April 16, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार समाज

आगरा में अपने ‘पौत्र’ के यहां जाएगी सहस्रबाहु की सवारी; कहां तो हमारी जड़ें हैं लेकिन हम कहां खड़े हैं!

आगरा।
आज हम भले ही अलग-अलग वर्गों और उपनामों में बंटे हुए हैं, लेकिन हम सब कलचुरी हैं। क्योंकि, हम काल को चूर-चूर करने वाले प्रतापी राजा के वंशज हैं। जी हां, हम सब राजराजेश्वर सहस्त्रबाहु अर्जुन की संतति हैं, जिनका जन्मोत्सव आज कार्तिक शुक्ल की सप्तमी की तिथि (8 नवंबर, 2024) को पूरे देश में बड़े जोर-शोर से मनाया जा रहा है। तो आइये इस पावन दिन की शुरुआत राजराजेश्वर भगवान श्री सहस्रबाहु अर्जुन के स्मरण से करते हैं, जानते हैं उनकी महिमा, उनकी कृपा और उनके बारे में पौराणिक उल्लेखों के बारे मे, जिनमें हमारे जड़ें समाहित हैं।
प्राचीन काल मे वर्ण और वंश व्यवस्था प्रचलित थी, जाति प्रथा नही थी। किसी के नाम के आगे या पीछे कुछ नही होता था । जैसे राम, लक्ष्मण, कृष्ण, बलराम, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव। राजाओं के नाम से वंश की पहचान हुआ करती थी। हम सब चंद्रवंश की शाखाओं से जुड़े हैं। चंद्रवंश में “यदु” राजा हुए जिनसे यदुवंश चला। यदुवंश में हैहय राजा का जन्म हुआ जिनसे हैहय वंश चला। हैहय वंश में ही कृतवीर्य का जन्म हुआ और कर्तवीर्य से सहस्त्रार्जुन जी का जन्म हुआ ।
सहस्त्रार्जुन जी शिव के उपासक थे और उन्हें शिव का वरदान भी मिला था। सहस्त्रार्जुन जी ने पूरे विश्व पर शासन किया था और रावण जैसे पराक्रमी को भी उन्होंने बहुत आसानी से युद्ध मे पराजित कर अपने कैद में रखा था। सहस्रार्जुन की कथाएं और उल्लेख, महाभारत एवं वेदों के साथ प्रायः सभी पुराणों में हैं।
सहस्त्रार्जुन जी के छह पीढ़ी बाद बलभद्र यानी बलराम का जन्म हुआ जो कि कृष्णा भगवान के अग्रज थे। कुछ मान्यताओं में कलचुरी समाज को बलभद्र का वंशज माना जाता है। आगरा में शिवहरे समाज की प्रमुख धरोहर भगवान बलभद्र यानी दाऊजी महाराज को ही समर्पित है, जिसे मंदिर श्री दाऊजी महाराज के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि आज आगरा में भगवान सहस्रबाहु अर्जुन की सवारी एक शोभायात्रा के रूप में निकाली जा रही है जो शिवहरे समाज की धरोहर दाऊजी मंदिर पर पहुंचकर संपन्न होगी। दाऊजी महाराज का ही एक नाम बलभद्र है, दोनों एक ही हैं। तो इस तरह कह सकते हैं कि भगवान सहस्रबाहु की सवारी (शोभायात्रा) अपने ही पौत्र के यहां (मंदिर श्री दाऊजी महाराज) जा रही हैं। आगरा में सहस्रबाहु की शोभायात्रा शिवहरे समाज के लिए एक शुभ संकेत है इस बात का कि वह अपनी जड़ के साथ और गहराई से जुड़ने जा रहा है।
खौर, आपको यह तो बिल्कुल स्पष्ट हो गया होगा कि हम कलचुरी मूल रूप से सहस्रबाहु के वंशज हैं। अब वर्ण की बात करें तो भगवान सहस्रबाहु के साथ हमारे संबंध से स्पष्ट है कि अतीत में हम क्षत्रिय थे लेकिन अब कर्म के आधार पर वैश्य हो गए हैं। हमारे सौ से अधिक उपनाम हैं जैसे शिवहरे, जायसवाल, चौकसे, राय, महाजन, ओमहरे आदि-इत्यादि…। सरकारी रिकार्ड में हमारी मूल जाति कलवार, कलाल, कलार के रूप में दर्ज है और ये तीनों नाम दरअसल एक-दूसरे के अपभ्रंश हैं।
महाराज सहस्त्रबाहु अर्जुन का जन्म महाराज हैहय के दसवीं पीढ़ी में माता पदमिनी के गर्भ से प्रात: काल के मुहूर्त में हुआ था। राजा कृतवीर्य के संतान होने के कारण ही इन्हें कार्तवीर्य अर्जुन कहा जाता है, और भगवान दत्तात्रेय के भक्त होने के नाते उनकी तपस्या कर मांगे गए सहस्त्र-बाहु (हजार भुजाएं) के बल के वरदान के कारण उन्हें सहस्त्रबाहु अर्जुन भी कहा जाता है। सहस्रार्जुन को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है, इसलिए उन्हें देवता माना गयाहै।
लेकिन इतने गौरवशाली अतीत से जुड़ाव पर इतराने की नहीं, बल्कि विचार करने की जरूरत है। बीते दिनों भगवान सहस्रबाहु का सरेआम अपमान करने वाले बागेश्वर धाम के ‘पोंगा बाबा’ धीरेंद्र शास्त्री और विदेशी भाषाओं के गाने चुराने वाले ‘फर्जी फिल्मी गीतकार’ मनोज मुंतशिर के खिलाफ हमारे विरोध ने हमारी कमजोरी को उजागर कर दिया। हम विभाजित नजर आए, एक प्रभावशाली वर्ग अपने राजनीतिक झुकाव के चलते इन प्रदर्शनों से दूर रहा। जिसके चलते समाज की लड़ाई कमजोर पड़ गई, और भगवान सहस्रबाहु के इन दोनों अपराधियों ने कहने भरकर को माफी मांग कर मामले को शांत करा दिया। कहां हमारी जड़ें हैं, और हम कहां खड़े हैं, सोचिए…चेतिये….संभलिये।

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