दो दिन पहले, एक स्वजातीय संस्था के पदाधिकारी ने अपनी संस्था की ओर से एक व्हाट्सएप संदेश समाज के कई व्हाट्सएप समूहों में प्रसारित किया। संदेश संपूर्ण कलाल, कलार, कलचुरि जाति और समाज के सभी वर्गों के हित में किए जा रहे सकारात्मक कार्य से संबंधित था। ना तो यह संदेश व्यक्तिगत था, ना ही केवल उस संस्था के सदस्यों के लिए था और ना ही किसी वर्ग विशेष के लिए, फिर भी कुछ घंटे बाद ही एक समूह में उस संदेश पर दो टिप्पणियां की गई जिसे पढ़कर आश्चर्य और मन को क्षोभ हुआ।
पहली टिप्पणी में लिखा था- जिस संगठन का कार्य हो उसी संगठन के ग्रुप में उसके बारे में बात करे धन्यवाद, और दूसरी टिप्पणी थी- क्या आप हमारी पोस्ट हमारे संगठन का प्रचार अपने संगठन में करते हैं?
*यह कैसी मानसिकता? यह कैसी विचारधारा? इससे तो यही लगता है कि देशभर में समाज की सैकड़ों संस्थाएं कार्य कर रही है लेकिन इन संस्थाओं में से कुछ संस्थाओं के पदाधिकारियों को किसी दूसरी संस्था के कार्य और कार्यक्रम से प्रसन्नता नहीं होती और ना ही वे सकल समाज के लिए कार्य करना चाहते हैं। अगर ऐसा है, तब भी यह तो निर्विवाद है कि समाज के सभी समूह में सभी वर्गों के सदस्य होते हैं जो किसी संस्था से जुड़े ना रहने के बाद भी समाज के प्रतिनिधि तो होते ही हैं। ऐसी स्थिति में सकल समाज के लिए आयोजित होने वाले कार्यक्रम के संदेश पर किसी समूह में इस प्रकार की गई आपत्तिजनक टिप्पणियां समाज की संस्थाओं के कर्णधारों की मानसिकता को समाज के कटघरे में खड़ा तो करती ही है। संस्था बनाना और उसके स्वयंभू पदाधिकारी बनना ही केवल व्यक्तिगत उद्देश्य हो, तो ऐसे ‘सज्जनों’ को संस्था में समाज के नाम को नहीं जोड़ना चाहिए।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि सामाजिक संस्थाओं का उद्देश्य समाज का उत्थान, अंतिम पायदान पर खड़े, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर व्यक्ति को भी समाज से जोड़ना, उसे मुख्यधारा में लाना और एकीकरण का होना चाहिए लेकिन आज भी यह नहीं हो रहा इसलिए समाज के कई लोग सामाजिक संस्थाओं से दूरी बनाए रखते हैं। ऐसे में संस्था के कर्णधार ही अपनी संस्था को केवल अपने तक सीमित कर लें तो संस्थाओं के माध्यम से समाज की उन्नति, प्रगति, विकास, एकीकरण किसी स्वप्न से कम नहीं। संस्था बनाने और खुद को समाज का स्वयंभू नेता समझने से, आत्मप्रशंसा से कोई किसी को रोक तो नहीं सकता लेकिन यह समाज को धोखा देने से ज्यादा कुछ नहीं है।
(समाज हित में जान-बूझकर संबंधित घटना की संस्थाओं और व्यक्तियों के नाम नहीं लिखे गए।)
– पवन नयन जायसवाल
94217 88630
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र
लेखक जाने-माने साहित्यकार एवं वरिष्ठ समाजसेवी हैं।
Leave feedback about this