। पूरा परिवार भयंकर चिंता और तनाव में है। वंदना शिवहरे सवाल करती हैं कि विदेशी धरती पर ‘भारत माता की जय’ बोलने वाली मेरी बच्ची और उस जैसे सैकड़ों बच्चों को भारत सरकार से सहायता की जरूरत है। एंबेसी कुछ करती क्यों नहीं? हमारी सरकार क्या कर रही है?
Leave feedback about this